कांग्रेसियों की मौज हो गई, पर चुनाव जिताओ और सौंप दो से राहुल गांधी को बचना होगा!

कांग्रेसियों की मौज हो गई, पर चुनाव जिताओ और सौंप दो से राहुल को बचना होगा!

कांग्रेसियों की मौज हो गई! राहुल गांधी की यात्रा और यात्रा में भयानक शीतलहर में भी उनका केवल हाफ टी शर्ट में रहना, राजनीति से ज्यादा धर्म, दर्शन, अध्यात्म की बातें करना कांग्रेसियों का रास आ रहा है। राहुल तो खुद को तपस्वी कह रहे हैं मगर कांग्रेसी उनमें कोई सुपर पावर देखने लगे हैं। कांग्रेसियों को ऐसा ही नेता चाहिए। जो कर्म करे और फल उन्हें दे दे।

अब कांग्रेसियों को थोड़ी जीत की उम्मीदें दिखने लगी हैं। नहीं तो अभी तक वे हताश भाव में वही कहते थे जो भाजपाई कहते हैं कि आएगा तो मोदी ही! राहुल ने वाकई सीन चेंज कर दिया है।

भारत है तपस्वियों का देश। ऐसे में राहुल की बड़ी दाढ़ी और केवल टी शर्ट पहनकर देशाटन करना आम जनता को बहुत प्रभावित कर रहा है। वे जब बताते हैं कि गरीब बच्चियों को सर्दी से कंपकंपाते देखकर उन्होंने फैसला किया कि वे भी इस कंपकंपाहट को महसूस करने तक स्वेटर नहीं पहनेंगे तो इसका लोगों पर बड़ा असर पड़ा।

संवेदना और उससे उपजी करुणा का असर होता है। दूसरों के दर्द को समझने वालों को जनता भी समझती है। भारत की जनता अशिक्षित हो सकती है मगर उसमें सहज बुद्धि ( कॉमन सेंस) की कमी नहीं है। यह सिक्स्थ सेंस ( छठी इंद्रीय) उसमें परंपरा से आई है। अपने जीवन संघर्षों से। मानव अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जो जद्दोजहद करता है उससे उसमें अपने मित्र, शत्रु की स्वाभाविक पहचान विकसित हो जाती है। और यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है।

तो राहुल के इस वैरागी रूप को जनता बहुत पसंद कर रही है। हालांकि कांग्रेस को यह चाहिए कि इस रूप को एक सीमा से आगे न बढ़ने दे। राहुल को राहुल ही रहने दें। मगर कांग्रेसियों को तो जो रूप ज्यादा वोट दिलाएगा, सत्ता में लाएगा वही चाहिए। उन्हें राहुल से ज्यादा मतलब नहीं सत्ता से है।

कांग्रेसी कहने लगे है कि राहुल के अंदर कोई इनर पावर ( आंतरिक शक्ति) विकसित हो गई है। जिससे उन्हें सर्दी नहीं लग रही है। अब यह राहुल ही जानते हैं कि वे कैसी कठोर साधना कर रहे हैं। या मां सोनिया गांधी का दिल जानता है या बहन प्रियंका गांधी की बेबसी की वे कुछ नहीं कर पा रही हैं। भारत में मतलब उत्तर भारत में बहनें अपने भाई को एक दो तो जरूर स्वेटर हाथ से बुनकर पहनातीं हैं। और अगर खुद नहीं बुनतीं तो बाजार से भाई के लिए एकाध तो जरूर लाती हैं। लड़के स्वेटर पहनना कम पसंद करते हैं। मगर मां, बहन जबर्दस्ती जरूर पहना देती हैं।

मगर क्या करें राहुल में तो गांधी जी का आत्मा घुस गई। ऐसे ही भारत की गरीबी और लाचारी देखकर गांधी जी ने केवल आधी धोती पहनने का फैसला किया था। और डरो मत भी उनका मंत्र था। जिससे भारत के लोगों में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की हिम्मत पैदा करके उन्होंने देश को आजाद कराया था।

कांग्रेसियों को गांधी, सोनिया गांधी जैसे नेता ही चाहिए। जो उनके लिए सब कुछ करें और सत्ता से दूर हट जाएं। सत्ता संभालना कांग्रेसी अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। संघर्ष करना वे नेहरू गांधी परिवार की ड्यूटि मानते हैं। अभी राहुल ने गीता का जिक्र किया। कर्मण्येवाधिकारस्ते . . .। उन्होंने कहा गीता पढ़िए। कर्म करो। लेकिन कांग्रेसियों ने यह तो सुना नहीं। इससे आगे की अपने मतलब की बात खुद समझ ही ली कि फल हमें दे दो।

कांग्रेसी सोनिया गांधी को मना मना कर राजनीति में लाए थे। नरसिंहा राव सरकार तक वे खुश रहे सत्ता थी। उस समय कभी वे सोनिया को मनाने नहीं पहुंचे। सच तो यह है कि उन्हें कभी याद ही नहीं आई कि एक महिला जिसने देश के लिए अपना पति अपनी सास खो दी है, कैसे दो बच्चों के साथ निर्वासन में रहती होगीं। मगर जैसे ही सत्ता गई कांग्रेसियों की बैचेनी बढ़ गई। वी जार्ज जो राजीव गांधी के भी निकट सहयोगी थे लोगों के छोटे छोटे ग्रुप ले जाकर सोनिया जी से मिलवाते थे। ताकि सोनिया को अहसास हो कि लोग उन्हें याद करते हैं। चाहते हैं।

सोनिया बेमन से राजनीति में आईं। कांग्रेसियों के मान मनौव्वल से आईं। खतरा उठा कर आईं। अपने और अपने बच्चों के लिए खतरों के बावजूद। खूब आरोप सुने, अपमान सहे मगर कड़ी मेहनत, गांव गलियों की धूल छानकर उन्होंने इस दौर के सबसे बड़े लोकप्रिय नेता रहे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पलट दी। हमने कभी किसी कांग्रेसी को इसका विस्तार से विश्लेषण करते नहीं देखा कि कैसे विदेशी नागरिक का टेग लगा दी गईं राजनीति में एकदम नई एक महिला ने कैसे पचास साल से ज्यादा का राजनीतिक अनुभव रखने वाले, जनता में लोकप्रिय एक बड़े कद के नेता की राजनीति खत्म कर दी। 2004 के बाद वाजपेयी खत्म हो गए। पहले आडवानी फिर सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और फिर मोदी का युग आ गया। मगर 2004 के बाद वाजपेयी को किसी ने नहीं पूछा।

इधर सोनिया ने युद्ध जीता और गद्दी कांग्रेसियों को सौंप दी। कांग्रेसियों को एक बार गद्दी मिल जाए तो वे फिर मचकने लगते हैं। उन्हें याद नहीं रहता कि किन आधारों पर उन्हें सत्ता मिली थी। जनता ने किस लिए वोट दिए थे। वह तो सोनिया को याद था तो उन्होंने किसानों की कर्ज माफी की। गांव के भूमिहीन किसानों के लिए मनरेगा लाईं। महिलाओं के लिए महिला बिल पास कराया। हालांकि केवल राज्यसभा में ही हो पाया। मगर वही अपने आप में बड़ी बात थी। सब विरोध में थे। कांग्रेसी भी। सोनिया ने कहा मुझे मालूम है कांग्रेसी भी इसके विरोध में है। मगर यही प्रतिबद्धता होती है, सिद्धांतों के प्रति की चाहे कोई साथ आए या न आए अगर जरूरी है तो उस काम को कर डालो। सफलता मिलती है। भाजपा अनमनी। बाद में लोकसभा में तो उसने साफ मना ही कर दिया था कि नहीं करवाएंगे। सपा, बसपा विरोध में। मगर सोनिया ने वह राज्यसभा से पास करवाकर ही माना।

ऐसे ही राहुल गांधी ने ठान लिया था कि कोई साथ आए या न आए मैं अकेला ही चलूंगा। संयोग है कि जब यह बोला तो हम वहां अकेले पत्रकार थे। हमें यह ट्वीट करने से रोका भी गया। मगर आज इसी वाक्य को सब दोहरा रहे हैं कि यह राहुल का आत्मबल था जो उन्होंने यात्रा शुरू होने से पहले इतना बड़ा आत्मविश्वास दिखाया था। संकल्प लिया था।

राहुल को क्यों कहना पड़ी थी यह बात कि में अकेले चलूंगा। क्यों कि जिस सभा में कहा था वहां लोग उनसे माफी की मांग कर रहे थे। सिविल सोसायटी के नाम पर वह सभा जोड़ी गई थी। जो यह समझ रही थी कि उनके समर्थन से ही यात्रा चलेगी। कांग्रेस विरोधी मानसिकता के वे लोग कह रहे थे कि अतीत में कांग्रेस ने बहुत गलतियां की हैं। राहुल उनके लिए माफी मांगे तब हम साथ देने पर विचार करेंगे!

मगर जनता ने राहुल की यात्रा सफल कर दी। कोई इसका श्रेय नहीं ले सकता। मगर यात्रा यात्रा है। जैसे कठोर तप के बाद भी तपस्वी शंकर जी से वरदान मांगते थे। राहुल शिव जी का नाम सबसे ज्यादा ले रहे हैं। वैसे भी कश्मीरी पंडितों के अराध्य शिव जी ही होते हैं। उनका सबसे बड़ा त्यौहार महाशिरात्रि होता है।

तो राहुल कहते हैं कि मैं मांगता हूं। सबके शुभ की कामना करता हूं। देश की। जनता की। तो शुभ क्या है? सत्य क्या है ? सुन्दर क्या है ? जनता की भलाई। और उसके लिए राहुल को सोनिया की तरह सत्ता दूसरे को नहीं सौंप देना होगी। एक बार सरकार में कर के देखा जा चुका है। एक बार अभी संगठन में कि खरगे को अध्यक्ष बना दिया।

परिणाम आएंगे। लेकिन राहुल को और अगर उनके पास कोई वाकई उनकी चिन्ता करने वाला देश और राजनीति को समझने वाला है तो उसे याद रखना चाहिए रनर के सहारे रन नहीं बनते हैं। रनर कभी, थोड़े से समय के लिए होता है। अगर लंबा रख लिया जाए तो बैट्समेन को रन आउट करवा देता है।

स्वतंत्र पत्रकार एवं विश्लेषक है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।

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