अजय माकन का इस्तीफा और खड़गे की पहली परीक्षा

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अभी अपना काम ठीक से संभाला भी नहीं है कि वह पहला विवाद उनके सामने आ गया है, जिसका अंदेशा था. कांग्रेस नेता अजय माकन ने पार्टी के राजस्थान प्रभारी के रूप में इस्तीफा दे दिया है. यह इस्तीफा उन कारणों से महत्वपूर्ण है, जो पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के ठीक पहले उठे थे और जिनके बारे में माना जा रहा था कि वे खड़गे को परेशान करेंगे. राजस्थान-संकट का समाधान खड़गे के सांगठनिक कौशल की पहली बड़ी परीक्षा होगी.

अगले पखवाड़े में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान में प्रवेश कर सकती है. उस समय यह विवाद तेजी पकड़ेगा. अजय माकन ने अपना यह इस्तीफा पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखने के कुछ दिनों बाद दिया है, जिसमें उन्होंने लिखा था कि वह अब इस जिम्मेदारी को जारी नहीं रखना चाहते हैं.

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार माकन, 25 सितंबर को जयपुर में कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के समानांतर बैठक आयोजित करने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के तीन वफादारों को कारण बताओ नोटिस देने के बाद उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न करने से नाराज हैं.

सूत्रों ने कहा कि इससे माकन परेशान थे क्योंकि जिन विधायकों को कारण बताओ नोटिस दिया गया था, वे राहुल गांधी के नेतृत्व वाली यात्रा का समन्वय कर रहे हैं. एआईसीसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया, ‘राहुल गांधी की यात्रा आयोजित करने के लिए अजय माकन किस नैतिक अधिकार के साथ राजस्थान जाएंगे, अगर सीएलपी बैठक का मजाक उड़ाने वाले लोग ही इसका समन्वय करेंगे?’

माकन के करीबी सूत्रों ने बताया कि पार्टी नेतृत्व ने उन्हें अपना फैसला वापस लेने के लिए मनाने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे. खड़गे के नाम माकन के पत्र को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा राज्य में युवा नेतृत्व को ‘मौका’ देने से इनकार करने से पैदा हुए संकट के खिलाफ पार्टी आलाकमान पर दबाव बनाने की कोशिश के रूप में देखा गया.

8 नवंबर को लिखे गए अपने पत्र में माकन ने कहा है कि भारत जोड़ो यात्रा के प्रदेश में प्रवेश करने और राज्य विधानसभा उपचुनाव होने से पहले एक नए व्यक्ति को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए. उन्होंने लिखा, ‘मैं राहुल गांधी का सिपाही हूं. मेरे परिवार का पार्टी से दशकों पुराना नाता है.’

गत  25 सितंबर को तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश पर माकन और खड़गे पर्यवेक्षक के रूप में जयपुर गए थे. तब अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने की अटकलें काफी तेज थीं. उसी दौरान नए मुख्यमंत्री के चयन के लिए विधायक दल की बैठक होनी थी लेकिन सचिन पायलट की उम्मीदवारी का विरोध करने वाले गहलोत समर्थकों ने बगावती सुर इख्तियार किए थे और मीटिंग में शामिल नहीं हुए थे.

पार्टी हाईकमान इस घटनाक्रम से नाराज थी. इसके बाद तीन नेताओं को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया. अशोक गहलोत ने तब सोनिया गांधी से माफी मांग ली थी, पर विधायकों के बारे में पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा था कि एक-दो दिन में कार्रवाई होगी. काफी समय बीत जाने के बाद भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. बहरहाल विधायक दल की बैठक दोबारा नहीं हुई और सचिन पायलट के बारे में फैसला भी नहीं हो सका.

सूत्रों के मुताबिक, भग्न-हृदय माकन ने पद छोड़ने का फैसला किया है. सूत्रों के मुताबिक गहलोत समर्थकों के व्यवहार से आलाकमान नाखुश हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होने की कई वजहें हैं. गहलोत इस समय गुजरात चुनाव के मुख्य पर्यवेक्षक हैं.

हाईकमान इस समय राजस्थान सरकार के लिए कोई जोखिम पैदा नहीं करना चाहती. खड़गे को तय करना है कि सचिन को कमान सौंपने के लिए वे गहलोत को कैसे राजी करेंगे। ऐसे नहीं करना है, तो सचिन को किस प्रकार समझाना है और गहलोत को किस तरह कुर्सी पर बनाए रखना है. दूसरी ओर, उसके सामने 25 सितंबर को हुई ‘अनुशासनहीनता’ के मामले को सुलझाने की चुनौती भी है.

लगता नहीं कि ये मामले 8 दिसंबर को गुजरात के चुनाव परिणाम आने के पहले तय हो पाएंगे. परिणाम आने के बाद भी कम से कम दो हफ्ते गुजरात और हिमाचल की राजनीतिक गतिविधियाँ चलेंगी. फिलहाल अजय माकन के इस्तीफे ने इस मसले को समय से पहले हवा दे दी है.

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प्रमोद जोशी
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