बैंक बिक रहे हैं चेत सके तो चेत!

बैंक बिक रहे हैं चेत सके तो चेत!

सुसंस्कृति परिहार : व्हाट्सअप पर एक जुमला इन दिनों वायरल है, संदेश में कहा जा रहा है कि बैंक में एक ग्राहक ने एक तख्ती टंगी देखी, तख्ती पर लिखा था, ‘जो ग्राहक बैंक में आकर ये बोलकर जाते हैं कि बैंक हमारा है, हमारे पैसों से चलता है, उनके लिए खास सूचना, संसद में सरकार आपके बैंक को बेचने वाली है, फिर मत कहना कि बताया नहीं था’ ये  जुमला जिसने भी वायरल किया वह पूरी तरह विश्वसनीय है।

सोचिए, देश के लगभग 9 लाख अधिकारी कर्मचारी दिनांक 16-17 दिसम्बर को पूरी तरह हड़ताल पर रहे क्यों—-? इसका उत्तर उनके द्वारा किए विरोध प्रर्दशन में देखने मिला। वे निजीकरण का विरोध कर रहे हैं। शीतकालीन सत्र में बैंकों के निजीकरण का कानून सदन में आने वाला है और कर्मचारियों को डर है कि उन्हें निजीकरण के बाद कारपोरेट की मर्जी पर चलना होगा तथा हज़ारों को काम से हाथ धोना होगा। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि इन बैंकों से अडानी की किसी कंपनी का टाई-अप होने वाला है जो कृषि में मददगार होगा। अभी कृषि ऋण ये बैंक देते रहे हैं उसमें अब अडानी का प्रवेश हो जाने से उसकी पहुंच गांव गांव तक होगी जिन्हें अडानी की कंपनी तमाम तरह के ऋण उपलब्ध कराएगी। जिसका सीधा मतलब तो यही समझ में आता है कि गांव गांव जाकर ऋण बांटने का मक़सद साफ़ है, कर्ज नहीं चुका तो गरीबों की जमीनों पर अडानी कंपनी का स्वामित्व हो जायेगा। अडानी को किसान जान गए हैं इसलिए सरकारी बैंकों से टाई-अप किया जाने वाला है। धीरे-धीरे बैंक पर कब्ज़ा करने की यह साजिश बैंक कर्मी समझ गए हैं इसलिए अभी सिर्फ दो दिन बैंक हड़ताल की गई है। दरअसल, बैंक कर्मी केंद्र सरकार द्वारा लाई जा रही बैंकिंग संशोधन विधेयक (Banking Laws (Amendment) Bill 2021) का विरोध कर रहे हैं. बैंक यूनियन के मुताबिक इस विधेयक के पास होने के बाद सरकार बैंकों में अपनी हिस्सेदारी बेचेगी, जिससे धीरे-धीरे निजीकरण का रास्ता साफ हो जाएगा।

बैंक बंद होने के कारण कई शाखाओं में जमा और निकासी, चेक समाशोधन और ऋण मंजूरी जैसी सेवाएं ख़ासतौर पर प्रभावित हुईं। अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) के महासचिव सी एच वेंकटचलम के मुताबिक सिर्फ गुरुवार को 18,600 करोड़ रुपये के 20.4 लाख चेक से जुड़ा लेनदेन नहीं हो सका।

यह हड़ताल अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ (एआईबीओसी), अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) और राष्ट्रीय बैंक कर्मचारी संगठन (एनओबीडब्ल्यू) सहित नौ बैंक संघों के मंच यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन (यूएफबीयू) ने बुलायी थी कर्मचारी चालू वित्त वर्ष में दो और सरकारी बैंकों की निजीकरण करने के सरकार के फैसले के खिलाफ हड़ताल कर रहे हैं। ऑल इंडिया बैंक आफिसर्स कंफेडरेशन AIBOC ने 19 पन्नों की एक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें हर बात का संदर्भ दिया गया है कि सरकार ने ऐसा कहा है या रिज़र्व बैंक और CAG की रिपोर्ट में ऐसा कहा गया है। इसके आधार पर बात रखी गई है कि कैसे सरकार उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए बैंकों को घाटे की तरफ धकेलती चली गई। अब बैंकिंग लॉ अमेंडमेंट बिल 2021 के ज़रिए अपनी हिस्सेदारी 50 फीसदी से कम करने जा रही है ताकि ये बैंक उन्हीं निजी लोगों के हवाले कर दिए जाएं जिन्होंने इन बैंकों को खोखला कर दिया है। हाल ही में प्रधानमंत्री ने कहा था कि सरकारी बैंकों के पांच लाख करोड़ वसूले भी गए हैं जिसकी चर्चा कम होती है। इसके बारे में ऑल इंडिया बैंक आफिसर्स कंफेडरेशन AIBOC ने विस्तार से जवाब दिया है। बताया है कि 2014-15 से 2020-21 के बीच बैंको का NPA नॉन परफार्मिंग असेट 25 लाख 24 हज़ार करोड़ का हो गया है। इसमें से 19 लाख 4 हज़ार करोड़ NPA सरकारी बैंकों का है। 8 लाख करोड़ write off किया गया है। इसके कारण सरकारी बैंकों का घाटा बहुत बढ़ गया। 4 लाख 48 हज़ार करोड़ ही वसूले गए हैं वो भी सात साल में।

एनडीटीवी के मुताबिक आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बैंक कर्मचारियों ने अपनी सैलरी से छै हज़ार रुपए प्रति व्यक्ति आंदोलन के लिए एकत्रित किए हैं इसका मतलब यह भी है यह आंदोलन आगे बढ़ेगा। बढ़ना भी चाहिए क्योंकि बैंकों का निर्माण ही सूदखोरों से बचने के लिए प्रमुखता से किया गया था इससे सबसे ज्यादा गरीब किसान और अन्य गरीबों को फायदा मिला कई आत्मनिर्भर भी हुए। नया कानून तो एशिया के सबसे अमीर अडानी जैसे महाजन के हाथ कमान सौंपने की तैयारी कर चुका है। यह अडानी की सोची समझी चाल है कि वह हर हाल में किसानों की जमीन छीनने का उपक्रम चला रहा है। इसके साथ ही साथ बैंकों में जमा धारकों की राशि भी हड़प ली जाएगी। ये संकेत प्रधानमंत्री के उस भाषण में मिलते हैं जब वे जमाधारकों को तसल्ली देते हुए कहते हैं कि यदि बैंक डूबता है तो वे कम से कम पांच लाख उन्हें दिलाएंगे यानि शेष राशि उनकी होगी ।

आज ज़रूरत इस बात की है कि जब हम सब इस बात को समझ रहे हैं तो खुलकर तथाकथित निजीकरण के ख़िलाफ़ बैंककर्मियों के साथ विरोध दर्ज तो कराना ही चाहिए तथा जमाधारकों को अपने परिवार के साथ जमाराशि हड़पने की साज़िश के ख़िलाफ़ डट कर खड़े होना चाहिए। किसानों को भी इस बात का संज्ञान लेना होगा। वे वैसे बैंक आंदोलन को समर्थन दे भी चुके हैं।एकजुटता दिखाएं और बैंकों को अडानी कंपनी से बचाए। बैंकों के बिक जाने के बाद लड़ाई मुश्किल होगी। व्यापार जिनकी रगों में बह रहा वे सक्रिय हैं लेकिन किसानों की सीख मार्गदर्शन हेतु हम सब के लिए पर्याप्त है।

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सुसंस्कृति परिहार
लेखिका स्वतंत्र लेखक एवं टिप्पणीकार है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।