कैसा मीडिया चाहती है जनता..?

राजेश ज्वेल : सबसे पहले यह स्पष्ट कर दूं कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों की तरह चौथे स्तंभ यानी मीडिया में भी ढेरों खामियां हैं… बावजूद इसके जिस तरह हमें सभी संवैधानिक संस्थाएं चाहिए, उसी तरह मीडिया की उपस्थिति भी अत्यंत जरूरी है… सभी जगह से थक-हारने के बाद जनता अपनी समस्याओं को लेकर किसी पत्रकार को ही ढूंढती है..वही विपक्ष में रहते हुए राजनीतिक दलों और नेताओं को मीडिया की दरकार अधिक रहती है… यह बात अलग है कि सत्ता में आते ही वही मीडिया नागवार गुजरने लगता है… दैनिक भास्कर समूह पर आयकर छापे पड़े हैं… हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब सत्ता ने मीडिया को इस तरह से दबाना-कुचलना चाहा हो… आपातकाल तो इसका उदाहरण है ही, वहीं एक्सप्रेस समूह पर भी कांग्रेस ने छापे डलवाए थे… मगर उससे बड़ा सवाल यह है कि जनता यानी पाठक को क्या पढऩा और देखना चाहिए और उसे कैसा मीडिया चाहिए …चापलूस या बेबाक.. किसी भी मीडिया समूह या पत्रकार के लिए सत्ता से जुडऩा सबसे आसान है और हर सत्ता यह चाहती भी है… मगर इसमें मीडिया का तो फायदा है, लेकिन जनता का नुकसान है, क्योंकि वह न्याय पाने के अपने सबसे आसान हथियार को खो देता है…

कैसा मीडिया चाहती है जनता..?

कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन, इंजेक्शन और इलाज के अभाव में हजारों मरीजों ने दम तोड़ दिया और हम सब उसके साक्षी हैं.. श्मशान घाटों में अनवरत जलती चिताएं भी पूर्ण सत्य है… तो फिर इसके खुलासे से आपत्ति किसे और क्यों होना चाहिए .? जाहिर है उसी सत्ता को ,जिसमें केंद्र से लेकर राज्यों की सरकारें शामिल है, जो बेशर्मी से यह दावा करती है कि ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत नहीं हुई और साथ में जासूसी कांड को भी सिरे से नकार देती है.. अब जनता को यह तय करना है कि उसकी ऑक्सीजन, इंजेक्शन या इलाज से लेकर तमाम समस्याओं को बेबाकी से उजागर करने वाले मीडिया के साथ खड़े होना है या इन पर पर्दा डालने वाली गोदी गैंग के साथ..? मान लीजिए कल से सत्ता के साथ शत प्रतिशत मीडिया संगनमत हो गया तो इसमें असल नुकसान किसका है..? 90 फीसदी तो गोदी मीडिया में तब्दील होकर सरकारी भोंपू बन गए है, जो 10 फीसदी बचे है उनका तो समर्थन कीजिये वरना आप के हाथ कुछ नहीं बचेगा.. सीबीआई, आयकर ईडी से लेकर अन्य एजेंसियों का इस्तेमाल पुरानी सरकारें भी करती थी, मगर बीते कुछ समय में इनका जो निरंकुश और बेशर्मी भरा इस्तेमाल शुरू हो गया है, वो साफ नजर तो आता है ,साथ ही समाज के लिए भी धीमा जहर है…कैथरीन ग्राहम की यह बात हमेशा सच रहेगी कि खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है, बाकी सब विज्ञापन हैं… अब जनता-जनार्दन ही तय करें कि उसे दबाने वाला मीडिया चाहिए या हक़ीक़त उजागर करने वाला..?

यह लेख मूल रूप से राजेश ज्वेल के फेसबुक पर प्रकाशित हुआ है।

नमस्कार, हम एक गैर-लाभकारी संस्था है। और इस संस्था को चलाने के लिए आपकी शुभकामना और सहयोग की अपेक्षा रखते है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।

Log In

Forgot password?

Don't have an account? Register

Forgot password?

Enter your account data and we will send you a link to reset your password.

Your password reset link appears to be invalid or expired.

Log in

Privacy Policy

Add to Collection

No Collections

Here you'll find all collections you've created before.

Exit mobile version