ज्ञानवापी में श्रृंगार गौरी के मंदिर की तलाश : महिलाओं की याचिका, एक और बहाना !

ज्ञानवापी में श्रृंगार गौरी के मंदिर की तलाश : महिलाओं की याचिका, एक और बहाना !

सुसंस्कृति परिहार : बड़ा मुश्किल दौर है बनारस के प्रख्यात विश्वनाथ मंदिर का कायाकल्प होने और उसे अंतररराष्ट्रीय पहचान मिलने के बाद भी अभी चैन नहीं है ।  पार्श्व में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में श्रृंगार गौरी मंदिर और उनके पूजन अर्चन का एक नया विवाद शुरू हो गया है। विगत शुक्रवार को जब वहां सर्वे टीम  पहुंची तो शुक्रवारी नमाज़ में अपेक्षाकृत अधिक भीड़ थी तब सर्वे के विरोध में अल्लाहू अकबर और मंदिर परिसर से हर हर महादेव के नारे ऐसे गूंजे माने कोई नया धर्म युद्ध शुरू हो रहा हो। आसपास के लोग घबरा गए ,दूकानें बंद हो गई । हालांकि वहां पहुंची सर्वे टीम वीडियोग्राफी नहीं कर पाई ।  लोग कह रहे हैं  ऐसे झगड़े कभी ख़त्म नहीं होने वाले ।जो हकीकत है अदालतों को एक बार सख़्त निर्णय लेकर ऐसे मुद्दों पर पूर्ण विराम लगाने की ज़रूरत है।अगर इस विवाद को पहले निपटा दिया गया होता तो बार बार का सिरदर्द ख़त्म हो गया होता।लेकिन जैसा कि सर्वविदित है कि वर्तमान सरकार ऐसे मुद्दे गर्म रख अल्पसंख्यक पक्ष को परेशान करने की जुगत में लगी ही रहती है। अयोध्या के बाद मथुरा काशी बाकी है की बात कहते हुए जो पार्टी सत्ता में आई है तो उसे कुछ ना कुछ तो करना ही है।आग लगी रहे तो काम चलता रहेगा बुझ गई तो फिर इतना आसान मसला कहां मिलेगा?

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख श्री काशी विश्वनाथ मंदिर और उसी परिक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का केस भले ही वर्ष 1991 से वाराणसी की स्थानीय अदालत में चल रहा हो और हाई कोर्ट के आदेश के बाद मामले की सुनवाई प्रयागराज हाई कोर्ट में पेंडिंग चल रही हो, लेकिन मां श्रृंगार गौरी का केस महज साढ़े 7 महीने ही पुराना है।18 अगस्त 2021 को वाराणसीऔर दिल्ली की पांच महिलाओं राखी,रेखा,मंजू,लक्ष्मी ,सीता ने विश्व वैदिक सनातन संघ के जितेंद्र सिंह के निर्देशन में बतौर वादी वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना दर्शन पूजन की मांग सहित अन्य मांगों के साथ एक वाद दर्ज कराया था। यह संभवतः पहली बार हुआ है कि पूजा करने का वाद महिलाओं ने लगाया है ये सभी महिलाएं विश्व वैदिक सनातन धर्म की सदस्याएं है । कोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए न केवल मौके की स्थिति को जानने के लिए वकीलों का एक कमीशन गठित करने, अधिवक्ता कमिश्नर नियुक्त करने और तीन दिन के अंदर पैरवी का आदेश दिया था इतना ही नहीं विपक्षियों को नोटिस जारी करने के साथ ही सुनवाई की अगली तारीख भी तय कर दी थी।  

ज्ञानवापी में श्रृंगार गौरी के मंदिर की तलाश : महिलाओं की याचिका, एक और बहाना !

बहरहाल देखा जाए तो 1991 और गौरी श्रृंगार मंदिर से जुड़े मामले में क़ानूनी फ़र्क़ समझाते हुए मस्जिद के वकील अभय यादव कहते हैं, “यह जो शुक्रवार को हुआ  है, यह एक अलग मुक़दमा दाखिल किया गया है. यह मुक़दमा है राखी सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार. इस मुकदमे में प्लॉट नंबर 9130 उस प्लॉट में बहुत सारी देवी देवताओं, गणेश जी, शंकर जी, महादेव जी, गौरी श्रृंगार की मूर्तियां  भरी हुई हैं. और उन देवी देवताओं की दैनिक पूजा में कोई हस्तक्षेप न किया जाये। श्रृंगार गौरी में साल में एक बार पूजा होती थी, नवरात्र में चतुर्थी को लेकिन अब यह रोज़ पूजा की बात कर रहे हैं। इनका खुद का कहना है कि वो मंदिर की पश्चिमी दीवार के बाहरी ओर है। मस्जिद के अंदर नहीं है. और अगल बगल जो मूर्तियां होंगी उनके सर्वे के लिए इन्होंने अर्ज़ी दी थी। उसी पर शुक्रवार को कमीशन गया था। हालांकि बाद में सर्वे कार्य वीडियोग्राफी पूरी की जा चुकी है।

सवाल इस बात का है कि इस प्लाट नंबर में यदि मूर्तियां दफ़न हैं तो निश्चित रूप से खंडित हो चुकी होंगी । नवरात्र की चतुर्थी को जो पूजा होती रही उसे प्रत्येक दिन क्यों करने की ज़रूरत क्या आन पड़ी। आखिरकार यह सब किसके इशारे पर हो रहा है। इतिहास बताता है कि ये मंदिर तीन बार तोड़ा गया।अकबर ने जब दीन ए इलाही धर्म चलाया तब मस्जिद बनी।ये सद्भाव की प्रतीक थी।आज भी लोगों को मंदिर मस्जिद के पास होने पर कोई आपत्ति नहीं किंतु संघी विचारधारा का एक बार मस्जिद को तुड़वाने का किसी बहाने उपक्रम जारी है।बनारस में अन्नपूर्णा मंदिर में लगाई मूर्ति असली नहीं है किन्तु उसकी पूजा हो रही है।क्या यह नहीं हो सकता बिना विवाद किए श्रृंगार गौरी का एक मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के विशाल प्रांगण में स्थापित कर इस विवाद का हमेशा के लिए ख़ात्मा कर लिया जाए।

इन गड़े मुर्दों को उखाड़ कर लड़ने झगड़ने से भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय मंच पर निरंतर गिरती जा रही है चंद लोग देश में वैमनस्य को बढ़ावा देने में जुटे हैं इसी आक्रोश का परिणाम शुक्रवार की घटना थी।अगर देखा जाए मूर्तियों को तोड़ने का सिलसिला बहुत पुराना है यह पहले जैन और बौद्ध धर्म के बीच में लंबे समय तक चला। मंदिरों में चूंकि बड़ी मात्रा में धन-संपदा रहती थी इसलिए सोमनाथ जैसे मंदिर महमूद गजनवी द्वारा तोड़े और लूटे गए।यानि मंदिरों को तोड़ना अपने धर्म की प्रतिष्ठा और प्रचार के साथ साथ लूट के मकसद से भी हुआ है। इस दौरान मस्जिदें भी तोड़ी गई । ये काम सभी धर्मों के राजाओं के किया।आज धर्मनिरपेक्ष भारत में यह सब अनुचित है।

अगरचे ,इस तरह पुरातन इतिहास के आधार पर विवाद उठाए जाएं तो उनकी फेहरिस्त बहुत बड़ी होगी स्वाभाविक है इस विवाद का कभी अंत नहीं होने वाला।इस गंदे इतिहास से मुक्त होने का पुरजोर प्रयास होना चाहिए। अदालत को भी चाहिए देश में सतत बिगड़ती स्थितियों को वे रोकने का प्रयास करें।कई बार समझौते और भाईचारे से कठिन सवाल आसान हो जाते हैं। ज़रूरी है श्रृंगार गौरी मंदिर पर भी सब मिलकर उचित निर्णय लें जिससे विवाद जन्य स्थितियां निर्मित ना हो सके तथा देश सर्व धर्म समभाव की सरिता प्रवाहित होती रहे। ‘कहीं तुम झुको कहीं हम ‘यही है मेलजोल का और कामयाबी का मंत्र।

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