
संजय कुमार सिंह : आज ज्यादातर अखबारों में 100 करोड़ लोगों को टीका लगने का प्रचार प्रमुख खबर के रूप में है। दैनिक जागरण की खबर है, भारत ने रचा 100 करोड़ डोज का इतिहास। इसमें कहा गया है, कोरोना टीकाकरण में भारत ने 100 करोड़ डोज पार करने के साथ ही नया इतिहास रच दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सफलता का श्रेय देश के विज्ञान और उद्यम के साथ ही 130 करोड़ लोगों की सामूहिक भावना को दिया। सौ करोड़वीं डोज के ऐतिहासिक क्षण का भागीदार बनने के लिए प्रधानमंत्री खुद राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल गए और टीकाकरण का जायजा लिया। भारत की इस उपलब्धि पर दिनभर देश-विदेश से बधाइयों का तांता लगा रहा।
इसमें खास बात यह है कि 884 करोड़ (88.4 प्रतिशत) खुराक कोवीशील्ड की है और कोई तीन करोड़ खुराक के पैसे लगवाने वालों ने दिए हैं। टीका लगवाकर फंसे लोगों की संख्या भले कम हो लेकिन उसपर पूरी चुप्पी है। आप जानते हैं कि बच्चों को छोड़ दें तो देश में वयस्कों की आबादी 130 करोड़ के करीब होगी जिन्हें टीके लगने हैं और यह दो खुराक का टीका है। ऐसे में 100 करोड़ की गिनती का कोई खास मतलब नहीं है क्योंकि इससे यह पता नहीं चलता है कि कितने लोगों को दोनों खुराक लग गई या किस आयु वर्ग के सभी लोगों को दोनों खुराक लग चुकी है। वैसे भी 100 करोड़ खुराक लगने का मतलब यही है कि 50 करोड़ लोगों को ही दोनों खुराक लगी है और अभी 80 करोड़ लोगों को लगना बाकी है। या यह जरूरत का 38.46 प्रतिशत ही है। इसे दूसरी तरह से कहा जा रहा है और संख्या को बढ़ाकर प्रचारित किया जा रहा है।
अखबारों की खबरों के अनुसार 45-59 साल के लोगों में 41 प्रतिशत और 60 पार के 43 प्रतिशत लोगों को ही दोनों खुराक मिली है। अखबारों की खबरों में यह नहीं बताया गया है कि दूसरे देशों की तुलना में कितना कम या ज्यादा है। सिर्फ अपने 100 करोड़ का प्रचार किया जा रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार शुरू के 50 करोड़ टीके लगाने में 202 दिन लगे पर बाद वाले सिर्फ 76 दिन में हो गए। अखबारों ने यह नहीं बताया है कि बाकी बचे (दोनों खुराक) टीकों के लिए और कितने दिन लगेंगे या 31 दिसंबर का लक्ष्य पूरा होगा कि नहीं या कितने दिन बढ़ाया जाएगा।
आप जानते हैं कि शुरू में 45 साल से ऊपर के लोगों को प्राथमिकता के आधार पर टीका लगाया गया और अभी उन्हें पूरी तरह टीका नहीं लगा है। उस लिहाज से सोचिए कि लगभग 300 दिन में लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है और 15 दिन की लहर में हजारों लोग मर गए। काम महामारी से मुकाबले का है सरकारी संसाधनों और पीएम केयर्स के उपयोग का है और आंकड़ों का खेल कर प्रचार पाने की कोशिश चल रही है। अभी बच्चों को टीका लगने का कोई हिसाब नहीं है जबकि तीसरी लहर बच्चों को प्रभावित करने वाली होगी ऐसी खबर थी। उससे बचाव आज की खबर इस मुद्दे पर भी शांत है।
यही नहीं, सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही कोविड से 4.53 लाख लोगों की मौत हुई है हालांकि अनुमान 40 से 65 लाख मौतों का है। इतना भारी नुकसान होने के बाद नौ-दस महीने में टीके की 100 करोड़ खुराक लगा देना लगा देना इतनी बड़ी उपलब्धि नहीं है। उपलब्धि तब होगी जब बाकी के लोगों को कम से कम समय में टीका लगाने का रिकार्ड बने और यह दूसरे देशों के मुकाबले में हो। भारत की आबादी ज्यादा है (तो संसाधन भी ज्यादा हैं, होने चाहिए) ऐसे में आबादी के कितने प्रतिशत के लिए काम हुआ यह महत्वपूर्ण है न कि यह बताना कि आज एंटीगुआ की आबादी के बराबर लोगों को खाना बांटा गया और आज सेशेल्स की आबादी के बराबर को टीका लग गया। लेकिन इस हिसाब से भारत में कोई भी काम महीनों छोड़िए वर्षों में पूरा होगा। और मरने वालों की संख्या सेशेल्स या एंटीगुआ के मुकाबले पांच गुना से भी ज्यादा है।
भारत की आबादी ज्यादा है तो वैटिकन सिटी की आबादी 451 है, भारत में इससे ज्यादा सांसद हैं। फिर भी, प्रचारक हैं कि मानते नहीं।
