दुनियां ने की सराहना देश कर रहा है नजरअंदाज, सबसे अधिक काम, सबसे कम भुगतान!

आर्थिक उदारीकरण की नीतियों ने देश की गरीब जनता के शोषण के कई तरीके खोज निकाले हैं। दैनिक वेतन भोगी, अस्थाई कर्मचारी, संविदा कर्मचारी, अतिथि शिक्षक, अग्निवीर जैसी अनेक योजनाओं के नाम से देश के बेरोजगारों का निर्मम शोषण जारी है। इन योजनाओं में बेरोजगार युवा ” मरता क्या न करता ” की मजबूरी में अपने जीवन की एक लंबी अवधि इस उम्मीद में बिता देता है कि कभी तो उनके भी अच्छे दिन आएंगे। इसी श्रंखला में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की योजना Accredited Social Helth Activist ( AASHA ) आशा भी है। देश की 10 लाख से अधिक अल्प शिक्षित महिलाएं बिना उचित संसाधनों के स्वास्थ्य सुधार के क्षेत्र में झोंक दी गई है। कोविड-19 महामारी के दौरान सामुदायिक स्वास्थ्य की देखभाल के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी 75 वीं विश्व स्वास्थ्य सभा में भारत की आशा कार्यकर्ताओं को ” ग्लोबल हेल्थ लीडर अवॉर्ड- 2022 ” से सम्मानित किया है। वहीं भारत में आशा कार्यकर्ता न्यूनतम वेतन की मांग को लेकर आए दिनों धरना प्रदर्शन में जाने के लिए विवश हैं।

अतीत से वर्तमान तक आशा
वर्ष 1978 में सोवियत संघ के अल्माअता में प्राथमिक स्वास्थ्य की देखभाल पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ था। इसी सोच को वर्ष 2002 में विस्तार मिला। भारत के छत्तीसगढ़ में मितानिन पहल ( एक महिला मित्र ) के रूप में। एक मितानिन को 50 घरों और 250 लोगों के स्वास्थ्य पर ध्यान रखने की जिम्मेदारी सौंपी गई।

इस प्रयोग की सफलता को आधार बनाकर देश में वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत आशा स्वयं सेविकाओं की भूमिका निर्धारित की गई। वर्ष 2013 में उन्हें शहरों से भी जोड़ा गया। 25 से 45 वर्ष आयु वर्ग की आठवीं पास महिला आशा कार्यकर्ता बन सकती है। आशा मान्यता प्राप्त अवैतनिक स्वयंसेवक है, शासकीय कर्मचारी नहीं। ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत आशा कार्यकर्ताओं को काम के आधार पर प्रोत्साहन राशि दिए जाने का प्रावधान है। केंद्र सरकार द्वारा ₹2000 मासिक मानदेय प्रदान कर उनसे 60 से अधिक काम लिए जाते हैं। व्यवहार में सरकार स्वास्थ्य से हटकर अन्य बेगार भी इन आशा कार्यकर्ताओं से लेती है, बिना किसी भुगतान के।

अनेक जिम्मेदारियां हैं आशा पर
1000 से अधिक आबादी पर एक आशा कार्यकर्ता को प्रदेश में स्कूलों में जाकर बच्चों में मीजल्स, रूबेला टीके लगे हैं या नहीं सर्वे करना पड़ा है। मिशन इंद्रधनुष के तहत टीकाकरण से छूटे बच्चों की पहचान, आयुष्मान कार्ड के पात्र लोगों का सर्वे कर उन्हें कार्ड बनवाने में मदद करना, आयुष्मान कार्ड वाले रोगियों को लाभ दिलाना, स्कूलों में जाकर 5 साल से कम उम्र के बच्चों का सर्वे करना जिन्हें टीडी व टीपीटी के टीके नहीं लगे हैं उनके लिए टीके लगवाने की व्यवस्था करना।

दुनियां ने की सराहना देश कर रहा है नजरअंदाज, सबसे अधिक काम, सबसे कम भुगतान!

यही नहीं मुख्यमंत्री जन सेवा अभियान में राशन वितरण, अटल पेंशन, समग्र आईडी में नाम जुड़वाने सहित अनेक सरकारी योजनाओं के लिए घर घर जाकर पात्र लोगों को ढूंढना, उन्हें योजनाओं से जोड़ने के काम में भी लगाया जाता है। यूं तो सभी कार्यों के लिए उन्हें भुगतान का आश्वासन मिलता है, लेकिन भुगतान नहीं। आशा कार्यकर्ताओं को गर्भवती महिला एवं उसके शिशु के पोषण की देखभाल, महिला के गर्भवती होने से प्रसव तक उसकी देखभाल, 9 माह में चार बार जांच के लिए प्रसूता को अस्पताल ले जाना, आयरन सहित अन्य दवाइयां दिलवाना। स्तनपान के लिए प्रोत्साहित करना। गर्भनिरोधक गोलियां, निरोध वितरित करना। निजी एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना। गरीब महिलाओं को गरीबी रेखा के नीचे होने का प्रमाण पत्र दिलवाना। घरों में शौचालय निर्माण हेतु प्रोत्साहित करना आंगनबाड़ियों के साथ मिलकर माह में दो बार स्वास्थ्य दिवस आयोजित करना, नजदीक स्वास्थ्य स्वास्थ्य केंद्र पर उपलब्ध सेवाओं का लाभ लेने के लिए लोगों को प्रेरित करने जैसी अनेक जिम्मेदारियां भी इन्हें सौंपी गई है।

आशा कार्यकर्ताओं को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन से भी कम मानदेय मिलता है। प्रदेश में उन्हें मात्र ₹2000 दिए जाते हैं। जबकि अनेक अन्य राज्य इससे अधिक राशि का भुगतान करते हैं। हर राज्य में आशा कार्यकर्ताओं के वेतन और सेवा शर्ते अलग- अलग हैं। राज्य सरकारें चाहे तो उनका वेतन बढ़ा सकती है। हरियाणा सरकार आशा कार्यकर्ताओं को ₹4000 आंध्र प्रदेश सरकार ₹10,000 की प्रोत्साहन राशि देती है। हिमाचल प्रदेश में केंद्र द्वारा दिए गए ₹2000 की राशि के अलावा उन्हें 4,700 का अतिरिक्त भुगतान किया जाता है।

केरल सरकार भी ₹9000 मासिक देती है। मध्य प्रदेश सरकार आशा कार्यकर्ताओं को वही ₹2000 देती है जो उसे केंद्र सरकार से मिलते हैं। अपनी ओर से प्रदेश सरकार का कोई योगदान नहीं है। प्रदेश में 60 हजार 105 आशा कार्यकर्ताओं का काम 57,317 कार्यकर्ताओं से लिया जा रहा है।

कोविड महामारी में
कोविड-19 महामारी के दौरान आशा कार्यकर्ताओं को बिना किसी सुरक्षा के संक्रमण रोकने के लिए अग्रिम पंक्ति पर भेज दिया गया। इस सेवा को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो मान्यता दी लेकिन हमारी सरकारों ने इस सेवा को नजरअंदाज कर दिया और उन्हें कोई विशेष भुगतान नहीं किया गया। आलोचना होने पर सरकार ने कहीं नगर निगम से कहा तो कहीं रेड क्रॉस सोसायटीओं पर भुगतान की जिम्मेदारी डाल दी गई।

आंध्र प्रदेश आशा वर्कर यूनियन की महासचिव के धन लक्ष्मी के अनुसार उनके प्रदेश में कोविड के दौरान 35 आशा कार्यकर्ताओं की मृत्यु हो गई। उनमें से केवल 3 को ही बीमा राशि का लाभ मिला अन्य राज्यों में कितनी आशा कार्यकर्ता शहीद हुई इसकी कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं है।

कम भुगतान से आशा कार्यकर्ताओं में असुरक्षा की भावना बढ़ती है। इसका असर कामकाज पर भी पड़ता है। सुविधाएं और सम्मानजनक मानदेय मिले तो वे अपनी भूमिका प्रभावी तरीके से निभा सकती हैं।

काम के आधार पर भुगतान
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन अंतर्गत आशा कार्यकर्ताओं को स्वयंसेवक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसलिए न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारें इन्हें न्यूनतम दैनिक वेतन देने के लिए बाध्य है, जबकि इन कार्यकर्ताओं पर काम का सर्वाधिक बोझ डाला गया है। गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए कभी भी अचानक अस्पताल ले जाने की जिम्मेदारी इन्हें 24 घंटे का सेवक बना देती है। ” काम के आधार पर भुगतान ” का मापदंड केवल आशा कार्यकर्ताओं के लिए ही है। केंद्र व राज्यों में लाखों रुपए वेतन पाने वाले स्थाई कर्मचारी इस मापदंड से बाहर हैं।

संगठित हो रही है आशा
आशा कार्यकर्ताओं ने अपनी 18 सूत्रीय मांगों को लेकर महा संघ का गठन किया है। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में विगत दिनों तीन दिवसीय सम्मेलन आयोजित हुआ था। जिसमें नवगठित राष्ट्रीय महासंघ की अध्यक्ष केरल की पीपी प्रेमा महासचिव पश्चिम बंगाल की मधुमति बनर्जी और कोषाध्यक्ष महाराष्ट्र की पुष्पा पाटिल को चुना गया । महासंघ ने 45 में व 46 में भारतीय श्रम सम्मेलनों द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार न्यूनतम वेतन की मांग की है।

महासंघ के अनुसार प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली में कर्मचारियों की व्यापक कमी को देखते हुए आशा कार्यकर्ताओं को स्थाई कर्मचारी का दर्जा दिया जाना चाहिए। आशा कार्यकर्ताओं का न्यूनतम वेतन ₹26,000 मासिक के अलावा उनके लिये मातृत्व अवकाश ग्रेच्युटी, पेंशन का भी प्रावधान हो। अपनी मांगों को मनवाने के लिए आगामी वर्ष बजट सत्र के दौरान वे संसद के सामने प्रदर्शन करेगी।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।

Log In

Forgot password?

Don't have an account? Register

Forgot password?

Enter your account data and we will send you a link to reset your password.

Your password reset link appears to be invalid or expired.

Log in

Privacy Policy

Add to Collection

No Collections

Here you'll find all collections you've created before.

Exit mobile version