हास्यास्पद – भाजपा नहीं करेगी ले- ऑफ बर्दाश्त पर मजदूरों के गले नहीं उतरी रही यह नौटंकी!

हास्यास्पद - भाजपा नहीं करेगी ले- ऑफ बर्दाश्त पर मजदूरों के गले नहीं उतरी रही यह नौटंकी! पढिए नागदा से कैलाश सनोलिया की खास रिपोर्ट।

नागदा। देश के जाने माने बिड़ला परिवार के उज्जैन जिलें के नागदा में संचालित ग्रेसिम उद्योग में कथित प्रतिकूल परिस्थति की दलील देकर उद्योग प्रबंधन ने मजदूरों को ले- आफ देना शुरू कर दिया है। इस बात का विरोध सत्ता पक्ष भाजपा के एक राजनेता ने किया है। लेकिन मात्र एक राजनीतिक दिखावा है। मगर भाजपा विचारधारा श्रम संगठन ने तो पहले ही सहमति जता दी थी इस कारण सैकड़ों स्थायी मजदूरों को आर्थिक संकट से तो जूझना होगा, ठेका मजदूरों की रोजी- छिनने की संभावना है। उद्योगों में किसी भी प्रकार का जब कदम उठाया जाता है, तो मजदूरों के अधिकारों की हिफाजत के लिए कार्यरत श्रम संगठनों से प्रबंधन चर्चा करता है। दोनों पक्षों की लिखित सहमति के बाद अमल होता है। ग्रेसिम उद्योग में भाजपा एवं कांग्रेस दोनों विचारधारा के श्रम संगठन कार्यरत है। अन्य राष्ट्रीय स्तर के संगठन भी कार्यरत है। भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) वर्तमान समय में एक मजबूत एवं व्यापक स्तर का श्रम संगठन है। इस संगठन ने भी मजदूरों का ले- ऑफ पर सहमति जताई है। जब इस प्रकार के कदम की बात आई तो कोई विरोध नहीं किया, कोई आंदोलन नही ना प्रेस को कोई बयान जारी किया। इसी प्रकार से कांग्रेस विचारक श्रम संगठन इंटक ने भी इस कदम पर सहमति जताई है। अन्य श्रम संगठन एटक एवं एचएमएस भी प्रबंधन के साथ इस नेक कार्य में सूर से सूर मिलाने में आगे आए। इतना सब कुछ होने के बाद अब भाजपा के एक राजनेता की नौटंकी का वीडियों एवं समाचार सामने आया है। जिस में दावा किया जा रहा हैकि भाजपा ले- ऑफ को बर्दाश्त नहीं करेगी। यहा तक दलील दी गई कि देश में ग्रेसिम फाईबर उत्पादन के मामले में बिड़ला की मौना पाली है। देश की अन्य किसी भी ग्रेसिम से जुडी़ यूनिट में ले- आफ नहीं दिया जा रहा है। एक उदाहरण भी प्रस्तुत कर दिया कि विलायत में इसी प्रकार की यूनिट में 1000 टन प्रति दिन का उत्पादन हो रहा है। बड़ा सवाल यह उठता है कि भारतीय मजदूर संघ इसी पार्टी की विचारधारा का श्रम संगठन है। उसने प्रबंधक से चर्चा कर ले- ऑफ पर सहमति जताई है। प्रबंधन ने एक नोटिस भी चस्पा किया है कि श्रम संगठनों से चर्चा के बाद ले- ऑफ उद्योग में दिया जा रहा है। जब भाजपा विचारक यूनियन स्वयं विरोध नहीं कर रही है उसने स्वयं ने सहमति जताई है। फिर अब भाजपा विरोध करेगी इस प्रकार की नौटंकी मजदूरों के गले नहीं उतर रही है। यह अब कैसा विधवा विलाप। इस प्रकार की बातों पर मजदूर अब प्रतिक्रिया व्यक्त करते दिखाई दे रहे है कि सौ -सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली।

अनुबंध पढे मजदूर
हकीकत यह है कि प्रबंधन की इस नीति को लेकर दूरगामी सोच है। उद्योग में श्रमशक्ति में कटौती किया जाना प्रतीत होता है। मजदूर लोग एवं बयानबाजी करने वाले राजनेता उद्योग प्रबंधन एव ंश्रम संगठनों के बीच हुए दिनांक 9 अक्टूबर 2019 के समझौतें के पेज क्रमाक 4 के पहले पेज का अच्छी तरह से अध्ययन कर ले। जिसमें लिखा है कि दोनों पक्षों (प्रबंधन एवं यूनियनें) में सहमति हुई है कि संस्थान में तृतीय पक्ष द्धारा मैन पॉवर स्टडी करवाई जाएगी जिससे सही श्रम शक्ति का उपयोग हो। अब इन्ही पक्तियों के अनुबंध पर परिपालन की तलवार मजदूरों पर लटकी है। इस अनुबंध पर भी उसी विचारधारा के श्रम संगठन के नेताओं के हस्ताक्षर जो सता पक्ष के राजनेता राग अलाप रहे है कि ले- ऑफ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। फिर प्रबंधन से चर्चा की तो उसका परिणाम क्या आया। यह मजदूर जानना चाहता है। चर्चा तो आम बात है। इस प्रतिकूल परिस्थिति की पटकथा तो 9 अक्टूबर 2019 में लिखी गई थी। श्रम संगठनों एवं प्रबंधन को पंाच वर्षीय अनुबंध हुआ था। यह अनुबंध 1 जनवरी 2019 से 31 दिसंबर 2023 तक प्रभावशील है।

मतलब श्रम शक्ति अर्थात मैन पावर को कम किया जाना है। इस मामले लगभग डेढ वर्ष पहले इस पत्रकार ने एक खबर अपनी हिंदुस्थान समाचार एजेंसी में खबर भी प्रसारित की थी। इस खबर मे मप्र शासन के वर्तमान चेयर मैंन श्री सुल्तानसिंह शेखावत ने एक विशेष साक्षात्कार में इस पत्रकार से बातचीत में ग्रेसिम प्रबंधन की नीति का विरोध करते हुए बताया थाकि ग्रेसिम 25 प्रतिशत मैन पावर कम करना चाहता है। इस खबर के बाद ही सता के दूसरें सूरमा ने इस खबर को तोड मरोड कर पेश करने का आरोप भी लगाया था। अब यह बात चरितार्थ होने के निकट है।

कांग्रेस भी कटघरे में
इधर कंाग्रेस के पदाधिकारियों ने भी ले- ऑफ का विरोध करते हुए कलेक्टर के नाम ज्ञापन सौंपा है। कैसी सियासत है कि कांग्रेस विचारक श्रम संगठन इंटक के पदाघिकारियों ने ले- आफ का कोई विरोध नही किया। पोस्टर तक नहीं लगाया प्रेस में बयान तक नही ंदिया और प्रबंधन से चर्चा में सहमति जताई और इधर कांग्रेस संगठन इस मांग को लेकर आगे आ गया।

गडे़ मुर्दे उखाड़ना
इस शहर में विशेष कर सत्ता पक्ष की सियायत में नौटंकी के माध्यम से मार्केटिंग का प्रचलन हो गया कि अच्छा होता स्वयं क्रेडिट बूरा होता है तो सूबे के सरदार पर दोषारोपण कर दिया जाता है। मतलब मीठा- मीठा गप्प और कड़वा थूं -थू। वाह राजनीति। यहंा तक किसी समय दिग्गी राजा के सीएम काल के उदाहरण देकर अपने भाषण को समृद्ध करने का प्रयास किया जाता है। कभी एक- एक वोट वीआरएस को चोट का जुमला सूनाया जाता है। यदि ऐसा हुआ तो जनता ने ऐसा करने वाले कांग्रेस नेता को घर भी बैठा भी दिया गया था। उसका दुष्परिणाम भी कांग्रेस ने भोग लिया। मजदूरों को इन दफन बातों से क्या लेना। लेकिन बाद में

कांग्रेस आज सत्ता से विमुख है। लेकिन मजदूरों हितों की बात करने वालो की सरकार में तो हजारों मजदूरों की रोजी-रोटी छिन ली गई। जनता ने उन्हें भी तो परख कर सूबे के सरदार की कुर्सी से उतार दिया। मतलब जनता ने यह संकेत दियाकि यहां पर भी मजदूरों को इंसाफ कौसो दूर है। जनता एवं मीडिया सवाल भी उनसे करेंगे जोकि सत्ता में हैं। शोषण, उत्पीड़न से मुक्ति की जिम्मेदार भी तो सता ही होती है। सवाल यह भी उठाए जा रहे हैकि ज्ञापन देने से कुछ नहीं होता, विधानसभा में प्रश्न लगाने से कुछ नहीं होता, लेकिन यह भी तो होता हैकि सरकार जो चाहे वह होता है।

जिस प्रकार से इन दिनों मजदूरेां की राजनीति का यह खेल चल रहा मात्र दिखावा है। इस उद्योग में कोई राजनेता चाहे वह सत्ता का हो या विपक्ष का यह तो सार्वजनिक घोषणा करें कि धूंआ उगलती इन चिमनियों के इस उद्योग में हमारे काम धंघे नहीं चल रहे हैं।

Disclaimer: यह लेख मूल रूप से कैलाश सनोलिया के फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हुआ है। इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए द हरिशचंद्र उत्तरदायी नहीं होगा।

Log In

Forgot password?

Don't have an account? Register

Forgot password?

Enter your account data and we will send you a link to reset your password.

Your password reset link appears to be invalid or expired.

Log in

Privacy Policy

Add to Collection

No Collections

Here you'll find all collections you've created before.

Exit mobile version