प्रतिबद्धता और कर्मठता की जीती जागती मिसाल हैं “कामरेड अजीत कुमार”

सुसंस्कृति परिहार : विगत चौदह नवम्बर सागर के इतिहास का एक दुर्लभ  और महत्वपूर्ण दिन था जब कामरेड अजीत कुमार जैन के 75वें जन्मदिवस पर सागर के ही नहीं वरन्  प्रदेश के जागरुक और कर्मठ श्रेष्ठीजनों ने उनके अभिनंदन समारोह में शामिल होकर यह जतलाया कि चुपचाप प्रतिबद्धता के साथ जुटे रहकर काम करने वालों के कद्रदान कम नहीं होते।उन्हें आमंत्रण नहीं दिया जाता वे स्वप्रेरणा से स्वत: आते हैं तथा कर्मशील सामाजिक सरोकारों से जुड़ा व्यक्तित्व समादृत  होता है।ऐसे ही जुझारू व्यक्तित्व के धनी हैं कामरेड अजीत कुमार।

वे कम्युनिस्ट कैसे बने अपने आत्मकथ्य में बतलाते हैं “सागर में मेरे फूफेरे भाई कोमल चंद जैन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे उन्होंने 1957 में नगर पालिका के चुनाव लड़ा जिनके चुनाव प्रचार में 10-11 साल की उम्र के लगभग मैंने भाग लिया 1960 में जब मैं जैन हाई स्कूल से लौट रहा था। तब रास्ते में निकलते पार्टी जुलूस में स्कूल बैग सहित मैं भी शामिल हो गया उक्त जुलूस सागर स्टेशन के नजदीक की झोपड़पट्टी हटाने के खिलाफ था और तब गिरफ्तारियां हुई पर मेरी उम्र देखते हुए पुलिस ने मुझे छोड़ दिया और बाकी को जेल भेज दिया अब तक में कम्युनिस्ट पार्टी को दाऊ की पार्टी के नाम से जानता था” 

बचपन का यह लगाव उनमें आज तक कायम हैं।इस उम्र में भी वे समय के पाबंद प्रत्येक आगंतुक को पार्टी आफिस में बराबर समय देते हैं तथा पार्टी से सम्बंधित पुस्तकें भेंट में पढ़ने देते हैं।देश की समस्यायों पर चर्चा करते हैं और युवाओं की तलाश में हरदम बेचैन नज़र आते हैं। बुंदेलखंड से बाबस्ता होने के कारण उनकी नज़र हमेशा यहां बीड़ी कामगारों की ओर रही है।उद्यम के नाम पर बुंदेलखंड में सिर्फ बीड़ी उद्योग ही आजीविका का एक मात्र सहारा है आज़ादी के पहले और बाद में भी। इसमें घर में बैठकर महिलाएं और बच्चे भी जीवकोपार्जन के लिए काम करते हैं।तब भी उनकी माली हालत बदतर देखकर अजीत कुमार जी ने सतत मेहनत कर बीड़ी श्रमिकों के संगठन  को विस्तार दिया।जिसे पूर्व में कामरेड एडवोकेट महेन्द्र फुसकेले जी गठित कर चुके थे।

प्रतिबद्धता और कर्मठता की जीती जागती मिसाल हैं "कामरेड अजीत कुमार"

वर्ष 1989 की बात है जब राज्य शासन द्वारा तेंदूपत्ता संग्रह का सहकारी करण किया था जिसके विरुद्ध सागर की बीड़ी मालिक लॉबी के दबाव में सभी राजनीतिक दल सहकारी करण के खिलाफ थे ।उस समय कॉमरेड अजीत कुमार के नेतृत्व में सहकारी करण के पक्ष में सशक्त आंदोलन एवं कटरा में आयोजित आमसभा पर पहले पत्थरबाजी कराई गई तत्पश्चात हथियारबंद हमला किया गया था जिसमें कॉमरेड बाल-बाल बचे थे । विदेशी सिगरेट लाबी के दबाव में बीड़ी उद्योग पर कानूनी बंदिशों के संदर्भ में बीड़ी श्रमिकों की संभावित बेरोजगारी के खिलाफ 6 सितंबर 2006 को सागर में 50,000 बीड़ी श्रमिकों की ऐतिहासिक आमसभा हुई ।इसी तरह दमोह ,जबलपुर, सतना इंदौर में भी रैलियां की गईं जो ऐतिहासिक थी।आज जहां कहीं भी इक्का-दुक्का कामरेड बीड़ी संगठनों में है वे अजीत कुमार की कड़ी मेहनत का प्रतीक हैं।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में अजीत जी के फुफेरे भाई 

कोमलचंद जैन जी ने जो बुनियाद रखी उस पर एडवोकेट महेन्द्र फुसकेले,अजीत जैन कामरेड चंद्रकुमार जैन की तिकड़ी की बदौलत सागर संभाग और उसके आसपास के जिलों में जो पहचान बनाई वह आज भी क़ायम है।इसी दौरान डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्रो०प्रतापचंद शर्मा और हिंदी विभाग में डाॅ० शिवकुमार मिश्र जैसे मार्क्सवादियों का सानिध्य भी अजीत को मिला।अजीत जी बताते हैं कि “प्रत्येक रविवार फुसकेले जी के साथ हम लोगों ने शर्मा जी और मिश्र जी के सानिध्य में चार साल मार्क्सवादी दर्शन की दीक्षा ली जिससे वैचारिक स्तर को ऊंचा उठाने में काफी मदद मिली इसके अलावा मुझे 1973 में 40 दिन के स्कूल हेतु दिल्ली पार्टी स्कूल भेजा गया वह भी बहुत काम आया।’

सागर शहर मूलतः कटरा के आसपास भाकपा का एक मज़बूत गढ़ बन गया था दूसरी और विश्वविद्यालय में आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के नेता ओ पी सिंह, अरविंद श्रीवास्तव के आने के बाद भाकपा को नया मुकाम मिला।जो आगे प्रवीण अटलूरी अशोक सिंन्हा से होते हुए राहुल भाई,सत्यम और आशीष भाई तक जाता है। स्टूडेंट फेडरेशन की सक्रियता का श्रेय मेंटर कामरेड अजीत जी को ही जाता है। विश्व विद्यालय को प्रगतिशील व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई के विचारों से भी भरपूर ऊर्जा मिली।प्रवीण अटलूरी परसाई के अभिन्न शिष्य थे। कहने का आशय यह कि अजीत जी के वक्त सागर में मार्क्सवाद की धारा प्रवहमान रही जिसे आंदोलनों में परिवर्तित कर जमीन पर अपने हक के लिए लड़ना  कामरेड अजीत कुमार ने सिखाया।

बीड़ी कामगारों के संघर्ष से प्रारंभ उनके आंदोलनों के साथ वे सन्1969 में जमीन जोतो आंदोलन में गिरफ्तार होकर 15 दिन सागर जेल में रहे ।परिणाम स्वरूप बड़ा करीला स्थित उक्त भूमि पर आज 500 परिवारों कीआज आवासीय बस्ती नज़र आती है। सन् 1977 में बंधुआ मजदूर मुक्ति आंदोलन चलाकर ग्राम पामाखेड़ी, रिछावर ,खैजरा, साईं खेड़ा बूढ़ा खेरा आदि ग्रामों में 38 बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराकर ,पुनर्वास कराने वाले सागर के एकमात्र नेता हैं कामरेड अजीत ने सन 1976 में पामाखेड़ी मौजा में भूमिहीनों को भूमि आंदोलनके लिए प्रेरित किया जिसमें 80 स्त्री पुरुषों की गिरफ्तारी हुई ।इस आंदोलन की उपलब्धि स्वरूप 250 एकड़ भूमि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के भूमिहीनों को बंटन कराकर भूमि स्वामी पट्टा दिलाया गया। कामरेड अब तक 34 बार गिरफ्तार हुए हैं आपातकाल में उन्हें मीसा के तहत निबद्ध भी किया गया इस दौरान वे सागर जेल में रहे। वर्ष 1986 में ऐतिहासिक रेल रोको आंदोलन किया गया जिसमें सागर -दमोह में 72 घंटे का बंद रखा गया इस दौरान कामरेड को बंद की अगुवाई करने के कारण गिरफ्तार कर जबलपुर जेल भेज दिया गया साथ ही साथ कामरेड ने डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के मस्टर कर्मचारियों की अवैध छटनी के विरुद्ध अगस्त 1991 में 8 दिन की भूख हड़ताल की जिसके कारण 42 कर्मचारियों की सेवा में पुनर्बहाली हुई ।इस भूख हड़ताल के कारण कामरेड की दाहिनी आंख में स्थाई रूप से समस्या  हो गई है। विश्वविद्यालय में  ही 370 मास्टर दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को कर्मचारी भविष्य निधि योजना एवं ग्रेच्युटी जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का कवच प्रदान करें असंगठित क्षेत्र में कामयाबी का झंडा भी कॉमरेड अजीत कुमार ने बुलंद किया कर्मचारी भविष्य निधि संबंधी 10 वर्षीय न्याय प्रक्रिया में सागर जबलपुर, इंदौर तथा नई दिल्ली में  कामरेड ने कानूनी पक्ष रखा जो मान्य हुआ । फल स्वरूप 370 कर्मचारियों को वर्ष 1982 से 2010 तक की अवधि का नुक्साान एवं कर्मचारी दोनों का अंशदान विश्वविद्यालय सागर द्वारा कराया गया जिसमें प्रत्येक कर्मचारी के खाते में 200000₹ से लेकर ₹400000 जमा हुए। देश के विश्वविद्यालय इतिहास में यह पहली घटना है जिसमें सभी दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी पेंशन परिवार,  और बीमा लाभ के पात्र हुए हैं।

वे लोक निर्माण विभाग के गैंगमैनों  की यूनियन के संस्थापक पदाधिकारी 1979 से आज तक है जिन्हें सर्विस बुक , ग्रेच्युटी छुट्टियों के साथ अस्थाई कर्मचारी का दर्जा दिलाया है। अशासकीय शिक्षा संस्थानों ,निजीअस्पताल  कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन अधिनियम लागू कराने में भी आप का विशेष योगदान रहा है ।विभिन्न राज्य सलाहकार समिति के सदस्य होने के नाते उन्होंने योजनाओं के प्रभावी अमल हेतु सागर में कल्याण प्रशासक कार्यालय एवं क्षेत्रीय आयुक्त भविष्य निधि कार्यालय की स्वीकृति भी कराई

कुल मिलाकर देखा जाए तो कामरेड अजीत ने अपना तमाम जीवन सर्वहारा के कल्याण हेतु समर्पित किया है।उनकी पत्नी और बच्चों को कभी कभार ही उनकी उपस्थिति मिली हो। कामरेड की पत्नि के अतुल्य योगदान को भी याद रखना होगा। जिन्होंने घर की तमाम जिम्मेदारियों का बोझ अपने कांधे पर रख उन्हें एक पक्का कम्युनिस्ट बनाया और कामरेड ने भी मध्यप्रदेश के सामंतवादीगढ़ बुंदेलखंड में भाकपा को सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाई।वे आज भी भाकपा मज़बूत इतिहास लिखते जा रहे हैं ।वे थके नहीं है बहुत कुछ करने की तमन्ना लिए आज भी लगातार सक्रिय हैं। जुझारू कामरेड अजीत कुमार जी और पत्नी कामरेड पुष्पा जी को लाल सलाम ।वे शतायु हों।

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