कभी चली ज्यादा, कभी चली थोड़ी, सिनेमा की यह बेमेल जोड़ी!

रोमांटिक, कॉमेडी, एक्शन और ड्रामा जैसे कथानकों पर ही फिल्में बनती हैं। लेकिन, चंद ऐसी कहानियों पर भी फ़िल्में बनी, जिन्हें देखकर दर्शक कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सके! इसलिए कि कुछ विषय ही ऐसे होते है। जबकि, माना जाता है कि फिल्में ऐसी ही होनी चाहिए, जिससे दर्शक खुद को कनेक्ट कर लें। लेकिन, बेमेल जोड़ियों जैसे कथानक पर बनी फिल्मों को देखकर दर्शक सोचता है कि क्या ऐसा हो सकता है! कई बार फिल्मों में दिखाई जाने वाली कहानियों को दर्शक पचा नहीं पाते। लेकिन, उन्हीं में से कुछ कहानियां हिट भी होती है। फिल्मों में दिखाया जाने वाला बेमेल जोड़ियों का रोमांस, वास्तव में समाज का एक रूढ़िवादी विचार है, जिसे तोड़ने की हिम्मत कम ही लोगों ने की। यही वजह है कि बेमेल प्रेम या प्रेम विवाह पर गिनती की फ़िल्में बनी। कुछ फिल्मों ने कम उम्र के पुरुष और अधिक उम्र की महिला के बीच प्रेम संबंधों को बेहद खूबसूरती से दिखाकर खूब तालियां बटोरीं। ऐसी फिल्मों में रेखा से लेकर शाहरुख खान और डिंपल कपाड़िया जैसे कलाकारों ने भी काम किया है।

कभी चली ज्यादा, कभी चली थोड़ी, सिनेमा की यह बेमेल जोड़ी!
      अब बात करते हैं सिनेमा के परदे पर दिखी ऐसी ही बेमेल जोड़ियों की। ऐसी फिल्मों का इतिहास काफी पुराना है। श्वेत श्याम युग में 1937 के दौरान सबसे पहले वी शांताराम ने इस विषय पर हिंदी और मराठी में ‘दुनिया ना माने’ और ‘कुंकू’ नाम से फिल्म बनाई थी। इसमें केशव दाते एक बुजुर्ग है, जो एक कच्ची उम्र की बच्ची को ब्याह कर ले आता है। इस बेमेल जोड़ी को बच्ची स्वीकार नहीं करती है और खेलकूद में ही व्यस्त रहती है। आखिर में जब बुजुर्ग को अपनी गलती का अहसास होता है, तो वो ‘कंकू’ की एक डिब्बी रखकर यह लिखकर आत्म हत्या कर लेता है कि वह बच्ची कहीं भी शादी करने के लिए स्वतंत्र है। फिल्म में वृद्ध रोज अपनी दीवार घड़ी में चाबी भरकर उसे चालू करता है। वी शांताराम ने घड़ी का प्रतीकात्मक प्रयोग कर अंतिम दृश्य में वृद्ध द्वारा उसके कांटों को रोककर आत्महत्या की कलात्मकता भर दी थी।
     इसके 20 साल बाद 1957 में एलवी प्रसाद ने राजकपूर, मीना कुमारी और राज मेहरा को लेकर फिल्म ‘शारदा’ फ़िल्म बनाई थी। राज कपूर और मीना कुमारी आपस में प्रेम करते हैं। उनके पिता विधुर है जिनकी एक अपाहिज बेटी भी है। राजकपूर को किसी काम से चीन जाना पड़ता है। उसका प्लेन क्रेश हो जाता है और उनके मरने की खबर आती है। पिता घर से अपने बेटे की सारी तस्वीर और निशानी हटा लेते हैं। इस बीच मीना कुमारी उनकी अपाहिज बेटी की नर्सिंग के लिए आती है और पसीजकर राज मेहरा से शादी कर लेती है। उधर, दुर्घटना से बचकर जब राजकपूर वापस लौटता है, तो पता चलता है उनकी प्रियतमा अब उनकी मां बन गई। वो इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करते और शराब पीकर मरणासन्न हो जाते हैं। तब मीनाकुमारी उनकी सेवा करके जान बचाती है। तब फिल्म के क्लाइमेक्स में राजकपूर उन्हें मां कहकर पुकारते है।
   1973 में फिल्म ‘प्रेम पर्बत’ का निर्देशन वेद राही ने किया है। फिल्म में सतीश कौल, हेमा मालिनी, रेहाना सुल्तान, नाना पलसीकर और आगा थे। इसमें भी नाना पलसीकर कम उम्र की अनाथ लड़की रेहाना सुल्तान से शादी करते हैं। लेकिन, उसकी वफादारी वृद्ध पति और युवा वन अधिकारी सतीश कॉल के बीच बंटी होती है, जिससे उसे प्यार हो जाता है। इस फिल्म का लता मंगेशकर का गाया गीत ‘ये दिल और उनकी निगाहों के साये’ आज भी पसंद किया जाता है। लेकिन, दुखद बात ये कि फिल्म का प्रिंट समय के साथ नष्ट हो गया, जिससे यह एक खोई हुई फिल्म बन गई!
       इसके बाद 1977 में आई रमेश तलवार की फिल्म ‘दूसरा आदमी’ में भी बेमेल जोड़ी का कथानक बुना गया था। यह फिल्म हॉलीवुड की फिल्म ‘फोर्टी कैरेट’ पर आधारित थी। इसमें राखी और ऋषि कपूर के बीच एक रिश्ता बताया गया था, वास्तव में यह एकतरफा लगाव था। ये एक युवा जोड़े और बड़ी उम्र की महिला की विवाहेत्तर कहानी थी। लीड रोल में ऋषि कपूर और नीतू सिंह साथ में अधेड़ महिला की भूमिका राखी ने निभाई थी। राखी को ऋषि कपूर में मृत पति शशि कपूर की छवि दिखाई देती है। जबकि, ऋषि कपूर इस सच से अनभिज्ञ होता है।
     2009 में आई अयान मुखर्जी की फिल्म ‘वेक अप सिड’ में रणबीर कपूर का किरदार उम्र में काफी बड़ी आयशा से प्यार करने लगता है। ये प्यार उसे काफी मैच्योर और सफल भी बनाता है। आयशा का किरदार निभाया था कोंकणा सेन शर्मा ने। फरहान अख्तर की फिल्म ‘दिल चाहता है’ में अक्षय खन्ना और डिंपल कपाड़िया के बीच भी ऐसा ही प्रेम संबंध दिखाया गया। फिल्म में डिंपल का तारा का किरदार अक्षय खन्ना के किरदार सिड से काफी बड़ा है। मीरा नायर की ‘ ए सुटेबल बॉय’ में मान कपूर के किरदार में ईशान खट्टर खुद से काफी बड़ी सईदा बाई से प्यार कर बैठते हैं। फिल्म में सईदा बाई का किरदार तब्बू ने निभाया।
   शाहरुख खान की फिल्म ‘माया मेमसाब’ में भी बड़ी उम्र की महिला और छोटे उम्र के लड़के के बीच प्रेम दिखाया गया था। 2002 में आई ‘लीला’ भी ऐसी लड़की की कहानी थी, जिसकी शादी बहुत कम उम्र में हो जाती है। बाद में उसे अपने से काफी कम उम्र के लड़के से प्यार हो जाता है। लीला का दमदार किरदार डिंपल कपाड़िया ने निभाया था। अमेजन प्राइम की फिल्म ‘बीए पास’ भी बड़ी उम्र की शादीशुदा महिला और एक किशोर के बीच संबंधों पर आधारित है। इस रिश्ते में पड़कर लड़के के हालात ऐसे हो जाते हैं कि वह जिगोलो बन जाता है। इस लिस्ट में एक नाम ‘खिलाड़ियों का खिलाड़ी’ फिल्म का भी है। फिल्म में रेखा और अक्षय कुमार के किरदारों के बीच न सिर्फ प्रेम संबंध दिखाए गए, बल्कि दोनों के बीच इंटीमेट सीन भी हैं। बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म सुपरहिट रही थी।
      अजय देवगन की फिल्म ‘दे दे प्यार दे’ में 50 साल के आदमी (अजय देवगन) का दिल 24 साल की लड़की (रकुल प्रीत) पर आ जाता है। मगर उसकी पहले से एक पत्नी (तब्बू) होती है, जो बाद में उससे मिलती है। पर्दे पर अलग-अलग किरदार निभाने वाले अभिनेता अमिताभ बच्चन ऐसा किरदार निभाने में पीछे नहीं रहे। ‘चीनी कम’ में उनकी अनोखी रोमांटिक जोड़ी दिखाई गई। अमिताभ बच्चन की उम्र 64 साल होती है और तब्बू 34 साल की। 1991 की फिल्म ‘लम्हे’ में अनिल कपूर और श्रीदेवी के बीच प्रेम प्रसंग गढ़ा गया था। मगर, श्रीदेवी की शादी कहीं और हो जाती है और फिर उन्हें एक बेटी होती है। श्रीदेवी का निधन हो जाता है। उसकी बेटी बड़ी होकर श्रीदेवी ही बनती है और फिर उसे अपनी उम्र से दोगुने अनिल कपूर से प्यार हो जाता है। इस फिल्म को उस समय के दर्शकों का पचा पाना मुश्किल था, इसलिए फिल्म फ्लॉप हो गई।
    2007 में आई फिल्म ‘निशब्द’ को लेकर उस समय में विवाद भी हुआ। क्योंकि, इसमें 20 साल की एक लड़की (जिया खान) और 62 साल के आदमी (अमिताभ बच्चन) के प्रेम संबंध को दिखाया गया था। इसमें अमिताभ की बेटी का किरदार निभाने वाली की दोस्त होती हैं, जिया खान और वो अपनी सहेली के घर में रहने लगती है। इस फिल्म की लोगों ने जमकर आलोचना की और फिल्म फ्लॉप हो गई थी। 2001 में आई फिल्म ‘दिल चाहता है’ से फरहान अख्तर ने डायरेक्शन की शुरुआत की थी. इस फिल्म में डिंपल कपाड़िया और अक्षय खन्ना के रिलेशनशिप को दिखाया था। फिल्म के क्लाइमेक्स में डिंपल के किरदार की मौत हो जाती है और अक्षय अकेले रह जाते हैं। ‘दे दे प्यार दे’ से पहले भी अजय देवगन इस कॉन्सेप्ट से जुड़ी एक फिल्म में काम कर चुके हैं। मधुर भंडारकर की फिल्म ‘दिल तो बच्चा है जी’ में अजय ने एक अधेड़ उम्र के बैंकर की भूमिका निभाई थी, जिसे अपनी इंटर्न से प्यार हो जाता है। ऐसी फ़िल्में बनाना आसान नहीं है । ये फ़िल्में तब ही दर्शकों को प्रभावित करती हैं, जब उनकी कहानी दमदार हो! सिर्फ बेमेल जोड़ियों की मोहब्बत तो दर्शक देखने से रहे!

Disclaimer: यह लेख मूल रूप से हेमंत पाल के ब्लॉग पर प्रकाशित हुआ है। इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। 

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