अली जावेद का जाना प्रगतिशील आंदोलन के लिए गहरा सदमा है

अली जावेद का जाना प्रगतिशील आंदोलन के लिए गहरा सदमा है

सुसंस्कृति परिहार: अली जावेद का जाना प्रगतिशील आंदोलन के लिए गहरा सदमा है वे बहुत सक्रियता से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे थे और इस समय वे तमाम मोर्चों पर पूरी मज़बूती से शामिल हो रहे थे। जिनमें किसान आंदोलन में शामिल होकर लेखकों को जनांदोलनों से जुड़ने का ज़रूरी संदेश दिया था। प्रगतिशील लेखक संघ के मंच पर अध्यक्ष पुन्ननीलन, महासचिव सिरसा जी के साथ कार्यकारी अध्यक्ष अली जावेद जी एक साथ सुखद अहसास कराते थे ।सारा भारत प्रतिनिधित्व करता नज़र आता था। उन्होंने महासचिव पद भी जिस मज़बूती से संभाला था उसे कमला प्रसाद के जाने का ग़म कम हुआ था।

एक उर्दू के मशहूर लेखक होने के साथ हिंदी लेखकों में उनका दिलचस्पी लेना उन्हें प्रोत्साहित करना उनका शगल था। हैदराबाद राष्ट्रीय सम्मेलन में हिंदी उर्दू कविता पाठ के दौरान अली जावेद और खगेन्द्र जी ने मेरी कविता “खपरेले घर से उठता धुंआ” को जिस तरह सराहा और मार्गदर्शन दिया उससे मेरे प्रगतिशील लेखन को गति मिली। उनसे काफी देर बैठकर आत्मीय बातचीत सदैव स्मृति पटल पर रहेगी। आज उनके अलविदा होने की ग़मनाक ख़बर से आहत हूं।

उम्मीद करती हूं प्रलेसं अपने इस प्रमुख स्तंभ को सदैव याद रखेगा। हिंदी उर्दू की इस कड़ी को बिखरने नहीं देगा। दमोह प्रलेसं की शोकपूर्ण श्रद्धांजलि एवं विनत नमन।

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