
सुसंस्कृति परिहार : जैसा कि सर्वविदित है पूर्वांचल भारत सबसे सुंदर प्राकृतिक वैविध्य पूर्ण दृश्यों, विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं, रहन-सहन ,पहनावों और खान-पान के लिए जाना जाता है। यह प्राचीन समय में प्राग्ज्योतिष और कामरुप के नाम से विख्यात रहा है। असम का आशय ही तब ऊंचे नीचे क्षेत्र से था बाद में यह क्षेत्र असम जब ब्रिटिश शासकों के नियंत्रण में आया तो जिन्होंने लुशाई पहाड़ियों (जिसे उस समय मिजोरम के रूप में जाना जाता था) और कछार पहाड़ियों (असम में) के बीच की सीमा का सीमांकन किया था. इसके लिए 1873 में एक विनियमन या अधिसूचना जारी की गई थी। जिसके तहत इस क्षेत्र में प्रवेश हेतु इधर लाइन परमिट की ज़रूरत महसूस की गई। इससे यह तो साफ जाहिर है कि कछार क्षेत्र असम का माना गया और पहाड़ी क्षेत्र पहाड़ों पर रहने वाला का था।
आज़ादी के समय, पूर्वोत्तर भारत में असम ,मणिपुर और त्रिपुरा की रियासतें शामिल थीं। नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम को 1963 और 1987 के बीच असम के बड़े क्षेत्र से अलग करके बनाया गया था. राज्यों को अलग उनके इतिहास और इन इकाइयों में रहने वाले लोगों की सांस्कृतिक पहचान के आधार पर किया गया था। तब से लेकर अंदर अंदर आग पहाड़ी क्षेत्रों में धधकने लगती है। उदाहरण के लिए नागालैंड को लें नागा दीमापुर को अपना नहीं मानते वे मणिपुर के पहाड़ी जीरे माओ और सेनापति को अपना मानते हैं। मणिपुर की बसों को इसलिए वे कोहिमा में रुकने की अनुमति नहीं देते वे सीधे दीमापुर से माओ ही रुकती हैं। वस्तुत:देखा जाए तो उनकी मांग उचित है इसी तरह का विभाजन मिज़ोरम को चाहिए। लेकिन सड़कों के ज़रिए लोगों का जिस तरह विस्थापन पहाड़ों पर अंग्रेजी शासन से हुआ है वहीं विवादास्पद है। पहाड़ों पर कछारी लोगों ने मणिपुर, मिज़ोरम और नागालैंड की पहाड़ियों पर कब्ज़ा किया हुआ है वे अब वहां के वाशिंदे हैं इन्हें हटा नहीं जा सकता लेकिन प्राकृतिक आधार पर प्रदेशों की सीमाएं बनाई जा सकती है। इस बात से हम हम वाकिफ हैं ही कि आदिवासी अपनी संस्कृति में घालमेल के सख़्त खिलाफ हैं।
बहरहाल हाल के आसाम और मिजोरम सीमा पर जो कुछ हुआ है वह विचारणीय है। दोनों राज्यों में भाजपा सरकारें हैं लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा ने मिजोरम के ईसाई धर्मावलंबियों के खिलाफ जो बीज बोए उसका अनुकरण सीमा विवाद के बहाने इस रूप में मुखर हुआ है असम के नाते मुख्यमंत्री सरमा और मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरेन को केन्द्र सरकार के साथ मिलकर इसका प्रकाशन समाधान खोजना होगा। क्योंकि मिज़ोरम फ्रंट और लालडेंगा ने जो विद्रोही यहां तैयार किए थे वह आज भी मिज़ोरम के लिए संघर्ष करने तत्पर हैं। भारत सरकार की हीलाहवाली उन्हें पड़ौसी मुल्कों से ना केवल मदद लें सकती है बल्कि भारत से अलग थलग भी कर सकती है।
1993 की अधिसूचना के बाद, विशेष रूप से 1995 के बाद सीमा विवाद को सुलझाने के लिए कई प्रयास किए गए, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ये रहा कि ये अनसुलझे रहे. 2005 में, सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि विवाद को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार एक सीमा आयोग का गठन करे। असम और मिजोरम लगभग 165 किमी की सीमा साझा करते हैं. मिजोरम में सीमावर्ती जिले आइजोल, कोलासिब और ममित हैं जबकि असम में वे कछार, करीमगंज और हैलाकांडी विवाद कोलासिब से प्रारंभ हुआ और क्रीम के आसपास तक पहुंच गया। मिजोरम विद्रोहियों द्वारा वाला यहां बंकर बनाए जाने की ख़बर दी है।
ज्ञात हुआ है,मिजोरम सरकार ने एक सीमा आयोग का गठन किया है और इसके बारे में केंद्र को आधिकारिक रूप से सूचित किया है. मिजोरम का सीमा आयोग इस समय अपने मामले को मजबूत तरीके से पेश करने के लिए पुराने नक्शों और दस्तावेजों की गहनता से जांच कर रहा है ताकि विवाद का निपटारा जल्द से जल्द हो।
विदित हो देश के गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक करने के दो दिन बाद हाल की झड़पें हुईं. बैठक में सीमा विवाद पर चर्चा हुई और नेताओं ने कहा कि अब वो समय आ गया है जब क्षेत्रीय विवादों को जल्द से जल्द सौहार्दपूर्ण ढंग से जल्द से जल्द सुलझा लिया जाए। क्योंकि सेवेन सिस्टर्स लंबे अर्से से तनाव ग्रस्त हैं। यह तनाव विस्फोटक रुप ले सकता है।
