आर्थिक मंदी को लेकर वर्ल्ड बैंक ने दी बड़ी चेतावनी

वर्ष 2023 में दुनिया आर्थिक मंदी का सामना कर सकती है। वर्ल्ड बैंक ने इसको लेकर चेतावनी जारी की है। इसके पीछे वजह, दुनिया भर के सेंट्रल बैंकों द्वारा आर्थिक नीतियों को सीमित किया जाना बताया गया है। वर्ल्ड बैंक ने अपनी नई रिपोर्ट में प्रोडक्शन तेज करने के साथ ही सप्लाई की बाधाओं को दूर करने के लिए भी कहा है, ताकि महंगाई नियंत्रित रह सके। रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक मंदी के कई इंडिकेटर्स इस बारे में पहले से ही संकेत दे रहे हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि 1970 की मंदी से उबरने के बाद अब ग्लोबल इकोनॉमी सबसे कठिन दौर में है।

आर्थिक मंदी को लेकर वर्ल्ड बैंक ने दी बड़ी चेतावनी

रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के जीडीपी ग्रोथ आंकड़ों को देखें तो आज़ादी के बाद से अब तक भारत ने कुल चार मंदी देखी है। ये वर्ष 1958, 1966,1973 और 1980 में आई। वर्ष 1957-58 के बीच भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था में पहली गिरावट तब दर्ज की, जब जीडीपी की ग्रोथ रेट माइनस में चली गई। इस वर्ष जीडीपी ग्रोथ रेट -1.2 प्रतिशत रिकॉर्ड की गई थी। वर्ष 2020 में जब पूरी दुनिया को कोरोना महामारी ने अपनी चेपट में लिया तब एक बार फिर भारत की अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब हुई।

पूर्व राज्यसभा सांसद और बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने मंदी पर, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के दिए बयान को सही ठहराते हुए एक ट्वीट किया है। अपने ट्वीट में वो कहते हैं, “भारत के मंदी में जाने का सवाल ही नहीं उठता, वित्त मंत्री सही कहती हैं क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था तो पिछले वर्ष ही मंदी में चली गई थी।” वही सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन ‘कॉनमी’ (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार जुलाई में भारत में बेरोजगारी दर में कमी आई है। जुलाई में बेरोजगारी दर कम होकर 6.80 प्रतिशत पर आ गई, जून में यह 7.80 प्रतिशत थी। हालांकि ग्रामीण क्षेत्र के मुकाबले शहरी क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ी है। दो अप्रैल वर्ष 2022 की स्थिति में सीएमआईई द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार सर्वाधिक बेरोजगारी दर हरियाणा में 26.7 प्रतिशत, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में 25-25 प्रतिशत, झारखंड में 14.5 प्रतिशत, बिहार में 14.4 प्रतिशत, त्रिपुरा में 14.1प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश में 12.1 प्रतिशत रही।

आर्थिक मंदी के कारण 

  • आर्थिक मंदी का प्रमुख कारण धन का प्रवाह रुक जाना है। धन के प्रवाह से आशय है कि लोगों की खरीदने की क्षमता घट जाना है और इसलिए वह बचत भी कम कर पाते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती है, जिससे महंगाई दर बढ़ जाती है और लोग अपनी आवश्यकता की चीजे नहीं खरीद पाते है।
  • डॉलर के मुकाबले रुपये की घटती हुई कीमत भी इसका मुख्य कारण है।
  • आयात के मुकाबले निर्यात में गिरावट होने से देश का राजकोषीय घाटा बढ़ जाता और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी देखने को मिलती है।
  • अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर की वजह से भी दुनिया में आर्थिक मंदी का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जिसका असर भारत पर भी हो रहा है।
  • मंदी के समय निवेश कम हो जाता है क्योंकि लोगों की आय कम हो जाती है।

भारत ने 2008 की मंदी पर कैसे काबू पाया?
भारतीयों ने अन्य भारतीयों के लिए वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन जारी रखा और इसने अर्थव्यवस्था को गुनगुना रखा । ऐसा ही घरेलू निवेशकों ने भी किया, जिन्होंने ज्यादातर पैसा घर पर ही रखा था। 2008-09 में विदेशी भारतीयों से प्रेषण मजबूत रहा, जो 46.4 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। और जल्द ही विदेशी निवेशक लौट आए।

महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सेंट्रल बैंकों द्वारा ग्लोबल इंट्रेस्ट रेट 4 फीसदी तक हो सकता है, जो 2021 की तुलना में दोगुना होगा। वहीं खाद्य और तेल के मामले में यह और अस्थिर होकर 5 फीसदी तक जा सकता है। अमेरिका से लेकर यूरोप और भारत तक कर्ज की दरों में तेजी से इजाफा कर रहे हैं। इसका मकसद चीप मनी की सप्लाई को रोकना और महंगाई को नियंत्रित करना है, लेकिन ऐसी आर्थिक नीतियों को भी नुकसान हैं। इसके चलते इंवेस्टमेंट, जॉब्स और ग्रोथ पर असर पड़ता है। भारत समेत कई देश फिलहाल इन्हीं हालात से जूझ रहे हैं।

वर्ल्ड बैंक ग्रुप के प्रेसीडेंट डेविड मालपास ने गुरुवार को यह रिपोर्ट आने के बाद एक बयान जारी किया। इसमें उन्होंने कहा कि ग्लोबल ग्रोथ तेजी से कम हो रही है। इसके आगे भी कम रहने की उम्मीद है और ऐसे में कई देश मंदी की चपेट में आएंगे। डेविड ने कहा कि मुझे इस बात की बेहद चिंता है कि इसके लंबा खिंचने के आसार हैं। ऐसे में बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्था पर इसका खराब असर होगा। गौरतलब है कि दुनिया पहले ही रिकॉर्ड महंगाई से जूझ रही है। इसके पीछे कई वजहें हैं। इनमें से एक है यूक्रेन वॉर, जिसके चलते फूड सप्लाई कम हो चुकी है। वहीं चीन में कोरोना लॉकडाउन के चलते मांग में कमी आई है। दूसरी तरफ लगातार खराब मौसम के चलते भी खेती-बाड़ी पर असर पड़ने की भविष्यवाणी है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने अगस्त में रेपो रेट में तीसरी बार इजाफा किए जाने की घोषाणा की। 50 बेसिस प्वॉइंट्स की बढ़ोत्तरी के साथ अब यह 5.40 फीसदी है। आरबीआई ने 2022-23 के लिए महंगाई दर 6.7 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। वहीं जीडीपी ग्रोथ रेट 7.2 फीसदी रहने का अनुमान है। खाद्य पदार्थों की कीमत में इजाफे के चलते भारत की रिटेल महंगाई दर अगस्त में 7 फीसदी तक पहुंच गई थीं, जबकि जुलाई में यह 6.71 फीसदी थी। वहीं कंज्यूमर इंफ्लेशन रेट लगातार आठवें महीने, सेंट्रल बैंक द्वारा तय 4 फीसदी की लिमिट के ऊपर रहा है। हालिया वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट बताती है कि केवल इंट्रेस्ट रेट्स बढ़ाना महंगाई को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। इसके लिए देशों को सामानों की उपलब्धता में भी इजाफा करना होगा। वर्ल्ड बैंक प्रेसीडेंट ने कहा कि पॉलिसी मेकर्स को खपत कम करने पर फोकस करने के बजाए उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देना होगा।

नमस्कार, हम एक गैर-लाभकारी संस्था है। और इस संस्था को चलाने के लिए आपकी शुभकामना और सहयोग की अपेक्षा रखते है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।

Log In

Forgot password?

Don't have an account? Register

Forgot password?

Enter your account data and we will send you a link to reset your password.

Your password reset link appears to be invalid or expired.

Log in

Privacy Policy

Add to Collection

No Collections

Here you'll find all collections you've created before.

Exit mobile version