जय पराजयों के बीच: राहुल गांधी की सुदृढ़ता

आज राहुल गांधी का जन्मदिन है। यह बताने की ज़रूरत नहीं है वे कौन हैं?सारी दुनिया उन्हें कांग्रेस के लाड़ले युवा नेता के रुप में जानती है ।उनका बचपना दादी के प्रधानमंत्री काल में बीता किशोर अवस्था आने से पूर्व ही दादी की कारुणिक मौत को उन्होंने देखा।पिता राजीव गांधी को कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री बनाया ।मां के सख़्त विरोध के बावजूद वे राजनीति में आए और एक दिन बम ब्लास्ट में दुनिया से कूच भी कर गए। कांग्रेस की मंशानुरूप काफी सोच-विचार के बाद मां सोनिया ने राजनीति में पदार्पण किया वे कांग्रेस अध्यक्ष बनीं और उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने अच्छी सफलता अर्जित की ।वे प्रधानमंत्री चुनी गई पर सुषमा स्वराज और उमा भारती का मान रखते हुए यह पद छोड़ा। भाजपा और संघ तब यही कहती रही कि सोनिया विदेशी मूल की हैं राहुल प्रियंका में से कोई होता तो उन्हें आपत्ति नहीं होती।

बहरहाल, इस बात की चुनौती स्वीकार करते हुए राहुल ने अपना सारा समय कांग्रेस को समर्पित कर दिया वे कांग्रेस के महासचिव और अध्यक्ष रहे ।लोकसभा चुनाव बराबर जीतते रहे। प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह उन्हें मंत्री बनाना चाहते थे वे नहीं बने जबकि उनके हम उम्र तमाम साथी मंत्री बने ।बाद में अपनी दूसरी पारी में  मनमोहन सिंह जी राहुल को प्रधानमंत्री बनाने आतुर रहे पर राहुल तैयार नहीं हुए। कतिपय लोगों का ऐसा ख्याल है कि यदि उन्होंने तब जिम्मेदारी संभाल ली होती तो कांग्रेस को ये राहु केतु परेशान ना कर पाते लेकिन उनकी सहृदयता ने उन्हेंपीछे धकेल दिया और नकेल ऐसे लोगों को मिल गई जो झूठ की फसल लहलहाने में आज तक लगे हैं।ऐसे झूठे और मतलबी दौर में वे पप्पू कहलाए। अफ़सोसनाक ये भी उनके अपनी पार्टी के साथियों ने भी दलबदल कर ये संदेश भी दिया कि वे आज के आचरण को अपनाएं। लेकिन वे दृढ़ संकल्पित हैं अपने परिवार के सदाचार के ताबीज के साथ और यह कहने में संकोच नहीं करते कि उनकी शादी क्रांग्रेस पार्टी के साथ हो चुकी है। कांग्रेस से हो रहे पलायन को वे सता सुख की भूख मानते हैं।इसके लिए इस दौर को दोषी ठहराते है।

उनकी राजनैतिक रणनीतियों में जमीनी स्तर की सक्रियता पर बल देना, ग्रामीण जनता के साथ गहरे संबंध स्थापित करना और कांग्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करने की कोशिश करना प्रमुख हैं।इन दिनों कांग्रेस निरंतर पिछड़ रही है लेकिन वे पार्टी को उठाने निरंतर प्रयास जारी रखे हैं ।उनके सुझावों पर जिस तरह भाजपा देर सबेर अमल करती है वह राहुल की दूरदर्शिता का परिचायक है।वे कांग्रेस की हार पर निराश नहीं होते बल्कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहते हैं -” कि उम्मीद न हारें। उन्होंने कहा, “डरने की ज़रूरत नहीं है, हम मेहनत करते रहेंगे और अंततः जीत हमारी ही होगी।”यकीनन वे अब पके हुए राजनीतिज्ञ हैं ।कठिन संघर्षों के बीच से निकला सुदृढ़ व्यक्तित्व है राहुल का।

आज नहीं तो कल राहुल गांधी का यह विकट संघर्ष कांग्रेस को उत्कर्ष तक ले जाएगा ।ऐसी उम्मीद राजनैतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी जताई है।परले दर्जे की झूठी राजनीति का खेल अब समाप्ति की ओर है ।बंगाल ने भाजपा का चाल चरित्र और चेहरा जिस तरह उजागर कर दिया उसकी आवाज दूर तलक तक पहुंची है भाजपा से घर वापसी का दौर शुरू हो चुका है उनकी कठिनाई भरी भारत जोड़ो यात्रा ने देश भर मोहब्बत का जो पैगाम दिया है वह अनमोल है देशवासियों को इसकी ज़रूरत थी।इस यात्रा से भारत सरकार परेशान हो गई उन्हें अडानी की लूट पर बोलने नहीं दिया गया तथा एक कूट रचित प्लान में संसद से बाहर कर दिया। वे और मुखर हुए देश ही नहीं विदेश में उनका जलवा कायम हुआ। कर्नाटक की हार से बुरी तरह विक्षिप्त सरकार इन दिनों बौखलाई हुई है।जबकि राहुल गांधी अपनी मोहब्बत की दूकान को चमकाकर भारतीय संस्कृति के सनातन स्वरूप को बल दे रहे हैं।

लगता है अब 2024 आने से पहले हालत में बहुत बड़ा परिवर्तन आयेगा तब राहुल गांधी मज़बूत स्थिति में होंगे।जन प्रतिरोध का सर्वाधिक फायदा कांग्रेस को ही मिलेगा। कहते हैं झूठे का मुंह काला और झूठ ज्यादा दिन नहीं टिकता ।सत्य ही अंततः विजयी होता है। राहुल गांधी के इन साहसी प्रयासों का सलाम। वे अप्रतिम और दृढ़ निश्चयी है वे अपने अभियान में कारगर होकर देश में उन ताकतों को नेस्तनाबूद करेंगे जो मुल्क को बर्बाद कर रहे हैं।

लेखिका स्वतंत्र लेखक एवं टिप्पणीकार है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।

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