विपक्ष एक नहीं हुआ तो रिमोट वोटिंग के बाद आन लाइन वोटिंग भी होगी!

भारत जोड़ो यात्रा : मध्य प्रदेश में राहुल पूरे फार्म में, माहौल बना दिया

2023 क्या है कांग्रेस के लिए? तख्त या तख्ता! या तो वह विपक्षी एकता को मजबूत करे, सबको विश्वास में ले और नाइन प्लस वन जम्मू कश्मीर जो संभावित है के विधानसभा चुनावों में से ज्यादा से ज्यादा जीते या भारत जोड़ो यात्रा से प्राप्त बढ़त को गंवा दे। 

2012 – 13 में उस समय के विपक्ष ने अन्ना हजारे के आंदोलन से बने माहौल को राजनीतिक रूप दे दिया था। और पहले दिल्ली विधानसभा और फिर लोकसभा पर कब्जा कर लिया था। उसके साथ मोदी का रथ चल पड़ा। और उन्होंने हरियाणा, महाराष्ट्र और कई दूसरे प्रदेश जीतना शुरू कर दिए। लेकिन बंगाल में आकर उनका रथ रुक गया। उसे ममता बनर्जी ने थाम लिया। वैसा अन्य विपक्षी नेता नहीं कर पाए। 

लेकिन अब 2024 के लिए सभी विपक्षी दलों को सोचना होगा कि अगर इस बार भी मोदी जीत गए। उनकी हैट्रिक हो गई तो फिर उनकी ( विपक्ष की) राजनीति कितना बचेगी? ऐसा नहीं हो सकता कि कांग्रेस खत्म हो जाए और सपा, आम आदमी पार्टी और टीएमसी बची रहे। यह 1967 या उसके बाद का वह समय नहीं है कि कांग्रेस को कमजोर करने का मतलब बाकी पार्टियों के लिए जगह बनना हुआ करती थी। आज देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस को कमजोर करने का मतलब केवल भाजपा को मजबूत करना होगा। कांग्रेस का स्पेस लेने की स्थिति तो तब आएगी जब बाकी विपक्षी दलों को उस स्थिति में  रहने दिया जाएगा। 

अभी यूपी में अखिलेश यादव ने एक बिल्कुल ही नई बात कही। बहुत खतरनाक बात। सिर्फ यह वाक्य कहा “ भाजपा और कांग्रेस एक हैं। “ इसका मतलब? जब दोनों में फर्क ही नहीं है तो कांग्रेस के साथ विपक्षी एकता मजबूत करने की क्या जरूरत है? अगर किसी से मिलना ही होगा तो भाजपा से भी मिला जा सकता है। यूपी में मायावती तो पहले ही भाजपा के खेमे में चली गई हैं। अब अखिलेश भी पूरी तरह तैयार हैं। ऐसे राज्य में कांग्रेस को अपनी अलग रणनीति बनाना होगी। मगर दूसरे राज्यों में उसे अभी से विपक्षी एकता के लिए काम करना शुरू करना होगा। 

कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को इस दिशा में पहल करना होगी। एक तरफ राहुल की यात्रा चल रही है। हर राज्य में उसे पिछले राज्य से ज्यादा जन समर्थन मिल रहा है। लेकिन 26 जनवरी को श्रीनगर में तिरंगा फहराने के साथ ही यह खत्म हो जाएगी। फिर इसके प्रभाव को कैसे बनाए रखा जा सकेगा?

जैसा कि शुरू में कहा कि मोदी और केजरीवाल ने अन्ना के आंदोलन का राजनीतिक फायदा उठाया। अगर नहीं उठाते तो कांग्रेस के लिए 2013 के दिल्ली विधानसभा और 2014 के लोकसभा इतने बुरे नहीं होते। अब हालत कुछ कुछ दस साल पहले जैसे ही हो रहे हैं। जनता परेशान है। मगर भरोसा नहीं हो रहा कि कोई एक उसे बेरोजगरी, महंगाई और दूसरी समस्याओं से निजात दिला सकता है। यह भरोसा सब विपक्ष के नेता मिलकर उसे दिला सकते हैं। 

यात्रा बहुत कामयाब है। मगर जब तक वह राजनीतिक प्रभाव नहीं डालेगी उसका कोई मतलब नहीं है। भारत जुड़ेगा तभी जब जोड़ने वालों के हाथों में ताकत होगी। बिना ताकत ( सत्ता) के राहुल कैसे भारत जोड़ेंगे? यात्रा ने तो उसके जुड़ने का एक माहौल बना दिया। जैसे इमारत से पहले कागज पर नक्शा बन जाता है। लेकिन आधुनिक और मजबूत भारत की इमारत तो तभी बनेगी जब आपके हाथ में बनाने के अधिकार हों। 

राहुल ने अपना काम कर दिया। वे कहते हैं कि जो अध्यक्ष जी कहेंगे मैं करूंगा। तो अध्यक्ष खरगे जी को उन्हें इस दक्षिण से उत्तर की यात्रा के बाद पूर्व से पश्चिम की यात्रा का कार्यक्रम सौंप देना चाहिए। और खुद विपक्षी एकता के काम में लग जाना चाहिए।

नीतीश कुमार ने अच्छी पहल की थी। दिल्ली आकर सोनिया गांधी से मिले थे। अन्य विपक्षी नेताओं से भी मिले थे। मगर अब शांत हो गए हैं। खरगे जी को सबसे पहले उन्हीं से जाकर मिलना चाहिए। नीतीश को आगे करना चाहिए। इस रास्ते में बहुत बाधाएं हैं। हर नेता के अपने डर और अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। लेकिन अगर साफ बात की जाए कि बड़ा खतरा किससे है और वह तुम्हारे और तुम्हारी पार्टी के अस्तित्व तक के लिए है तो एक कामन समझ विकसित होगी। अगर ताकत रही तो आपस में बाद में भी लड़ सकते हो लेकिन अगर तुम्हारी सारी ताकत ही खत्म कर दी गई तो फिर किसी से लड़ने क्या कुछ कहने योग्य भी नहीं बचोगे। हर विधानसभा चुनाव में हम देख रहे हैं कि भाजपा किस तरह लड़ रही है। ममता बनर्जी ने बंगाल बचा लिया। बिहार में तेजस्वी ने भी हिम्मत दिखाई तो आज नीतीश वापस आए। मगर यूपी में मायावती और अखिलेश ने हथियार डाल दिए तो आज वहां नगर निकायों के चुनाव में ओबीसी आरक्षण ही खत्म हो गया। दिल्ली मंल एमसीडी में बहुमत पाने के बाद भी केजरीवाल के लिए मेयर बनाना मुश्किल हो रहा है। भाजपा कम सीटें पाने का बावजूद मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव लड़ रही है। किसकी दम पर?  पैसा, पावर, ईडी, इनकम टैक्स, सीबीआई की दम पर। केजरीवाल सोच रहे है कि कांग्रेस को कमजोर करके वे उसकी जगह ले लेंगे। मगर उन्हें यह नहीं मालूम कि कांग्रेस की जड़ें बहुत गहरी हैं। उन्हें उखाड़ना मुश्किल है। हां लेकिन उसके कमजोर होने से बाकी दूसरी विपक्षी पार्टियों की जड़ें उखाड़ना मोदी जी के लिए आसान हो जाएगा। 

सारा विपक्ष अपनी आंखों से देख रहा है, माने या न माने कि राहुल की यात्रा से और चीन सहित आरएसएस और दूसरे सभी मुद्दों पर बेखौफ बोलने से राजनीतिक माहौल में बहुत अंतर आ गया है। भाजपा जो किसी भी राज्य में कैसे भी सत्ता में आना अपनी शान समझने लगी थी वह अभी हिमाचल में रुकी। शुरू में तो वहां भी हवा बनाई गई कि सरकार बनाने के फलाने विशेषज्ञ वहां जा रहे हैं। फलाने पहुंच गए। मीडिया चलाने लगा था कि भाजपा नेता इसके संपर्क में हैं, उसके संपर्क में हैं। कांग्रेस में फूट मगर आखिर में भाजपा को रूकना पड़ा। और वहां कांग्रेस की सरकार बनी। 

मूल बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी अब इतने मजबूत हो चुके हैं कि अगर 2024 में उनकी हैट्रिक हो गई तो उसके बाद राजनीति इतनी बदल जाएगी कि विपक्ष के लिए फिर विधानसभाएं तो छोड़िए, नगर पालिकाओं, पंचायतों में भी जगह नहीं बचेगी।

सारी संस्थाएं सरेंडर कर चुकी हैं। अभी चुनाव आयोग रिमोट कंट्रोल से प्रवासी मजदूरों के वोट डलवाने की तैयारी कर रहा है। नए साल में इसे लागू कर दिया जाएगा। कांग्रेस ने हल्का सा विरोध किया है। लेकिन अगर पूरे विपक्ष ने मिलकर इसे नहीं रोका तो 2024 में आयोग आन लाइन वोटिंग भी करवा देगा। 

कहा यह जाएगा कि वोटर बहुत परेशान होता है अब उसे कहीं जाने की जरूरत नहीं। घर बैठे वोट डालेगा। अब उसका वोट कौन डालेगा यह बताने की जरूरत नहीं। और अगर इसके साथ ही अनिवार्य वोटिंग कर दी तो हर मतदाता यही कहेगा कि भैया हमारा वोट डलवा देना नहीं तो बाद में मुसीबत आए। और जो पार्टी ताकत में होगी वह कहेगी आप निश्चिंत रहो आपका वोट डल जाएगा। और वोट हो जाएगा!

स्वतंत्र पत्रकार एवं विश्लेषक है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।

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