प्रधानसेवक चाहते हैं कि ना कोई सवाल करे ना सवाल करने लायक रहे

निर्वाचन आयोग की गतिविधियां संदिग्ध कौन करे निगरानी ?

इन दिनों देश में जिसकी लाठी उसकी भैंस और सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का – जैसे पुराने कहावतों के ढेरों उदाहण मिल जाएंगे। सब खुलेआम बिखरे-फैले पड़े हैं। उसपर ट्वीटर ने केंद्र सरकार पर मुकदमा करके सारे मामले को सार्वजनिक कर दिया है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने आज इस खबर को पहले पन्ने पर छापकर रही सही कसर पूरी कर दी है।

केंद्र सरकार पर सत्ता के दुरुपयोग का आरोप है। इस मामले में केंद्र सरकार का पक्ष चाहे जो हो तथ्य यह है कि 2021 में केंद्र सरकार चाहती थी कि उस समय चल रहे किसान आंदोलन से संबंधित ट्वीटर पोस्ट हटाए जाएं। ट्वीटर ने ज्यादातर मामलों में आदेश माने भी पर कई मामलों में कार्रवाई नहीं की खासकर राजनेताओं और मीडिया वालों के मामले में। आप जानते हैं कि किसान आंदोलन को कुचलने की हर संभव कोशिश हुई, मीडिया वालों को परेशान किया गया और अंत में सरकार ने कानून वापस ले लिया और प्रधानमंत्री ने तब कहा था कि शायद तपस्या में कोई कमी रह गई होगी।

यह सब उदाहरण है जो बताता है कि प्रशासन के मामले में सरकार के हाथ कितने तंग हैं और फैसले कैसे होते हैं तथा जनता को सूचना पहुंचने देने से रोकने के हर उपाय सरकार करती है, गलत सूचना देने का अलग तंत्र है जो निर्बाध काम करता है और सरकार उसके लिए आजादी भी चाहती है। ऐसी हालत में सरकार पर पेगासस स्पाईवेयर खरीदने और नागरिकों के खिलाफ उपयोग करने के भी आरोप हैं। ट्वीटर का कहना है कि कुछ सामग्री को ब्लॉक करने की सरकार की मांग उसकी राय में अभिव्यक्ति की आजादी के उल्लंघन का मामला है और संबंधित कानून से संबंध होने का कोई आधार नहीं है।

स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि ना कोई सवाल करे और ना सवाल करने लायक रहे। सोशल मीडिया के दुरुपयोग या अपने पक्ष में उपयोग का मामला अब पुराना हो गया। सोशल मीडिया पर विरोध रोकने की हर संभव कोशिश चल रही है और यह शायद अंतिम बाधा है जो सरकार फतह कर ले तो चुनाव हो या नहीं, देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर लिया जाए कोई क्या कर लेगा। यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि विदेशी चंदे से एनजीओ चलाने वाले कुछ लोग सरकार के खिलाफ बोल पाते तो चंदे पर रोक पहले लग चुकी है। उसका असर देश की आर्थिक स्थिति, रोजगार के मौकों पर जरूर पड़ रहा होगा लेकिन उसकी परवाह किसी को नहीं है।

आखिर एनजीओ चलाने वाले और उसमें नौकरी करने वाले भी तो बेरोजगार हुए होंगे। अगर पीएम केयर्स से उन्हें दान के बराबर पैसा मिल जाता तो सरकारी नियंत्रण भी रहता और काम भी होता लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि देश में बहुत सारे एनजीओ सरकार के कामकाज पर नजर रखते हैं। कायदे से इन्हें हर संभव संरक्षण और सुविधाएं मिलनी चाहिए और तब उनके मीडिया की तरह शरणागत होने का डर रहेगा पर एनजीओ के मामले में ऐसा नहीं करके उनकी आय के स्रोत बंद कर दिए जाने का मतलब आप समझ सकते हैं।

आप जानते हैं कि इस समय देश में सरकार का मतलब प्रधानमंत्री ही है। लगभग सारा काम उन्हीं की मर्जी, इच्छा, आदेश और विवेक से होता दिख रहा है। उसमें बहुत सारे संस्थाओं में उन्होंने अपनी पसंद के व्यक्ति या समर्थक को बैठा दिया है उसका असर भी हो रहा है। मीडिया इसमें शामिल है। फेसबुक के संबंध में औरोप और शिकायत पहले आ चुकी है। ट्वीटर के मामले में भी चर्चा चलती रही है। ऐसे समय में ट्वीटर ने सरकार के खिलाफ जाकर जनता का भला करने की हिम्मत दिखाई है। ऐसे समय में जब सरकार के खिलाफ होने पर बिना कारण बताए अंतिम समय में विमान पर सवार होने या विदेश जाने से रोक दिया जाए सरकार का विरोध कैसे होगा उससे कौन पूछेगा कि लोकतंत्र का पालन क्यों नहीं हो रहा है।

दूसरी ओर, धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने वाली चार साल पुरानी पोस्ट के लिए अल्ट न्यूज के संस्थापक और खबरों की सच्चाई जांचने वाले मोहम्मद जुबैर को जेल में डालने और उसपर नए आरोप लगाने के साथ यह भी सच और सर्वविदित है कि सोशल मीडिया पर चर्चित कई मामलों में कार्रवाई नहीं हुई है और अंतरराष्ट्रीय दबाव में भाजपा की अधिकृत प्रवक्ता के खिलाफ यही कार्रवाई हुई कि उसे फ्रिंज एलीमेंट कह दिया गया और पार्टी से निकालने का एलान कर दिया गया।

ऐसे मामलों में आम लोगों के खिलाफ जो कार्रवाई होती है वह तो भाजपा समर्थकों के खिलाफ नहीं ही होती है भाजपा नेताओं के बयान भी बदल जाते हैं और कार्रवाई भी बचाने वाली होती है। जुबैर को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया और दिल्ली बैगलोर सहारनपुर घुमा रही है। दिल्ली पुलिस ने बंगलौर से दिशा रवि को गिरफ्तार किया था लेकिन छत्तीसगढ़ की पुलिस नोएडा / गाजियाबाद से प्रचारक एंकर को गिरफ्तार नहीं कर पाई। भाजपा समर्थक नेता के मामले में पहले भी ऐसा हुआ है जब पुलिस अभियुक्त को दूसरे राज्य की पुलिस के कब्जे से छुड़ा लाई।

एंकर के ताजा मामले में चर्चा है कि पुलिस गिरफ्तार करने पहुंची तो उसके संस्थान ने नोएडा में ही एफआईआर लिखवा दी और नोएडा पुलिस ने गिरफ्तार कर जमानत पर छोड़ दिया। इसे पुलिसिया चाल मानने वाले लोग भी हैं पर वह अलग मुद्दा है। इन उदाहरणों से पता चल रहा है कि कानून व्यवस्था के मामले में पुलिस की कार्रवाई निष्पक्ष या जरूरत के अनुसार नहीं है और इसमें केंद्र व राज्य सरकारों का दबाव है। राज्यों की पुलिस वहां की सरकार की सेना की तरह काम कर रही है। यह स्थिति अच्छी नहीं है और बहुत आशंका है कि भिन्न वर्गों और समूहों में झगड़ा हो जाए और पुलिस संभाल न पाए या भागीदार बन जाए।

देखते रहिए आगे-आगे होता है क्या, नामुमकिन मुमकिन है। ईडी, सीबीआई के बल पर विरोधियों को काबू में रखना और धन बल से विधायक खरीदना तो पहले भी संभव था अब कुछ नया और अलग देखिये। जुबैर को बिना मामला नियंत्रित करना इसी लिए जरूरी है।

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