क्या यूपी में 2024 की तैयारियाँ प्रारंभ हो गईं हैं?

पूरे देश को अगर माफिया गिरोहों की दहशत से मुक्त कर विश्व का आदर्श राष्ट्र बनाना हो तो क्या उत्तर प्रदेश द्वारा किए जा रहे प्रयोगों पर संपूर्ण भारत या कम से कम भाजपा-शासित प्रदेशों में अमल प्रारंभ नहीं कर देना चाहिए ?  उत्तर प्रदेश में जिस प्राथमिकता के आधार पर माफिया गिरोहों के ख़िलाफ़ कार्रवाई को अंजाम दिया जा रहा है उससे राज्य में अपराधियों की कुल संख्या और उनकी ताक़त का अनुमान लगाया जा सकता है ! इसी प्रकार पूरे देश की स्थिति के बारे में भी कल्पना की जा सकती है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़, पिछले छह वर्षों के दौरान अकेले उत्तर प्रदेश में ही पुलिस और अपराधियों के बीच दस हज़ार से ज़्यादा एनकाउंटर्स हो चुके हैं। लगभग छह हज़ार अपराधियों की धर-पकड़ इस दौरान हुई है। इससे समस्या की गंभीरता का पता चलता है।

(साल 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद एडीआर(एसोसिएशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) के हवाले से प्रकाशित एक खबर में बताया गया था कि तब नव-निर्वाचित 539 सदस्यों में लगभग आधों (233 अथवा 43%) के ख़िलाफ़ विभिन्न मामलों में आपराधिक प्रकरण लंबित थे। इनमें 116 (39%) भाजपा, 29 (57%) कांग्रेस , 13 (81%)जद(यू) ,10 (43% )द्रमुक तथा नौ (41%) तृणमूल के सांसद बताए गए थे। 2014 के मुक़ाबले यह संख्या 26 प्रतिशत अधिक थी।)

मीडिया के प्रायोजित दंगलों के ज़रिए जनता का मन इस बात के लिए तैयार किया जा रहा है कि पंद्रह अप्रैल, शनिवार की रात प्रयागराज (इलाहाबाद) में एक मिनिट से भी कम समय में जो घटित हुआ उसके बाद से प्रदेश के नागरिकों ने राहत की साँस ली है। ‘गोदी मीडिया’ देश को समझा रहा है कि एक ऐसा अपराधी जिसके ख़िलाफ़ सौ से अधिक गंभीर आरोप थे ,जिसके ख़ौफ़ से प्रदेश की जनता चार दशकों से पीड़ित थी ,उसके ख़ात्मे का संदेश अब दूसरे अपराधियों तक भी जाएगा। जिन अन्य अपराधियों के ख़िलाफ़ अगली कार्रवाई को अंजाम दिया जाना है उनके बारे में भी मुनादी कर दी गई है।

चूँकि मारे गए अपराधी का संबंध अल्पसंख्यक समुदाय से था ,मीडिया के जागरूक पत्रकार यह समझाने की कोशिश में भी लगे हैं कि उसकी ज्यादतियों से पीड़ितों में ज़्यादातर उसी के समुदाय के लोग थे। इन प्रयासों का छद्म संदेश यह है कि अल्पसंख्यकों को तो अब राहत की साँस लेना चाहिए। एक प्रमुख हिन्दी दैनिक ने अपने लखनऊ स्थित संवाददाता के हवाले से इस शीर्षक से खबर प्रकाशित की है कि :’ मुस्लिम ही ज़्यादा पीड़ित थे अतीक और अशरफ़ के जुर्म से।’ खबर में बताया गया है कि अतीक के ‘44 साल के आपराधिक जीवन में उसके जुल्मों से पीड़ित लोगों में मुस्लिम समाज की भी लंबी सूची है। ‘व्यवस्था-आश्रित मीडिया जानता है कि कोई भी पाठक सवाल नहीं पूछने वाला है कि क्या अपराधियों और उनसे पीड़ित लोगों की सूचियाँ भी अब जाति और संप्रदायों के आधार पर तैयार होने लगीं हैं ?

प्रयागराज की घटना के अगले ही दिन मैंने एक ट्वीट जारी किया था कि यूपी को उसकी आबादी (लगभग 25 करोड़) के आधार पर अगर एक राष्ट्र मान लिया जाए तो वर्तमान में राष्ट्रसंघ के 193 सदस्य देशों में वह पाँचवे नंबर पर आ जाएगा। उसके ऊपर के तीन देश चीन ,अमेरिका और इंडोनेशिया होंगे। आबादी में भारत अब पहले क्रम पर हो गया है। ट्वीट में बताए गए आँकड़े की मंशा दुनिया के दूसरे मुल्कों की तुलना में यूपी की ताक़त को राष्ट्र के रूप में एक अज्ञात भय के साथ व्यक्त करना था। भय यह कि एक ऐसी सर्वमान्य संवैधानिक व्यवस्था जिसमें क्रूर से क्रूर अपराधी (मान लीजिए 26/11 का गुनहगार कसाब )को भी क़ानूनन सज़ा घोषित होने तक जीवन का अधिकार हासिल है,क्या राज्य की अभिरक्षा में उसके होते हुए किसी तीसरी बाहरी शक्ति द्वारा उसके प्राणों का हरण किया जा सकता है ? अगर ऐसा होता है तो इतने बड़े राज्य-राष्ट्र में आम नागरिक को सुरक्षा की गारंटी कहाँ से प्राप्त होगी ?  क़ानून की संवैधानिक हैसियत और उसकी ज़रूरत कितनी रह जाएगी ?

इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर रहा है कि हर अपराधी को क़ानून के मुताबिक़ कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए, ज़ुल्म उसने चाहे किसी भी जाति या संप्रदाय से जुड़े व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के प्रति किए हों। अतीक और उसके भाई की सरे आम हत्या और उस दौरान पुलिस की संदेहास्पद भूमिका किसी भी सभ्य नागरिक समाज के लिए दहशत पैदा करने वाली है। विशेषकर उन परिस्थितियों में जब अपराधी इस बात को लेकर पूर्व से आशंकित था कि उसकी हत्या हो सकती है और उसने देश की सर्वोच्च अदालत से उसने अपने संरक्षण के लिए आवेदन भी किया था। सर्वोच्च अदालत ने उसकी प्रार्थना को इस टिप्पणी के साथ ख़ारिज कर दिया था कि राज्य की व्यवस्था उसे संरक्षण प्रदान करेगी। क्या इन कारणों की ईमानदारी से जाँच हो पाएगी की राज्य की व्यवस्था सर्वोच्च न्यायालय की भावनाओं का सम्मान करने में किन कारणों से विफल रही ?

अतीक पिछले चार दशकों से अपराधों का साम्राज्य चला रहा था। कई राजनीतिक दलों का संरक्षण भी उसे कथित रूप से प्राप्त था। वह एक बार के लिए लोकसभा और पाँच बार विधानसभा का सदस्य रह चुका था। निश्चित ही राजनीतिक दलों ने अतीक के अतीत की जानकारी के बाद ही उसे अपना उम्मीदवार बनाया होगा और जनता ने जिताया होगा। वर्तमान सरकार भी 2017 से राज्य की सत्ता में है !

सवाल यह है कि क्या केवल किसी एक हत्याकांड के चश्मदीद गवाह की राज्य में हुई हत्या इतनी उत्तेजक साबित हो सकती है कि उसके बाद चलने वाला घटनाक्रम इतने बड़े प्रदेश में क़ानून-व्यवस्था की नींव हिला दे ? या फिर कोई अन्य कारण हैं जिनका खुलासा होना बाक़ी है ? देश के भविष्य से जुड़ी अतीत की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं की चौंका देने वाली जानकारियाँ इन दिनों आश्चर्यजनक रूप से प्रकट हो रहीं हैं ! हो सकता है अतीक की हत्या से जुड़े रहस्य भी किसी दिन फूटकर बाहर आ जाएँ ! पूछा तो यह भी जा रहा है कि यूपी में जो कुछ भी चल रहा है क्या उसे 2024 की तैयारियों के साथ जोड़कर भी देखा जा सकता है ? अगर ऐसा ही है तो आने वाले दिनों में और भी काफ़ी कुछ देखने-समझने की तैयारी रखना चाहिए ?

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। 

नमस्कार, लेखक वरिष्ठ पत्रकार है, दैनिक भास्कर के पूर्व समूह संपादक हैं। पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें।

Log In

Forgot password?

Don't have an account? Register

Forgot password?

Enter your account data and we will send you a link to reset your password.

Your password reset link appears to be invalid or expired.

Log in

Privacy Policy

Add to Collection

No Collections

Here you'll find all collections you've created before.

Exit mobile version