ईडी-सीबीआई के निदेशकों का कार्यकाल बढ़ाने का खेल…

ईडी-सीबीआई के निदेशकों का कार्यकाल बढ़ाने का खेल...

संजय कुमार सिंह : आज के सभी अखबारों में ईडी और सीबीआई के निदेशक का कार्यकाल बढ़ाने की खबर प्रमुखता से है। सरकार जब ऐसी एजेंसियों का उपयोग अपने विरोधियों पर निशाना साधने के लिए करती रही है तो इस तरह कार्यकाल बढ़ाना लोगों (खासकर विरोधियों) में डर पैदा करेगा। और सरकार को मनमानी करने की आजादी मिलेगी। सरकार मनमानी करने के लिए मजबूती या ताकत कैसे हासिल कर रही है वह तो समझना ही चाहिए। पर आज सभी अखबारों ने इस खबर के अलग-अलग पहलुओं को महत्व दिया है और एक अखबार का जोर एक ही पक्ष पर है जबकि सरकार कई तरह से गलत है या मनमानी कर रही है। इसीलिए मुद्दा यह है कि अखबार भी कितनी खबर दें और दें तो पाठक भी क्या-क्या नोट करे? 

द टेलीग्राफ ने आज इस खबर को सेकेंड लीड बनाया है। लीड त्रिपुरा में दो महिला पत्रकारों को परेशान करने का मामला है। जो दूसरे अखबारो में इतनी प्रमुखता से नहीं है। पहले पन्ने पर है तो सिंगल कॉलम में या फिर गायब। टेलीग्राफ का शीर्षक है, ईडी अध्यादेश से डर बढ़ा। इसमें बताया गया है कि इन अध्यादेशों से सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को बेअसर किया जा सकेगा। इंडियन एक्सप्रेस ने फ्लैग शीर्षक लगाया है, सुप्रीमकोर्ट ने कहा था कि ईडी के प्रमुख को अब और विस्तार नहीं दिया जा सकता है। (जवाब में) सरकार अध्यादेश ले आई। इनका (सीबीआई निदेशक का भी) कार्यकाल बढ़ाकर पांच साल कर दिया। एक्सप्रेस ने उपशीर्षक में लिखा है कि इसका फायदा ईडी निदेशक संजय मिश्रा को मिल सकता है। उनका कार्यकाल इस हफ्ते खत्म हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश आ चुका है और अब यह अध्यादेश और उसकी खबर को इन तथ्यों के आलोक में देखना चाहिए।  

मोटे तौर पर स्पष्ट है कि देश के भिन्न सरकारी या स्वायत्त संस्थाओं को नियंत्रण में करने के सरकारी उपायों के तहत सीबीआई और ईडी के निदेशकों का कार्यकाल बढ़ाया गया है। उसके लाभार्थी और लाभ पहुंचाने के लिए अपनाए गए उपाय, या उसका विरोध बताने की बजाय अखबार अगर एक सामान्य सरकारी कार्रवाई की तरह प्रकाशित करें तो आम लोगों को सरकारी चालों की जानकारी कैसे होगी? आज यह खबर तीन अखबारों में लीड है। तीनों की प्रस्तुति देखिए। सबसे बड़ी बात है कि अखबार भी क्या-क्या बताएं, पाठक भी कितना जानें, क्या-क्या पढ़ें। वह तो 15 लाख या मंदिर या अनुच्छेद 370 या धर्म विशेष के लोगों को ‘कसने’ के लालच में फंसा हुआ है। फिर भी मुद्दा तो यही है कि सरकार कितनी ईमानदार या नैतिक है। 

द हिन्दू ने लिखा है सीबीआई, ईडी के प्रमुख का कार्यकाल अब पांच साल हो सकता है। इसका मतलब हुआ कि जिनका कार्यकाल समाप्त हो रहा था उन्हें पद पर बनाए रखने का अधिकार सरकार ने हासिल कर लिया है और इसके लिए (उपशीर्षक है) संसद की सदन से कुछ ही हफ्ते पहले सरकार ने अध्यादेश जारी कर दिया है। बेशक यह सरकार के अधिकारों का दुरुपयोग है और संसद के सत्र की घोषणा से पहले इस तरह अध्यादेश लाना कानूनन भले गलत न हो, खबर तो है। लेकिन धार्मिक आधार पर बंटी जनता ऐसी खबरों पर कितना ध्यान देगी। हालांकि हिन्दू ने कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला के इस आरोप को प्रमुखता से छापा है कि मोदी सरकार  ईडी और सीबीआई का उपयोग सत्ता हथियाने के लिए अपने गुर्गों की तरह करती है …. अब (उसके मुखिया को) पांच साल का कार्यकाल बतौर ईनाम दिया गया है। 

माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा है कि संसद का सत्र 29 नवंबर से शुरू हो रहा है समीक्षा से बचने के लिए केंद्र सरकार ने रविवार को अध्यादेश लागू कर दिया। इस जल्दबाजी से साफ है कि दाल में कुछ काला है। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे एक समान्य खबर की तरह छापा है और लीड के साथ बॉक्स में जो विस्तार छपता है उसका शीर्षक भी ‘सरकारी’ है। (कार्यकाल) विस्तार राष्ट्रहित में। अखबार ने यह नहीं बताया है कि ये राष्ट्रहित कौन, कैसे तय करता है। इसकी बजाय अखबार ने बताया है कि अध्यादेश में यह प्रावधान है कि विस्तार की सिफारिश एक समिति करेगी और उसे लिखित में दर्ज करना होगा कि यह राष्ट्रहित में है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और अभी तक की व्यवस्था के बावजूद कार्यकाल बढ़ाना राष्ट्रहित में कैसे हो सकता है यह मुझे खबरों से पता नहीं चला। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर क्रिकेट की तस्वीर और विज्ञानप के बीच सिंगल कॉलम में है। इसका शीर्षक चार लाइन में है और खबर कुल 88 शब्दों की है। विस्तार अंदर के पन्ने पर है। 

दैनिक जागरण ने इसे “अहम फैसला” बताया है और लिखा है कि दो साल के बाद मिल सकेगा एक-एक साल का तीन सेवा विस्तार। स्पष्ट है कि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बेअसर करेगा और अखबार ने यह सब एक बॉक्स में बताया है और उसे ‘अधिकृत’ व ‘कानूनी’ बनाने के लिए राष्ट्रपति की तस्वीर भी लगाई है। इसमें पहली ‘जानकारी’ है – अपरिहार्य परिस्थितियों का हवाला देते हुए लाया गया अध्यादेश। एक बिन्दु है, “सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, असाधारण परिस्थिति में ही कार्यकाल बढ़ाए जाएं”। राष्ट्रपति की तस्वीर वाले इसी बॉक्स में तीन बिन्दुओं का शीर्षक है, दोनों तोते पिंजड़े में कैद रखना चाहती है सरकार।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।

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