विचार विमर्श : विभाजित विपक्ष मोदी को फिर जिताएगा

विरोधी-एकता का एक और मोर्चा

2024 का लोकसभा चुनाव अगर विपक्ष एक होकर नहीं लड़ेगा तो मोदी को हराना मुश्किल है। वोटों के बंटवारे से ज्यादा यह प्रचार काम करेगा कि विपक्ष में फूट है। मीडिया पूरी तरह मोदी के पक्ष में काम कर रहा है। केजरिवाल भी मोदी के बराबर ही मीडिया को खुश करने की कोशिश करते हैं और मीडिया इसके बदले में उन्हें प्रमुख विपक्षी नेता के तौर पर उभारता भी है। मगर मीडिया के सर्वों में उसकी डिबेट में विश्लेषणों में नंबर वन मोदी जी ही रहेंगे। नंबर दो का स्थान वह मोदी जो को जिससे उन्हें वास्तविक खतरा नहीं है उसे देता रहेगा।

राहुल गांधी की यात्रा अपनी मंजिल पर पहुंच गई है। चार हजार किलोमीटर से ज्यादा चल कर लेकिन मीडिया यही बता रहा है कि उसका इम्पैक्ट कुछ नहीं है। बरसात, गर्मी, सर्दी सब झेलते हुए करीब पांच महीने से राहुल पैदल चले जा रहे हैं। हजारों लोगों से मिलते हुए। मगर मीडिया कहता है कि राहुल नहीं मोदी जी को चुनौति देंगे अरविन्द केजरीवाल। जिनके बारे में कहा जाता है कि वह संघ की बी टीम है।

पिछले दिनों कई क्षेत्रिय दलों ने अपने राज्यों में भाजपा को हराया। ममता बनर्जी ने बंगाल में, केजरीवाल ने दिल्ली में, केसीआर ने तेलंगाना में, बिहार में तेजस्वी ने लगभग बराबर की टक्कर दी थी और अब नीतीश के साथ मिलकर सरकार भी बना ली। ऐसे ही और भी कई राज्यों में बीजेपी के लिए चुनौतियां बनी हुई हैं। मगर केन्द्र में उसके लिए कोई चुनौति नहीं है।

कारण राज्यों में मोदी के खिलाफ लड़ने वाले सारे दल केन्द्र में एक होकर उनके खिलाफ लड़ने को तैयार नहीं है। समझ सब रहे हैं कि अलग अलग लड़ने से या तीसरा मोर्चा बनाने से फायदा मोदी जी को ही होगा। मगर कांग्रेस को फायदा न हो जाए इस डर से वे कांग्रेस के साथ विपक्षी एकता को तैयार नहीं हो रहे हैं।

लेकिन यह समय कांग्रेस के फायदे नुकसान के आकलन का नहीं है। समय है देश के फायदे नुकसान के आकलन का। कौन नहीं जानता कि अगर इस बार भी मोदी आ गए तो विपक्ष नाम की चीज देश से खत्म हो जाएगी। आज सारी संवैधानिक संस्थाएं अपना अस्तित्व खो चुकी हैं। मीडिया, चुनाव आयोग, न्याय व्यवस्था, ब्यूरोक्रेसी सब। केवल राजनीति ही एक ऐसी चीज है जो मोदी जी को चैलेंज कर रही है। विपक्ष आज भी बोल रहा है। कोई दल कम बोलता है कोई ज्यादा। मगर जब भी मौका होता है कोई न कोई बोलता है। लेकिन अब चुनाव पद्धति में जिस तरह धीरे धीरे परिवर्तन किए जाने की कोशिश हो रही है। और पूरे भारत में डबल इंजन सरकार बनाने की बात कही है उससे राज्यों की स्वायत्तता पूरी तरह खत्म हो जाएगी। कहा नहीं जाएगा मगर देश एक दलीय शासन व्यवस्था की तरफ बढ़ जाएगा।

अभी बीबीसी पर प्रतिबंध लगाने पर अमेरिका ने तीव्र प्रतिक्रया व्यक्त की है। उसने कहा है प्रेस की स्वतंत्रता लोकतंत्र की सबसे बड़ी जरूरत है। अगर प्रेस का गला घोंट दिया जाएगा तो लोकतंत्र खतरे में पढ़ जाएगा। हमारे यहां प्रेस के पहले ही गोदी में बिठा लिया गया है। अधिकांश मीडिया यह भूल गया कि प्रेस शाश्वत विपक्ष होता है। जनता की बात सरकार तक पहुंचाने के लिए। आज उल्टी गंगा बह रही है। मीडिया सरकार का पक्ष जनता को बहुत फोर्सफुली बताता है। जोर देकर कहता है कि सच यह है। जनता को अपनी आंखों से जो बेरोजगारी, मंहगाई, निजी क्षेत्रों में जा चुकी चिकित्सा और शिक्षा में लूट, चीन का वर्चस्व, नफरत विभाजन की राजनीति दिख रही है उसे वह कहता है कि यह आपकी आंखों का भ्रम है। असली चीज तो हिन्दु मुसलमान है। बस उसे खेलते रहो। सब समस्याओं का हल निकल जाएगा।

अग्निवीर जैसी युवाओं का भविष्य खराब करने वाली और सेना में कमजोरी लाने वाली योजना अगर मोदी जी के अलावा कोई और नेता या दल लागू करता तो अभी तक तूफान आ चुका होता। देश में एक बड़ा आंदोलन खड़ा हो जाता। लेकिन अब सब चुप हैं। हिन्दु मुसलमान के नशे में चूर किसी को कुछ नहीं दिख रहा। इसी तरह चिकित्सा और शिक्षा पूरी तरह निजी हाथों में जा चुकी है। जहां पहले मुफ्त में लोगों को इलाज मिल जाता था। वहां आज गरीब को भी खांसी जुकाम के लिए भी प्राइवेट डाक्टरों के पास जाना पड़ता है। पहले सरकारी स्कूलों में सब बच्चों को एडमिशन मिल जाता था। साक्षरता दर उसी से सुधरी है। और उच्च शिक्षा भी उन्हीं सरकारी कालेजों, विश्वविद्धायलयों, आईआईटी, मेडिकल, आईआईएम से मिली है। मगर आज गांव गांव में प्राइवेट स्कूल और अस्पताल खुल गए हैं। जहां के मंहगे खर्चों ने सिर्फ गरीबों की ही नहीं निम्न मद्यमवर्ग और नौकरी पेशा मध्यम वर्ग की भी जान निकाल दी है। अभी कोरोना के समय लोगों ने देखा कि सरकारी अस्पतालों में कोई व्यवस्था नहीं थी। प्राइवेट अस्पतालों ने कैसी लूट मचाई थी। अभी बांग्ला देश की लेखिका तस्लीमा नसरीन ने अपने को अपंग बना देने की मेडिकल लूट का जो हाल लिखा है वह इस प्राइवेट चिकित्सा तंत्र का भयानकतम चेहरा है।

किसी भी विकासशील देश में स्वास्थय और शिक्षा सरकारी क्षेत्र से बाहर नहीं जाना चाहिए। यहीं दोनों क्षेत्र देश को विकाससील से विकसित बनाते हैं। मजबूत और पढ़े लिखे लोग। लेकिन विडबंना यह है कि हम जा पीछे की तरफ रहे हैं और समझ खुद को विकसित देशों के भी गुरु रहे हैं। विश्व गुरु।

विश्व गुरु बनो मगर अपने मुंह मियां मिट्ठू नहीं। दुनिया कहे तब विश्व गुरु होगें। और उसके लिए देश में समानता, स्वतंत्रता, न्याय, धर्म निरपेक्षता के मूल्य स्थापित करना होंगे। जो हो रहे थे। पूरी दुनिया तारीफ करती थी। मगर आज भारत की पहचान फिल्मों का विरोध और कैसी देशभक्ति की फिल्म का करने, विदेशी फिल्म बीबीसी की रोकने, बाबाओं के चमत्कार का राजनीतिक समर्थन करने, लिंचिंग, दलित पिछड़ों पर अत्याचार बढ़ने से हो रही है। ऐसे कैसे हमें विश्व गुरु बनेंगे? केवल संघ परिवार और गोदी मीडिया के कहने से?

विपक्षी एकता आज की सबसे बड़ी जरूरत है। विपक्ष पर आज यह बात एकदम सटीक लागू होती है कि “ न समझोगे तो मिट जाओगे . . . ! “ अलग अलग कोई मोदी जी से नहीं लड़ सकता। उनके साथ सारी संवैधानिक संस्थाएं हैं। अभी चुनाव आयोग रिमोट वोटिंग लागू करने जा रहा है। विपक्ष ने विरोध किया मगर एक होकर दम से नहीं किया तो उसका कोई असर होता नहीं दिख रहा। कहीं मुद्दा ही नहीं बना। अगर रिमोट वोटिंग हो गई तो कौन डालेगा और किसके पक्ष में यह कोई बताने की बात है? और न ही यह बताने की बात है कि अगर रिमोट वोटिंग लागू हो गई तो नेक्स्ट स्टेप आन लाइन वोटिंग होगी। आपको बताया जाएगा कि आप डिजिटल युग में आ गए हैं। वोटिंग में लाइनों में लगने की जरूरत नहीं। घर बैठे या हम व्यवस्था कर देंगे वहां से एक बटन दबाकर आप वोट डाल सकते हैं। उसका ऐसा प्रचार होगा कि जो विरोध करेगा वह पिछड़ा कहलाएगा। देश को आगे बढ़ने से रोकने वाला।

सबसे बड़ा मुद्दा लोकतंत्र का है। संवैधानिक संस्थाओं को बचाए रखने का है। कांग्रेस के फायदे नुकसान का नहीं है। विपक्ष के सभी दलों को यह बात समझना चाहिए। कांग्रेस उन्हें सत्तर साल में खत्म नहीं कर पाई मगर मोदी जी दस साल में कर देंगे।

स्वतंत्र पत्रकार एवं विश्लेषक है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।

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