सरकार झूठ बोलती रही है या उसे गलत सूचना दी जाती रही?

आप जानते हैं कि केंद्र सरकार ने गेहूं के निर्यात पर अचानक रोक लगा दी है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि देश में गेहूं की कीमत बढ़ रही थी इसलिए निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है क्योंकि खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है (इंडियन एक्सप्रेस)। कल सोशल मीडिया पर कुछ पुरानी खबरों का उल्लेख कर बताया जा रहा था कि सरकार ने अचानक गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने से पहले यह भी कहा (और अखबारों ने प्रचारकों की तरह छापा) था कि गेंहूं का निर्यात बढ़ाने के लिए भारत नौ देशों में निर्यात प्रतिनिधिमंडल भेजेगा।

किसी एक अखबार का नाम क्या लूं, सरकारी विज्ञप्ति पढ़िये, केंद्र सरकार, भारत से गेहूं निर्यात को बढ़ावा देने की संभावनाएं तलाशने के लिए मोरक्को, ट्यूनिशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड, वियतनाम, टर्की, अलजीरिया तथा लेबनान में व्यापार प्रतिनिधिमंडल भेजेगी। भारत ने वैश्विक रूप से अनाज की बढ़ती मांग के बीच वित्त वर्ष 2022-23 में रिकॉर्ड 10 मिलियन टन गेहूं का लक्ष्य निर्धारित किया है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने पहले ही रेलवे, जहाजरानी तथा वाणिज्य मंत्रालयों सहित विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधियों के साथ तथा कृषि प्रसंस्‍कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के तत्वाधान में गेहूं निर्यात पर एक कार्य बल का गठन कर लिया है। जाहिर है, सरकार को वास्तविकता का कोई अनुमान नहीं था। और प्रधानमंत्री से लेकर अधिकारी तक कुछ भी बोले जा रहे थे।

12 मई के शाम 4:50 की विज्ञप्ति में कहा गया था, “वैश्विक बाजार में भारतीय गेहूं की मांग में बढोतरी लगातार जारी है, जिसे देखते हुए किसानों, व्यापारियों तथा निर्यातकों को आयातक देशों के सभी गुणवत्ता मापदंडों का अनुसरण करने का सुझाव दिया गया है जिससे कि भारत वैश्विक स्‍तर पर गेहूं का एक भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता के रूप में उभर कर सामने आए।” और 14 मई को निर्यात पर रोक लग गई। इससे पहले 05 मई को रात रात 8:43 पर पीआईबी की ही विज्ञप्ति में कहा गया था, प्रधानमंत्री ने गेहूं की आपूर्ति, स्टॉक और निर्यात की स्थिति की समीक्षा के लिए आयोजित बैठक की अध्यक्षता की। इस विज्ञप्ति में बताया गया है, “प्रधानमंत्री को विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत प्रस्तुति दी गई। उन्हें फसल उत्पादन पर मार्च-अप्रैल, 2022 के महीनों में उच्च तापमान के प्रभाव के बारे में जानकारी दी गई। गेहूं की सरकारी खरीद और निर्यात की स्थिति की भी समीक्षा की गई।”

इसी में आगे कहा गया है, भारत के कृषि उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए, प्रधानमंत्री ने निर्देश दिया कि गुणवत्ता नियमों और मानकों को सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाए जाएं, ताकि भारत खाद्यान्न और अन्य कृषि उत्पादों के एक निश्चित स्रोत के रूप में उभर सके। उन्होंने अधिकारियों से किसानों को अधिक से अधिक मदद सुनिश्चित करने के लिए भी कहा। पीएम को मौजूदा बाजार दरों के बारे में भी बताया गया, जो किसानों के लिए फायदेमंद हैं। इस आधार पर बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी खबर का शीर्षक था (अनुवाद मेरा), “सुनिश्चित कीजिए कि भारत दुनिया के लिए अच्छे अनाज का स्रोत बने।” जारी विज्ञप्ति के आधार पर कहा जा सकता है कि बैठक का वास्तविकता से कोई संबंध नहीं था और जो हुआ वही बताया गया है तो बैठक बेमतलब रही। उसमें से सही सूचनाएं गायब थीं।

सरकार झूठ बोलती रही है या उसे गलत सूचना दी जाती रही?

बात इतनी ही नहीं है 12 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने कहा था, “डब्ल्यूटीओ इजाजत दे तो दुनिया को खिला सकते हैं।” अब कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री सुनी-सुनाई बातों पर डींग हांक रहे थे। और अब वास्तविकता भी नहीं बताएंगे। ना प्रेस कांफ्रेंस में ना ‘मन की बात’ में। आजतक डॉट इन की खबर के अनुसार, “प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मैंने राष्ट्रपति जो बाइडेन से हुई चर्चा के दौरान कहा था कि अगर विश्व व्यापार संगठन हमें अनुमति दे तो भारत में अनाज के इतने भंडार हैं कि हम उससे पूरी दुनिया का पेट भर सकते हैं। हमें परमिशन मिले तो हम अपने अनाज को पूरी दुनिया में भेज सकते हैं। मां अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से हमारे यहां अनाज के भंडार भरे हुए हैं।” यह प्रधानमंत्री का प्रचारक होना नहीं है। यह देशद्रोह नहीं है? कौन कर रहा है या करवा रहा है?

अगर मामला इतना ही होता तो शायद फिर भी चलता। 3 मई की द वायर की खबर है, “भारत में गेहूं की पैदावार 2022 में कम होने की आशंका है। लगातार पांच वर्षों तक रिकार्ड पैदावार के बाद इस बार मार्च के मध्य में अचानक तापमान बढ़ने के कारण फसल की पैदावार कम होने की आशंका है। इस कमी से भारत को निर्यात रोकना पड़ सकता है।” इस खबर पर अधिकारियों ने कहा कि भारत ऐसा नहीं करने वाला है। पैदावार खराब होने पर भी भारत इस वित्त वर्ष में आसानी से आठ मिलियन टन गेहूं निर्यात कर सकता है। हालांकि, रोक की गुंजाइश तब भी रखी गई थी। इसी खबर में कहा गया है, विदेश माल भेजने में अनअपेक्षित वृद्धि की स्थिति में ही सरकार निर्यात पर पाबंधी के संबंध में सोचेगी। इस मामले में वास्तविकता क्या है? कोई बताएगा? कभी पता चलेगा?

आपदा में अवसर मार्च में दिखा था। 9 मार्च की बीबीसी की खबर है, रूस यूक्रेन संकट: पीएम मोदी गेहूं निर्यातकों से ‘आपदा में अवसर’ तलाशने की बात क्यों कर रहे हैं? इसमें कहा गया था, ….आपदा की इस घड़ी में प्रधानमंत्री मोदी ने गेहूं के निर्यातकों से ख़ास अपील की है। मंगलवार को बजट से जुड़े एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “इन दिनों दुनिया में भारत के गेहूं की तरफ़ आकर्षण बढ़ने की ख़बरें आ रही हैं। क्या हमारे गेहूं के निर्यातकों का ध्यान इस तरफ़ है? भारत के फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन का ध्यान इस तरफ़ है क्या?” इससे पहले 06 मार्च को लाइव हिन्दुस्तान की खबर थी, “अफगानिस्तान को 2000 टन गेहूं भेजेगा भारत, पाकिस्तान ने तालिबान को दिया था सड़ा हुआ अनाज।”

कहने की जरूरत नहीं है कि गेहूं के निर्यात का पूरा मामला हवा हवाई था। सरकार जानबूझकर या मिल रही गलत सूचनाओं के प्रभाव में गलत जानकारी दे रही थी और प्रचारक मीडिया आंख मूंद कर प्रचारित किए जा रहा था। यहां तक कि रोक लगने के बाद भी प्रचार ही कर रहा है। आज ज्यादातर अखबारों में रोक की खबर ऐसे दी गई है जैसे सरकार ने बहुत जरूरी और बड़ा काम किया है। इसमें पुरानी खबरों की चर्चा नहीं के बराबर है। जबकि अचानक निर्यात रोक देने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिक्रिया हुई है और भारत में कहा जा रहा था कि डॉलर की कीमत बढ़ने का फायदा निर्यातकों को होगा और हुआ यह कि (गेहूं का) निर्यात ही रोक दिया गया।

आज के अखबारों में शीर्षक इस प्रकार हैं

  1. देश में कीमतें बढ़ीं तो गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया – हिन्दुस्तान टाइम्स
  2. पैदावार कम होने के नए अनुमान के बाद सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगाई, कहा खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है – इंडियन एक्सप्रेस

3.कीमतें कम करने के लिए केंद्र ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगाई – टाइम्स ऑफ इंडिया

  1. भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया – द हिन्दू सिंगल कॉलम
  2. भारत ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया – द टेलीग्राफ (बिजनेस पेज पर लीड छह कॉलम में)

सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर छह कॉलम में दो लाइन के शीर्षक के साथ छपी मूल खबर के साथ छपी दूसरी खबर में बताया है कि (मोटे तौर पर) यह जानी-पहचानी प्रतिक्रिया है और ये होना ही था। अखबार ने इसके साथ बताया है कि सरकार और क्या कर सकती थी। हालांकि यहां भी यह नहीं बताया गया है कि गेहूं के निर्यात और दुनिया को खिलाने के नाम पर भारत और मुख्य़ रूप से प्रधानमंत्री हवा में तलवार भांज रहे थे। टाइम्स ऑफ इंडिया ने जी7 देशों की प्रतिक्रिया मूल खबर के साथ छापी है जो पहले पन्ने पर टॉप के दो कॉलम की मूल खबर के साथ सिंगल कॉलम में है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।

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