गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के साथ ही कई उपचुनाव हुए और देश की राजधानी दिल्ली के नगर निगम के चुनाव भी हुए। एक साथ हुए इन चुनावों के परिणामों के आधार पर 2024 के लोकसभा चुनावों के परिणामों की चर्चा होने लगी है। स्पष्ट दिख रहा है कि, दो राज्यों के विधानसभा चुनावों, कई उपचुनावों और दिल्ली नगर निगम के परिणामों ने 2024 के राजनीतिक समीकरण को पूरी तरह से परिवर्तित कर दिया है। अब सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि, क्या राजनीतिक समीकरण में दिख रहे इस बड़े परिवर्तन से देश की राजनीतिक सत्ता का परिवर्तन भी होता दिख रहा है। आज बतंगड़ में इसी को समझाने की प्रयास कर रहा हूँ। गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य और भारतीय जनता पार्टी की आज की राजनीतिक बुनियाद के तौर पर देखा जाता है। हिंदुत्व और विकास की राजनीतिक के जिस गुजरात मॉडल को लेकर भाजपा ने पूरे देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सफलता प्राप्त की है, सबसे पहले उसी राज्य के परिणामों की चर्चा आवश्यक हो जाती है।
गुजरात विधानसभा चुनावों की शुरुआत में ही 6 सितंबर 2022 को मैंने लिखा था कि, गुजरात विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी 1985 के कांग्रेस के रिकॉर्ड को तोड़ सकती है। भाजपा का मत प्रतिशत 50 के पार जा सकता है। कांग्रेस 1985 में मिली जनता पार्टी की सीट संख्या पर सिमट सकती है। आम आदमी पार्टी शून्य थी और शून्य ही रहेगी। आम आदमी पार्टी ने 5 सीटें जीत ली हैं और इस तरह से आम आदमी पार्टी की सीटों को लेकर मेरा अनुमान पूरी तरह सही नहीं हो सका। हालाँकि, आम आदमी पार्टी के तीनों महत्वपूर्ण चेहरे, इशुदान गढ़वी, गोपाल इटालिया और अल्पेश कथीरिया, चुनाव हार गए हैं। आम आदमी पार्टी के आजीवन संयोजक की स्थिति में स्वयं को स्थापित कर चुके अरविंद केजरीवाल को भी यही तीन सीटें जीतने का भरोसा था और इन्हीं तीनों की जीत के लिए इन्होंने सार्वजनिक मंच पर लिखकर एलान किया था। कुल मिलाकर तुक्के की, झूठ बोलकर माहौल बनाने की राजनीति में प्रवीणता प्राप्त कर चुकी आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर झूठ के किस्से कहानियों से 5 सीटें जीतकर शानदार तरीके से गुजरात में प्रवेश कर लिया है। दस प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करने के साथ ही आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी बन गई है। गुजरात विधानसभा चुनावों में दस प्रतिशत मत के साथ ही दिल्ली नगर निगम में 134 सीटें प्राप्त करके आम आदमी पार्टी ने 2024 के लिए हुए राजनीतिक परिवर्तन में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका बना ली है। दिल्ली नगर निगम में भारतीय जनता पार्टी का 100 के ऊपर सीटों पर जीतना यह स्पष्ट करता है कि, 15 वर्षों की सत्ता के बाद भी दिल्ली के लोगों का भाजपा पर भरोसा कमजोर नहीं हुई है। स्थानीय नेतृत्व की कमी की बात गंभीरत से सामने आती रही है, इस पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को सही निर्णय लेने की आवश्यकता है। कांग्रेस पार्टी के लिए दिल्ली दिल्ली नगर निगम से भी बहुत बुरा समाचार आया है और उससे भी बुरा समाचार यह है कि, कुल जीते 9 पार्षदों में 2 आम आदमी पार्टी के साथ चले गए। कांग्रेस की कमजोरी का सही अनुमान लगाने के लिए दिल्ली नगर निगम की करारी हार के साथ गुजरात के परिणाम भी देखना आवश्यक हो जाता है। मैंने 6 सितंबर को लिखा था कि, गुजरात विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी 1985 के कांग्रेस के रिकॉर्ड को तोड़ सकती है। भाजपा का मत प्रतिशत 50 के पार जा सकता है। कांग्रेस 1985 में मिली जनता पार्टी की सीट संख्या पर सिमट सकती है। वही हुआ है। 1985 में जनता पार्टी को कुल 14 सीटें मिलीं थी, कांग्रेस 2022 में कुल 17 सीटें ही जीत सकी है।
राहुल गांधी की बचकानी राजनीतिक हरकतों से कांग्रेस पार्टी गुजरात में पूरी तरह सुप्तावस्था में रही और इसका परिणाम रहा कि, बिना किसी आधार के आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के पक्के वाले मतदाता समूह में सेंध लगा दी। कुछ राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे थे कि, आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ भाजपा का भी कुछ नुकसान करने वाली है। यह बात मैं लगातार कह रहा था कि, यह संभव ही नहीं है कि, भाजपा को मतदान करने वाला गुजराती आम आदमी पार्टी को मत दे और यही हुआ। साथ ही कांग्रेस को मत देने वाले करीब दो प्रतिशत गुजराती मतदाताओं ने कांग्रेस छोड़ा तो भाजपा को ही चुन लिया। गुजरातियों की मनःस्थिति का सही अनुमान इसी आँकड़े से लगता है। भारतीय जनता पार्टी को 182 में से 156 विधानसभा सीटों पर जीत मिल गई है और करीब 53 मत प्रतिशत पहुँचा दिया। जिस कांग्रेस को 2017 के चुनाव में 41 प्रतिशत से अधिक मत गुजरातियों ने दिया था, उसी कांग्रेस को इस बार सिर्फ 27 प्रतिशत मत दिया। करीब 13 प्रतिशत मत केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को मिल गए हैं। दरअसल, यही मूल राजनीतिक परिवर्तन हुआ है जो, 2024 में स्पष्ट दिखेगा। हिमाचल प्रदेश में अंतर्कलह की वजह से भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के करीब-करीब बराबर मत प्राप्त करने के बावजूद बुरी तरह पिछड़ गई है। यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि, राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर भी उसी राज्य से आते हैं। अनुराग ठाकुर के क्षेत्र में भी भाजपा अपनी सीटें नहीं बचा पाई। हिमाचल प्रदेश और दिल्ली नगर निगम के परिणाम भारतीय जनता पार्टी की स्थानीय नेतृत्व पर भरोसे के गंभीर संकट को जगजाहिर कर रहे हैं। हालाँकि, यहाँ एक बात यह भी चिन्हित करने लायक़ है कि, आम आदमी पार्टी की गुजरात में अधिकतर सीटों पर जमानत जब्त हो गई है और हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी पूरी तरह से साफ हो गई है। अब इसे 2024 के लोकसभा चुनावों के लिहाज से थोड़ा गहराई से लेकिन, मुख्य बिंदु में समझते हैं।
पहला और सबसे महत्वूपर्ण बिंदु- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आसपास का कोई नेता किसी राजनीतिक दल में नहीं है। दूसरा- अरविंद केजरीवाल को लोग कांग्रेस के विकल्प के तौर पर देखने लगे हैं और तीसरा- कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व भयानक मतिभ्रम का शिकार है और उससे उबरने की उसकी न कोई इच्छा दिखती है और न ही कोई योजना। राहुल गांधी को यही समझ नहीं आ रहा है कि, जाना कहां है, इसीलिए सही रास्ता खोजने की ओर राहुल गांधी जाते भी नहीं दिख रहे। अब अगले वर्ष कई राज्यों में विधानसभा का चुनाव होना है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ बचाना कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी। आम आदमी पार्टी की महत्वाकांक्षा बढ़ेगी और उन राज्यों में भी कांग्रेस के हिस्से से कुछ छीनने की कोशिश केजरीवाल की पार्टी अवश्य करेगी। उत्तर प्रदेश में मैनपुरी और खतौली ने समाजवादी पार्टी के गिरते आत्मविश्वास को थोड़ा थामा है, लेकिन रामपुर ने पक्के वाले मतदाता समूह पर अविश्वास पैदा कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी के लिए रामपुर जीतना बहुत बड़ी खबर है। खतौली के नये समीकरण उसके लिए चिंता की बात हैं। बिहार के कुढ़नी में हुआ उपचुनाव बिहार राज्य में नीतीश कुमार की पिछलग्गू रही भाजपा को बहुत बड़ा आत्मविश्वास दे गई है। इससे पहले भाजपा गोपालगंज उपचुनाव में भी जीत दर्ज कर चुकी है, लेकिन कुढ़नी ने दिखाया है कि, नीतीश कुमार के अति पिछड़ा मतदाता समूह में भारतीय जनता पार्टी की पैठ पक्की हो रही है। नीतीश कुमार के साथ ही उनकी पार्टी का भी अस्तित्व खतरे में पड़ता दिख रहा है। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड जीत रायसीना पहाड़ी पर द्रौपदी मुर्मू के आसीनहोने के सुखद परिणाम के तौर पर भी आसानी से देखा जा सकता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने अबकांग्रेस धुरी नहीं रह गई। उस धुरी को सबसे तगड़ी चोट अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दे दी है, लेकिन बहुत छोटे हिस्से में होने से केजरीवाल भी स्वयं धुरी नहीं बन सकते। राहुल गांधी के सामने विपक्ष के दावेदारों में अब अरविंद केजरीवाल भी शामिल हो गए हैं और इन सब वजहों से अब 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014, 2019 से भी शक्तिशाली होते दिख रहे हैं।
Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। ये जरूरी नहीं कि द हरिश्चंद्र इससे सहमत हो। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।