महुआ मोईत्रा का बयान भी आस्था पर भारी!

महुआ मोईत्रा का बयान भी आस्था पर भारी!

आज देश में धार्मिक आस्थाओं के आहत होने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। अभी नुपुर का पैगम्बर वाले आस्था मामले पर सरगर्मी चल ही रही थी कि रद्दी में भगवान वाली फोटो पर लोगों की भावनाएं आहत हो गई क्योंकि बिरियानी के खरीदार ने जिस अख़बार में उसे दिया गया था भगवान की फोटो देख कर इतना तूल पकड़ा कि होटल मालिक गिरफ्तार हो चुका है होटल बंद है। नुपुर के बयान को सहमति देने वाले दो लोग हलाक हो चुके है। ऐसे माहौल में एक हिंदू ब्राह्मण सांसद महिला महुआ मोईत्रा ने एक और आस्था के साथ खिलवाड़ कर दिया और देश में आग लगाने वाले सक्रिय हो गए।

ये बात पूरी तरह समझ लेनी चाहिए कि हमारे देश में नवरात्रि का जो स्वरुप विद्यमान है उसमें नौ देवियों की पूजा का विधान है जिनमें पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्मांडा, पांचवां स्कंदमाता, छठा कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां महागौरी और नौवां सिद्धिदात्री की पूजन की जाती है। जो कहा जाता है कि स्त्रियों के तमाम गुणों की प्रतीक हैं। इन नवदेवियों में से महुआ मोईत्रा की पसंद कालरात्रि जो महाकाली स्वरुप है नरमुंड की माला पहनती हैं खप्पर में ख़ून रखती हैं। मद्य का सेवन करती हैं। इसमें हमें आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वे काली की उपासक हैं और बिना लाग-लपेट की बात करने के लिए जानी जाती हैं।

भारत करोड़ों देवी-देवताओं का देश हैं। सभी रामभक्त नहीं सभी देवीभक्त नहीं है। हां देवी देवताओं में इनकी प्रसिद्धि बढ़ती चली जा रही है। गुजरात कृष्ण मय है तो महाराष्ट्र में गणेश सबसे पूज्य हैं। बंगाल में मां काली की पूजा का महात्यम है दक्षिण में जहां तिरुपति यानि श्रीपति वेंकटरमण यानि विष्णु महत्वपूर्ण हैं वहीं मुरुगन यानि गणेश के भाई कार्तिकेय ही सार्वजनिक तौर पर पूछे जाते हैं। देवताओं में एक देवता ब्रह्मा भी हैं जो लगभग अपूज्य हैं उनका एकमात्र मंदिर पुष्कर राजस्थान में है। नागालैंड में जो आदिवासी बहुल है वहां कुछ पेड और पूर्वज श्रद्धा से पूजे जाते हैं सुदूर मणिपुर में गोविंद हैं। दक्षिण भारत में रावण की पूजा होती है। मध्यप्रदेश में रावण की ससुराल बताते है जहां रावण दामाद की पूजा का विधान है। इसके अलावा बड़ी संख्या में लोग अन्य देवी देवताओं के उपासक हैं। शिवजी के अनुयायियों के रंग ढंग से भी बहुत कुछ हमारी संस्कृति का आभास होता है। कालभैरव उज्जैन में तो खुले आम मदिरा भोग लगाते हैं यही हाल कामाख्या मंदिर गोहाटी का है जहां बलि देने का प्रावधान है। ये बहुविधाओं और बहुप्रथाओं का देश है। जिसमें कानूनन हमें अपने आराध्य चुनने और प्रसाद चढ़ाने की छूट है। सबसे आश्चर्यजनक तो यह है कि हमारे देश में नरबलि देकर भी देवी देवताओं को खुश करने की प्रथा रही है। लेकिन हम अपने देवी देवताओं से कभी नफ़रत नहीं करते।

बंगाल के हर घर यहां तक कि बिहार, उत्तर प्रदेश में किसी शुभ कार्य की शुरुआत में माछभात खाने का रिवाज है। किसी की मौत के बाद तमाम संस्कार के बाद माछभात पकाकर खिलाया जाता है इसे वे घर के शुद्धिकरण से जोड़ते हैं। हैं ना विचित्र बात। पर यह उनकी संस्कृति का हिस्सा है। इसीलिए डॉक्यूमेंट्री फिल्म काली के विवादित पोस्टर के समर्थन में बयान देने वाली महु्आ मित्रा ने कहा है कि वो अपने बयान पर टिकी रहेंगी और किसी से भी माफी नहीं मांगेंगी. ऐसे में जिस किसी को भी शिकायत हो वो अदालत में मिले. टीएमसी सांसद ने मां काली के विवादित पोस्टर के समर्थन में ट्वीट करते हुए लिखा था कि’ मेरे लिये काली मांस खाने और शराब पीने वाली देवी हैं और मैं उन्हें इसी रूप में पूजती हूं।’

मीडिया और एक वर्ग विशेष के प्रचार के कारण यह मामला जिस तरह गरमाया जा रहा है उनके खिलाफ कई जगह एफ आई दर्ज की गई हैं। गिरफ्तारी की मांग की जा रही है उसके कारण लगता है महुआ ने मां काली का रुद्र रूप धारण कर लिया है और आवेश में वे हैं तथा ऐसे भारत में नहीं रहना जैसे विचार प्रकट कर रही हैं। यहां एक बात और बता दूं बंगाल में नारी के तमाम स्वरुप में उसे मां कह कर संबोधित करते हैं। क्रोधित होने पर उसे काली मां कहते हैं। हमारे यहां भी क्रोधित स्त्री को जय भवानी कहने का चलन है।

इस प्रकरण में एक और महत्वपूर्ण बात है कि इस फिल्म की निर्देशिका लीना मनीमेकलाई भी हिंदू और देवी आराधक हैं उनकी फिल्म काली के पोस्टर को ही लेकर विवाद छिड़ा हुआ है, जिसके पोस्टर में मां काली को सिगरेट पीते हुए दिखाया गया है।

जब इस पोस्टर को लेकर विवाद बढ़ने लगा तो टीएमसी सांसद उनके समर्थन में उतर आई, जिसके बाद उनके खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेंस पहुंचाने का दर्ज कराया जा चुका है। उधर फिल्म की निर्देशिका लीना मनीमेकलाई के खिलाफ भी देश के कई इलाकों में हिंदू जागरण मंच, बीजेपी समर्थकों की ओर से भावनाओं को आहत करने के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है।

सबसे विचारणीय पहलू यह भी है कि पहली बार ऐसी हिंदू महिलाओं पर देवी अपमान का ठप्पा लगा है जो स्वयं देवी उपासिका हैं। बहरहाल आज के माहौल में धार्मिक मुद्दों पर सही ग़लत बात करना गुनाह है खासकर बंगाल की सांसद महिला के बोल। जहां विवादग्रस्त मुद्दे की तलाश में लोग हों। यह सच है तृणमूल ने अपनी सांसद से भले पल्ला झाड़ लिया हो लेकिन बंगाल के बहुसंख्यकों की भावनाएं उनसे मेल खाती है।

Disclaimer: यह लेख मूल रूप से सुसंस्कृति परिहार के फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हुआ है। इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए द हरिशचंद्र उत्तरदायी नहीं होगा।

लेखिका स्वतंत्र लेखक एवं टिप्पणीकार है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।

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