दिल्ली की एक अदालत ने, 2019 की जामिया हिंसा के अभियुक्तों को, अपराध में लिप्त न पाए जाने पर, बरी कर दिया

दिल्ली की एक अदालत ने, 2019 की जामिया हिंसा के अभियुक्तों को, अपराध में लिप्त न पाए जाने पर, बरी कर दिया

2019 के दिल्ली के जामिया यूनिवर्सिटीहिंसा मामले में शरजील इमाम, सफूरा जरगर, आसिफ इकबाल तन्हा और आठ अन्य को बरी करते हुए, दिल्ली की एक अदालत ने आज 04/02/23 को कहा कि ,”पुलिस “वास्तविक अपराधियों” को पकड़ने में असमर्थ थी और “निश्चित रूप से उन्हें (इन व्यक्तियों को) बलि का बकरा बनाने में कामयाब रही।”  .

“गलत तरीके से चार्जशीट” दायर करने के लिए अभियोजन पक्ष की खिंचाई करते हुए, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, अरुल वर्मा ने कहा कि “पुलिस ने विरोध करने वाली भीड़ में से कुछ लोगों को, आरोपी और अन्य कुछ को पुलिस गवाह के रूप में पेश करने के लिए “मनमाने ढंग से उनको चुना” है।”

अदालत ने टिप्पणी की, “मनमाने ढंग से, इस तरह का चयन यह “चेरी पिक” है, जो निष्पक्षता के सिद्धांत के लिए हानिकारक है। यह देखते हुए कि बिना, किसी प्रत्यक्ष प्रतिभाग और कृत्यों के,  विरोध स्थल पर मात्र उपस्थिति से, किसी को, अभियुक्तों के रूप में, नहीं चुना जा सकता है। अभियोजन पक्ष द्वारा की गई कार्यवाही, अभियुक्तों के खिलाफ “लापरवाही और गुस्ताख फैशन” के रूप में शुरू किया गया है।”

जज ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि, “ऐसे व्यक्तियों को, इस तरह के लंबे समय तक चलने वाले, कठोर मुकदमे से गुजरने देना देश की आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए अच्छा नहीं है।”

“विरोध और बगावत के बीच के अंतर को समझने के लिए जांच एजेंसियों को और अधिक संवेदनशील होकर साक्ष्य और उनका अध्ययन करना होगा। बगावत बिलकुल भी नहीं मान्य है पर विरोध का लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक मान्य स्थान है। विरोध, असहमति के लिए, उन नागरिकों के  एक मंच के  रूप  में है, किसी नागरिक की अंतरात्मा को चुभता है, और वह विरोध के लिए तत्पर हो जाता है।”

इस प्रकार अदालत ने शरजील इमाम, आसिफ इकबाल तन्हा, सफूरा जरगर, मो.  अबुजर, उमैर अहमद, मो.  शोएब, महमूद अनवर, मो.  कासिम, मो.  बिलाल नदीम, शहजर रजा खान और चंदा यादव को बरी कर दिया।

यह मामला दिसंबर, 2019 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में हुई हिंसा की घटनाओं से जुड़ा है। प्राथमिकी (FIR) में कथित रूप से दंगा करने और गैरकानूनी रूप से एकत्र होने का अपराध वर्णित किया गया था। एफआईआर, धारा 143, 147, 148, 149, 186, 353, 332, 333, 308, 427,  मामले में आईपीसी की धारा 435, 323, 341, 120बी और 34 के अंतर्गत दर्ज की गई थीं। हालांकि, शरजिल इमाम अभी भी 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के संबंध में दर्ज अन्य एफआईआर में हिरासत में है। इमाम, तनहा और सफूरा जरगर को स्पेशल सेल के मामले में आरोपित किया गया है, जिसमें 2020 के पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों के पीछे बड़ी साजिश का आरोप लगाया गया है।

पुलिस ने 21 अप्रैल, 2020 को मोहम्मद इलियास के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी। इसके बाद 11 अन्य आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ दूसरी सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की गई थी, जिन्हें इस मामले में आरोपमुक्त कर दिया गया है। आरोप पर दलीलें जारी रखने के दौरान हाल ही में 1 फरवरी, 2023 को तीसरा पूरक आरोप पत्र भी दायर किया गया था।  अभियोजन पक्ष ने यह स्थापित करने का प्रयास किया कि गवाहों ने कुछ तस्वीरों के आधार पर आरोपी व्यक्तियों की पहचान की थी।

सत्र न्यायाधीश ने पाया कि दिल्ली पुलिस, नए सबूत पेश करने में विफल रही और इसके बजाय एक और पूरक चार्जशीट दायर करके “आगे की जांच” की आड़ में पुराने तथ्य पेश करने की कोशिश की। “वर्तमान मामले में, पुलिस के लिए एक चार्जशीट और एक नहीं बल्कि तीन सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करना सबसे असामान्य रहा है, जिसमें वास्तव में कुछ भी नया नहीं है।  यह चार्जशीट दाखिल करने का सिलसिला  बंद होना चाहिए, अन्यथा यह जुगाड़ महज अभियोजन से परे कुछ और दर्शाता है, तथा आरोप पत्रों को संदिग्ध बना देता है। यह प्रवृत्ति, आरोपी व्यक्तियों के नागरिक अधिकारों को रौंदने जैसा है।”

फैसले में आगे कहा गया है कि, “ऐसा कोई चश्मदीद गवाह, पुलिस नहीं पेश कर पाई, जो पुलिस के इस आरोप की पुष्टि कर पाता कि, आरोपी व्यक्ति किसी भी तरह से, एफआईआर में वर्णित अपराध करने में शामिल थे।”

“तीसरी पूरक चार्जशीट दाखिल होने तक जांच के दौरान कोई शिनाख्त परेड  नहीं की गई थी और तस्वीरें और वीडियो जो प्रस्तुत किए गए हैं से, केवल यह प्रदर्शित होता है कि, आरोपी बैरिकेड्स के पीछे खड़े थे, न कि वे किसी हिंसा में शामिल थे।

अदालत ने आगे कहा, “रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे प्रथम दृष्टया यह कहा जा सके कि आरोपी किसी दंगाई भीड़ का हिस्सा थे।  इसमें किसी भी आरोपी के पास से कोई हथियार नहीं था या कोई पत्थर आदि भी नहीं फेंक रहा था। इस प्रकार, प्रथम दृष्टया अभियुक्तों के विरुद्ध कोई सबूत नहीं है कि, उन्होंने किसी भी कानून का उल्लंघन किया था।  निश्चित रूप से अनुमानों के आधार पर अभियोग शुरू नहीं किया जा सकता है, और चार्जशीट निश्चित रूप से संभावनाओं के आधार पर दायर नहीं की जा सकती है।”

अदालत ने आगे कहा कि “विरोध करने वाले नागरिकों की स्वतंत्रता में, इस तरह निराधार हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए था और यह असहमति और कुछ नहीं बल्कि “अनुच्छेद 19 में निहित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अमूल्य मौलिक अधिकार का विस्तार” है, जो उसमें निहित प्रतिबंधों के अधीन है। इसलिए यह एक अधिकार है जिसे बरकरार रखने की हमने शपथ ली है।”

अदालत ने यह भी कहा कि “वर्तमान मामले में, जांच एजेंसियों को विवेचना में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीक का प्रयोग करना चाहिए था, या विश्वसनीय खुफिया जानकारी एकत्र करनी चाहिए थी, और तभी उसे “आरोपी व्यक्तियों के आधार पर, अदालत में ट्रायल के लिए चार्जशीट दायर करना चाहिए था।न्यायिक प्रणाली को प्रेरित करना। अन्यथा, ऐसे लोगों के खिलाफ, इस प्रकार, गलत तरीके से चार्जशीट दायर करने से बचना चाहिए जिनकी भूमिका केवल एक विरोध का हिस्सा बनने तक ही सीमित थी।”

Log In

Forgot password?

Don't have an account? Register

Forgot password?

Enter your account data and we will send you a link to reset your password.

Your password reset link appears to be invalid or expired.

Log in

Privacy Policy

Add to Collection

No Collections

Here you'll find all collections you've created before.

Exit mobile version