मौत का मुहाना – राख के ढेर मामले में जनसुनवाई के फरमान का ग्रेसिम ने उड़ाया मखौल

मौत का मुहाना - राख के ढेर मामले में जनसुनवाई के फरमान का ग्रेसिम ने उड़ाया मखौल

नागदा। शिवराज सरकार प्रदेश में भले अच्छा कार्य करें ,लेकिन धरातल पर जनसुनवाई जैसी योजना का क्या हश्र हो रहा है, उससे सरकार की छवि पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, उस सच का आईना एक सूचना अधिकार में सामने आया है।जाहिर हैकि समूचे प्रदेश में शासन की एक योजना के तहत प्रत्येक मंगलवार जन सुनवाई होती है, जनता अपनी फरियाद लेकर आती और उनकी मुराद को त्वरित निपटाने का प्रशासन दावा भी भरता है। लेकिन नागदा जैसे शहर में जनसुनवाई कार्यक्रम में लगभग आधा दर्जन आवेदन की मांग पर प्रशासन की कार्रवाई तो दूर कार्यवाही के लिए प्रशासन के फरमान को रसूखदार हवा भी कर देते हैं । प्रशासन बेबस हो जाता।  लोगों की जान का दुश्मन बनी एक जोखिम के प्रति प्रशासन कितना सजग है, उसकी प्रमाणिक पोल महज 24 घंटे में सूचना अधिकार के एक आवेदन ने उजागर की है।

मामला-लील गई थी जिदंगी
औधोगिक नगर नागदा जिला उज्जैन में मुक्तेश्वर महादेव मंदिर के पास ग्रेसिम के अपशिष्ट पदार्थ राख की पहाड़नुमा आकृति के धंसने से गत 23 जनवरी को एक मजदूर अजय चंद्रवंशी पिता भारत उम्र 22 वर्ष निवासी गांव गिंदवानियां दब कर मौत का शिकार हुआ। घटना के बाद शहर के कई जागरूक लोगों ने एसडीओ राजस्व की जनसुनवाई में प्रकरण उठाया। जिसमे ग्रेसिम प्रबंधन के खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज करने की मांग शामिल थी। साथ ही राख का ढेर ग्रेसिम प्रबंधन ने किसकी अनुमति से संचय किया था, आदि प्रमुख बाते थी । सरकारी भूमि पर राख एकत्रित कर अतिक्रमण का मसला भी था। एसडीओं के निर्देश पर मौजा पटवारी ने जो जांच रिपोर्ट सौंपी उसने प्रशासन के सारे तंत्र और जनप्रतिनिधियों का चिढा कर रख दिया। यह रिपोर्ट 14 फरवरी को एसडीओ राजस्व के हाथों में पहुंचीै।

इस रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि राख का यह ढेर ग्रेसिम का है। जिस पर जोखिम अभी मंडरा रही है। भविष्य में और भी दुर्घटना का खतरा है। पटवारी की इस रिपोर्ट के बाद शिकायतों का संदर्भ देकर, एसडीओं ने ग्रेसिम प्रबंधन के नाम एक पत्र भेजकर ग्रेसिम प्रबंधन से तीन दिनों ंमें राख के ढेर को लेकर क्या कार्य योजना थी, जानकारी मांगी तो ग्रेसिम प्रबंधन ने उसका मखौल उड़ा दिया। एसडीओ राजस्व आशुतोष गोस्वामी ने अपने हस्ताक्षर से 10 फरवरी 2023 को ग्रेसिम प्रबंधन के नाम पत्र जारी किया। इसमें तीन दिन की समय अवधि में जानकारी प्रस्तुत करने की हिदायत थी। एसडीओ (राजस्व) के इस निर्देशित पत्र का यह हश्र हुआ कि तीन दिन के बजाय 13 दिन गुजर गए उसके बाद भी ग्रेसिम प्रबंधन ने डिप्टी कलेक्टर जैसे पद पर आसीन अधिकारी के निर्देश को हवा में उड़ा दिया। उसके बाद अब प्रशासन बेबस हैै। ग्रेसिम प्रबंधन ने 23 जनवरी 2023 की शाम तक निर्देश का पालन तक नहीं किया वह भी एक संवेदनशील मामले में। मजेदार बात यह हैकि जोखिम से लबरेज यह राख का ढेर आज भी सीना ताने खड़ा है। प्रशासन ने इस जोखिम को हटाने के लिए आज तक कोई कार्यवाही नहीं की है। संभव और किसी अप्रिय घटना का इंतजार है। प्रशासन इतना बेबस हैकि इस मामले में ग्रेसिम को इस ढेर को हटाने के लिए नोटिस तक नहीं भेजा है। जबकि पटवारी ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा कर दिया हैकि यह ग्रेसिम की राख का ढेर है। और अब भी दुर्घटना की संभावना है। जनसुनवाई में आए आवेदनों में भी इसी प्रकार की मांग उठी थी। इसे हटाने की कोई कार्यवाही तो दूर नोटिस तक नहीं दिया गया। जबकि यह राख का ढेर शासकीय भूमि पर है।

यह पूरा मामला इन पंक्तियों के लेखक के एक विशेष सूचना अधिकार में उजागर हुआ। जो भी तथ्य लिखे जा रहे उसके प्रमाणित प्रमाण सुरक्षित है। यह एक ऐसा सूचना अधिकार आवेदन था, जिसमें किसी के जीवन एवं स्वतंत्रता से जुड़ी जानकारियों को अधिनियम की धारा 7(1) में मात्र 48 घंटे में प्रदान करने का प्रावधान है। पटवारी की उस जांच रिपोर्ट को संलग्न कर सूचना अधिकार आवेदन में यह बताया थाकि इस रिपोर्ट में राख का यह ढेर अभी भी जनता की जान का खतरा बना हुआ है। इस पर कार्यवाही की जानकारियां 4 बिंदु में मांगी गई थी।

40 मिनट में जानकारी पर हस्ताक्षर
पटवारी रिपोर्ट को आधार बना कर 22 फरवरी 2023 को सूचना अधिकार आवेदन एसडीओ राजस्व कार्यालय में एक बजकर 20 मिनट पर आवेदन प्रस्तुत किया गया। इस सूचना अधिकार की इतनी ताकत थीकि जो ग्रेसिम प्रबंधन 3 दिन के एवज में 13 दिनों बाद भी प्रशासन के एक उच्च अधिकारी के निर्देश को तव्वजो नहीं दे रहा था,  लेकिन इस आवेदन के मिलते ही महज 40 मिनट में बतौर लोकसूचना अधिकारी ठीक 2 बजे जानकारियां के दस्तावेजों पर जानकारियों पर हस्ताक्षर कर दिए। जिस पर बकायदा अधिकारी आशुतोष गोस्वामी ने हस्ताक्षर का समय भी 2 बजे दिनांक 23 फरवरी को अंकित किया। इस जानकारी को दूसरे दिन एक विशेष मेंसेजर की माध्यम से आवेदक को घर बैठे दस्तावेज उपलब्ध कराए गए।

प्रदूषण विभाग ने भी नहीं दी तवज्जो
विडंबना हैकि एक और जहां ग्रेसिम प्रबंधन की इस संवदेनशील प्रकरण में कोई जूं तक नही रेंगी, उधर प्रदूषण विभाग ने भी एक माह के बाद भी प्रतिवेदन नही सौंपा। जबकि 25 जनवरी को पत्र जारी कर इस घटना से संबधित कार्यवाही जांच प्रतिवेदन एसडीओं ने मांगा था।यह हास्यास्पद बात हैकि किसी की जान को जोखिम में डालने वाले राख के ढेर के मालिक पर सीघे कार्यवाही करने का अधिकार प्रशासन को है लेकिन यहा पर प्रदूषण विभाग के पाले में गेद डालकर प्रकरण को लंबित करने का प्रयास किया गया। जबकि जनसुनवाई में त्वरित एवं एक समय सीमा में शिकायतों का निराकरण करने का प्रावधान है।

इनकी फरियाद के प्रमाण
इस सूचना अधिकार में यह बात भी सामने आई कि जो मौत की घटना हुई थी उसको लेकर एसडीओं राजस्व की जनसुनवाई में आप पार्टी के नेता सुबोध स्वामी, नागरिक अधिकार मंच के अभय चोपड़ा  अखिल भारतीय श्री बलाई महासंघ के अध्यक्ष ओमप्रकाश परमार, भीम आर्मी पार्टी आजाद समाज पार्टी की और से मामला उठाया गया था। जिसका संदर्भ सूचना अधिकार के मिले इन दस्तावेजों में सामने आया है।

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