नेहा सिंह राठौर को दी गई धारा 160 सीआरपीसी के नोटिस की कानूनी स्थिति

कुछ हफ्ते पहले लोकगायिका नेहा सिंह राठौर को, उत्तर प्रदेश की कानपुर देहात की थाना अकबरपुर पुलिस ने उनके एक गीत पर, जो ‘यूपी में का बा’ पर धारा 160 सीआरपीसी के अंतर्गत एक नोटिस जारी करके नेहा से, कुछ स्पष्टीकरण मांगे थे। वह नोटिस अखबारों में और सोशल मीडिया में वायरल हुई। नेहा से मीडिया ने, कई सवाल पूछे, पर मीडिया के किसी पत्रकार ने पुलिस से यह सवाल नहीं पूछा और न ही इसकी पड़ताल ही की, कि, आखिर, धारा 160 सीआरपीसी या क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (दंड प्रक्रिया संहिता) के अंतर्गत यह नोटिस जारी करने वाली पुलिस को, इस मामले में, उपरोक्त प्राविधान के अंतर्गत, नोटिस जारी करने का कोई कानूनी अधिकार है भी या यह भी कोई दफा सरपट जैसी चीज है? 

नोटिस जिस लोकगीत पर जारी की गई है, उसके कारण क्या है यह तो नोटिस जारी करने वाले अधिकारी ही बता सकते हैं, मैं उस पर कोई टिप्पणी नहीं करने जा रहा हूं, बल्कि इस लेख में, धारा 160 सीआरपीसी के अंतर्गत समन करने की, पुलिस को जो अधिकार और शक्तियां दी गई है, उनकी व्याख्या कर रहा हूं। 

सीआरपीसी में धारा 160 का प्राविधान, गवाहों को बुलाने के लिए लागू होता है जिसे सामान्य रूप से, सफ़ीना  कहते है। प्राविधान यह कहता है। 

“साक्षियों की हाजिरी की अपेक्षा करने की पुलिस अधिकारी की शक्ति–

(1) कोई पुलिस अधिकारी, जो इस अध्याय के अधीन अन्वेषण कर रहा है, अपने थाने की या किसी पास के थाने की सीमाओं के अन्दर विद्यमान किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसकी दी गई इत्तिला से या अन्यथा उस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित होना प्रतीत होता है, अपने समक्ष हाजिर होने की अपेक्षा लिखित आदेश द्वारा कर सकता है और वह व्यक्ति अपेक्षानुसार हाजिर होगा :

परन्तु किसी पुरुष से [जो पन्द्रह वर्ष से कम आयु का है या पैंसठ वर्ष से अधिक आयु का है, या किसी स्त्री से या शारीरिक या मानसिक रूप से निर्योग्य किसी व्यक्ति से] ऐसे स्थान से, जिसमें ऐसा पुरुष या स्त्री निवास करती है, भिन्न किसी स्थान पर हाजिर होने की अपेक्षा नहीं की जाएगी।

(2) अपने निवास स्थान से भिन्न किसी स्थान पर उपधारा (1) के अधीन हाजिर होने के लिए प्रत्येक व्यक्ति के उचित खर्चों का पुलिस अधिकारी द्वारा संदाय कराने के लिए राज्य सरकार इस निमित्त बनाए गए नियमों द्वारा उपबन्ध कर सकती है।

यानी, सरकार, समन किए जाने पर आने जाने का व्यय भी देगी।

अब इसे विस्तार से देखते हैं ~ 

धारा 160(1) के अनुसार, एक जांच अधिकारी, किसी भी व्यक्ति को उपस्थित होने के लिए इस कानून के अंतर्गत नोटिस भेज सकता है,  यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हैं तो, 

1. व्यक्ति की उपस्थिति की आवश्यकता वाला आदेश, लिखित में होना चाहिए।

2. व्यक्ति वह है, जो मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होता है; 

 3. आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के तहत जारी होने वाले सम्मन में जांच अधिकारी का नाम, शीर्षक और पता के साथ-साथ प्राथमिकी और अपराध की जानकारी शामिल होनी चाहिए।

4. जांच के लिए बुलाया गया व्यक्ति जांच करने वाले पुलिस अधिकारी के थाने की सीमा के भीतर है या आसपास के किसी पुलिस थाने की सीमा के भीतर है।

5. पुलिस अधिकारी को नियमों के अनुसार इस व्यक्ति के उचित खर्च का भुगतान भी करना चाहिए जब वह अपने घर के अलावा किसी अन्य स्थान पर उपस्थित होता है।

हालांकि, 15 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति या 65 वर्ष से अधिक, एक महिला, या मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति को उस स्थान के अलावा किसी अन्य स्थान पर उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी, जहां वह रहता है। यानी उसे बुलाया नही जाएगा, वह जहां होगा, वही उसका बयान दर्ज किया जायेगा। इन श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों को, इस कानून के अंतर्गत नोटिस जारी कर के थाने पर नहीं बुलाया जा सकता है। 

इस धारा के संबंध में, सुप्रीम कोर्ट के कुछ निर्णय भी हैं जिनका उल्लेख आवश्यक है। 

० चरण सिंह बनाम महाराष्ट्र राज्य, 24 मार्च 2021, क्रिमिनल अपील में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “इस प्रावधान का उद्देश्य धारा 160(1) के तहत पुलिस शक्तियों के दुरुपयोग की संभावना को रोकना है। इस विधायी निषेध के पीछे एक इरादा यह भी था, कि, किशोरों और महिलाओं को पुलिस की सोहबत से दूर रखा जाय। यह प्राविधान पुलिस की साख के बारे में भी एक दुखद हकीकत बयान करता है।” 

सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने इस मुअदमे की सुनवाई की है और कहा है कि, “प्राथमिकी (एफआईआर) से पहले के चरण में, खुली जांच के दौरान दिए गए बयानों को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत अंकित बयान नहीं माना जा सकता है और मुकदमे के दौरान अभियुक्तों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है क्योंकि वे मुकदमे के दौरान दर्ज नहीं किए गए थे।”

धारा 161 सीआरपीसी के अंतर्गत विवेचना के दौरान, पुलिस द्वारा बयान दर्ज किए जाने के अधिकार और शक्तियों का उल्लेख है। हालांकि इस धारा के अंतर्गत दर्ज किए गए बयान, अदालत में साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किए जाते हैं।  

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने यह भी कहा है कि, “इस तरह की टिप्पणी को इकबालिया बयान के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है और अगर यह इकबालिया बयान कहा जा रहा है तो इसे, कानून के तहत, अवैध के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।” 

पीठ ने आगे कहा कि “बयान और जांच के दौरान प्राप्त सामग्री का उपयोग केवल किसी भी आवश्यकता को पूरा करने और यह निर्धारित करने के लिए किया जाना चाहिए कि, क्या कोई अपराध किया गया है।”

० ए.शंकर बनाम वी. कुमार और अन्य

 2022 की अवमानना ​​याचिका संख्या 818 में, मद्रास उच्च न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 91 और 160 के उल्लंघन में, एक पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को समन जारी करने के लिए पुलिस अधिकारियों को फटकार लगाई थी। वकील, एक मुकदमे में सरकार के खिलाफ थे और इस धारा 160 सीआरपीसी के अंतर्गत उन्हे बयान के लिए नोटिस भेजी गई। इस पर उक्त वकील मद्रास हाईकोर्ट चले गए। अदालत ने कहा, “आदेश लापरवाही से जारी किया गया है और इस प्रकार के सम्मन से, एक वकील की स्थिति खराब होती है।” 

याचिकाकर्ता के वकील को समन भेजने में पुलिस के रवैये और लापरवाही को कोर्ट ने गंभीरता से लिया।  याचिकाकर्ता ने अवमानना ​​​​याचिका इस आधार पर दायर की कि प्रतिवादी ने अदालत के फैसले की अवज्ञा की थी, जिसमें प्रतिवादी को याचिकाकर्ता के तर्कों पर विचार करने की आवश्यकता थी।  अदालत ने उपर्युक्त आदेश सबरी बनाम सहायक पुलिस आयुक्त, मदुरै शहर और अन्य (2018) में उल्लिखित नियमों के अनुसार जारी किया।

० जमशेद आदिल खान और अन्य।  v. केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और अन्य (2022) और डब्ल्यू.पी.  (CRL।) 976/2022, सीआरएल।  एमए 8240/22 और सीआरएल.एमए 10543/22 के मुकदमों में भी अदालत ने 160 सीआरपीसी पर इसी तरह के मंतव्य दिए हैं।

० कुलविंदर सिंह कोहली बनाम दिल्ली के एनसीटी राज्य और अन्य, डब्ल्यूपी (सीआरएल) 611/2022 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि सीआरपीसी की धारा 160 के तहत, एक पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को उसके पुलिस स्टेशन की क्षेत्रीय सीमाओं के बाहर या उसके आस-पास के पुलिस स्टेशन की अधिक से अधिक क्षेत्रीय सीमाओं के बाहर स्थित किसी व्यक्ति को नहीं बुला सकता है। पुलिस अधिकारियों को इस प्रावधान के तहत गवाहों की उपस्थिति का अनुरोध करने की शक्ति दी गई है।  

सिंगल जज बेंच ने कहा कि यह “सीआरपीसी की धारा 160 की उप-धारा (1) के साथ पढ़ने से स्पष्ट है कि, एक जांच के प्रयोजनों के लिए, एक पुलिस अधिकारी अपनी सीमा के भीतर, के रहने वाले व्यक्ति की उपस्थिति का अनुरोध कर सकता है अथवा खुद के पुलिस स्टेशन या पड़ोसी पुलिस स्टेशन को भी बुला सकता है,न कि किसी ऐसे व्यक्ति को समन कर सकता है, जो निर्दिष्ट क्षेत्रीय सीमा के बाहर रहता है।”

दिल्ली उच्च न्यायालय ने तर्कसंगत अवलोकन किया कि “एक पुलिस अधिकारी जांच शुरू करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के तहत समन या नोटिस जारी कर सकता है, लेकिन ऐसा करने से पहले प्राथमिकी दर्ज करना आवश्यक है।  कोर्ट ने कहा कि एफआईआर दर्ज किए बिना जांच शुरू नहीं मानी जा सकती है।”

इस प्रकार, सीआरपीसी के इस प्राविधान और तत्संबधित हाइकोर्ट और सुप्रीम कौन के फैसलों के आलोक में निम्न तथ्य स्पष्ट हैं ~ 

० धारा 160 सीआरपीसी की नोटिस, केवल अपने थाना क्षेत्र या पड़ोस के थाना क्षेत्र के अंतर्गत आवासित व्यक्ति को ही भेजी जा सकती है। 

० यह नोटिस एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद, दौरान रफ्तीश भेजी जा सकती है। 

० इस नोटिस पर बुलाए गए व्यक्ति के बयान को यदि एफआईआर दर्ज नहीं है तो, धारा 161 सीआरपीसी के अंतर्गत दर्ज बयान नहीं माना जा सकता है। 

० किसी महिला या 15 वर्ष के कम आयु के बच्चो को यह नोटिस नही भेजी जा सकती है। 

अब यदि नेहा सिंह राठौर को जारी नोटिस का अवलोकन करें तो, आप पाइएगा कि, यह नोटिस एक भी कानूनी प्राविधान को, जो धारा 160 सीआरपीसी के अंतर्गत कानून की किताब में दिया गया है और जिसकी व्याख्या हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न फैसलों में की है, का पालन नहीं करती है। नेहा महिला है। वे नोटिस जारी करने वाले थाना या पड़ोसी थाने के क्षेत्र के अंतर्गत रहती भी नहीं है और उनके खिलाफ थाना अकबरपुर जिला कानपुर देहात ने कोई मुकदमा भी दर्ज नहीं किया है। 

आज हम सूचना क्रांति के युग में है और सोशल मीडिया ने किसी भी गोपनीयता को अब बरकरार नही रखा। जिस दिन यह नोटिस नेहा सिंह राठौर को तामील कराई गई, उसी दिन से इस पर बहस और चर्चा शुरू हो गई। पर बहस का केंद्रबिंदु बना अभिव्यक्ति का अधिकार, एक कलाकार की अभिव्यक्ति के अधिकार का आधार, सरकार की आलोचना में किसी गीत या क्था कहानी व्यंग्य आदि लिखने का अधिकार। यह एक अलग विंदु है जो संविधान के मौलिक अधिकारों में आता है। पर क्या धारा 160 सीआरपीसी के अंतर्गत जारी इस नोटिस को कानूनी प्राविधान जो उक्त धारा के अंतर्गत दिए गए हैं, के अनुसार कानूनी रूप से जारी किया गया है, इस पर कोई बहुत चर्चा नहीं हुई, जो आवश्यक थी। 

इस तरह की जारी नोटिसें, पुलिस और संबंधित अधिकारी के विधि ज्ञान और अध्ययन का मजाक तो उड़ाती ही है, पुलिस के बारे में यह धारणा कि अक्सर हम विधिसम्मत रूप से, कानूनी दायित्व का निर्वहन नहीं कर सकते, इसे भी पुष्ट करती है। 

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