अग्निपथ : सरकारी सेवाओं पर निजीकरण के विरुद्ध, आर पार की लड़ाई है ज़रुरी।

सरकारी सेवाओं पर निजीकरण के विरुद्ध, आर पार की लड़ाई है ज़रुरी।

सरकारी सेवाओं में सर्वश्रेष्ठ सेवा सेना में नौकरी करना माना जाता रहा है। आज जो युवा आंदोलनरत हैं उसकी मूल वजह उनकी घनघोर मेहनत और आशाओं पर सरकार द्वारा पानी फेरना है। यदि किसी युवा ने सेना में जाने का मन बनाया है तो उसके पीछे उसका देशप्रेम ,पुनीत कर्त्तव्य और मिलने वाला सम्मान ही प्रमुख है क्योंकि इस सेवा की एवज में उन्हें जीवन भर की पर्याप्त सुविधाएं और मृत्योपरांत परिवार की गारंटी जैसी व्यवस्थाएं मिलती रही हैं सेवा करते हुए शहीद होने पर तिरंगे में लिपटा शव जब घर पहुंचता है तो मां बाप ही नहीं बल्कि उस गांव या नगरवासी का सिर भी सम्मान से झुक जाता था। तोपों की सलामी और पुलिस बैंड की मातमी धुन किसी को डराती नहीं थी बल्कि देश पर मर मिटने के जज़्बात को किशोर और बच्चों के मन में भरती रही है। बच्चे तो अपने जन्मदिन पर फ़ौज की पोशाक पहनना आज भी सबसे ज्यादा पहनना पसंद करते हैं। नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूं बोलो मेरे संग जय हिन्द जय हिन्द। फेन्सीडे्स का सबसे आकर्षक कार्यक्रम आज भी रहता है। गणतंत्र परेड में सैनिकों की परेड देखकर दिल बल्लियों उछलता है। बच्चे कुछ दिन उस परेड का अभ्यास करते नज़र आते हैं।

आज वही बच्चे, किशोर और जवान होकर सड़कों पर आक्रोशित हैं क्योंकि उनके लिए नई अग्निपथ योजना लाई गई है और सैनिक की जगह अग्निवीर शब्द सामने आया है। नाम बदल जाता तो ठीक था पर वर्तमान सरकार ने उनकी भर्ती के स्वरुप को जो रुप दिया है वह उत्तेजना फैलाने का काम कर रहा है। एक तो सिर्फ चार साल की नौकरी संविदा जैसा सामान्य वेतन, वह भी पूरा नहीं। चार साल बाद आपको उस शेष वेतन को लेकर विदा किया जायेगा कहां सिर्फ 25% खास वर्ग के लोग सेना में जायेंगे शेष बेरोजगार होकर कारपोरेट के दरवाजे खटखटायेंगे। गारंटी नहीं उन्हें रोजगार मिलेगा ही। ऐसी तौहीन भावी सैनिक की दुखद और त्रासद है। आंदोलन की तीव्रता देखते हुए कुछ नई बातें प्रलोभन बतौर सामने आ जा रही हैं। जो कतई भरोसे लायक़ नहीं है।

तिस पर तीनों सेना नायकों की धमकियां माशाल्लाह ये तो गज़ब हो रहा है युवाओं के साथ। लिख के दो जो आंदोलन में शामिल नहीं हुए हैं उन्हें ही रोजगार मिलेगा। एक पूर्व सेनाध्यक्ष वी के सिंह जो मंत्री भी हैं के मिज़ाज देखिए कह रहे हैं हम बुलाने नहीं जा रहे जिन्हें आना हो आएं। आप भूल गए अपने कार्यकाल को दो वर्ष बढ़ाने कितने पापड़ बेले। 60वर्ष नौकरी करने के बाद। वे आज बेरोजगार युवाओं का भद्दा मजाक उड़ा रहे हैं। ये भी विवादास्पद है कि सेना के पदाधिकारी, कैसे और क्यों युवाओं को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर धमकी दे रहे हैं। जबकि रक्षामंत्रालय मौन है। लगता तो यही है कि सेना के उच्च पदाधिकारियों ने मलाईमय जीवन जीने के बाद अब सरकार और संघ से मिलकर भविष्य में सेना को निजी हाथों में सौंपने की गूढ़ योजना बनवाई है। अपने लिए दिवंगत सी डी एस विपिन रावत की मंशानुरूप नौकरी की उम्र बढ़ाई जा रही और अन्य सैनिकों के लिए लिखी उनकी इच्छाओं को दफ़नाया जा रहा है। लगता है अब रूस और इज़राइल की तरह ठेके की सेनाएं ही युद्ध लड़ने जाया करेंगी।

आखिरकार यह सब हो क्यों रहा है निजीकरण का लक्ष्य क्या है जो अब तमाम बड़ी सेवाओं को बेचने के बाद सेना का भी नंबर आ गया है।यह वास्तव में सरकार की जिम्मेदारी से बचने की तैयारी है। चीन भारत के गले तक घुसा हुआ है उसकी परवाह नहीं कल को यह कह दिया जायेगा कि ये फलां फलां की जिम्मेदारी थी। रोजगार के मामले में आठ साल से यही चल रहा है रेलवे जैसे सबसे बड़ी नौकरी देने वाले विभाग की दुर्दशा सब जानते हैं दूसरा रोजगार देने वाला शिक्षा विभाग भी निजीकरण की वजह से कम से कम वेतन पर कम नियुक्ति दे रहा है हज़ारों की संख्या में शासकीय स्कूल बंद किए जा रहे हैं। सरकारी नौकरियों के लगभग पूर्ण निजीकरण के बाद सरकार के गुर्गे,और कारपोरेट अप्रत्यक्ष तौर पर मनुसंहिता लागू कर आरक्षण की विदाई कर देगा। तब संविधान और सरकार चुपचाप देखते रहेंगे।

अतएव अग्निपथ योजना के बहाने शासन की 2024की हिंदुत्व वादी सोच को भी ध्यान में रखना होगा जो गरीब, दलित, किसान आदिवासी और पिछड़े वर्ग के नौजवान सड़कों पर है उन्हें इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है। वे भली-भांति जानते हैं कि संवैधानिक तौर पर वे देश को हिंदू राष्ट्र नहीं बना सकते इसलिए ये कुचालें चल लोगों को भरमा रहे हैं। किसान संघर्ष समिति, कांग्रेस, नीतीश कुमार, अमरिंदर सिंह युवाओं के साथ खड़े हैं किन्तु तमाम युवाओं के बिखरे संगठनों का एकत्रीकरण भी बहुत ज़रुरी है। यह लड़ाई अप्रत्यक्ष तौर पर संविधान में प्रदत्त अधिकारों की लड़ाई है चंद युवा साथी यदि लालच में इस योजना के तहत शामिल होते हैं तो यह बड़ी भूल होगी। किसानों की ताकत आपके साथ है अपनी ऊर्जा सम्पत्ति विनाश में खर्च न कर डटकर अहिंसात्मक आंदोलन कीजिए। सफलता अवश्य मिलेगी। सेना का सम्मान भी तभी तक है जब तक वह भारत की सेना है निजीकरण उसे कारपोरेट का गुलाम बना देगा। पिछले दिनों जो कुछ सेना के पदाधिकारियों को करना पड़ा वह अशोभनीय और घोर आपत्तिजनक है। इसका खुलासा होना चाहिए। वैसे तीनों सेनाध्यक्ष फिर पी एम से मिले हैं देखिए आगे क्या होता है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि युवा अपनी शक्ति बनाए रखें और उसे गलत दिशा में अपव्यय न करें।

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