प्रवीण मल्होत्रा : सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि विधायिका राजनीति में अपराधियों के प्रवेश को नहीं रोक पा रही है। न सिर्फ राजनीतिक दल बल्कि संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग भी सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन करने और करवाने में पूरी तरह असफल रही है।
इसका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि राजनीतिक दल अधिक से अधिक सीटें जीत कर सत्ता में आना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि बाहुबली और अपराध माफिया से सांठगांठ करने वाले राजनीतिज्ञ चुनाव को अपने पक्ष में मोड़ने में अधिक सफल और कारगर रहते हैं। इसलिये राजनीतिक दल आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं को, जो वास्तव में राजनीति का अपराधीकरण करने के लिये कुख्यात होते हैं, टिकिट देना अधिक लाभदायक समझते हैं।
दूसरा कारण यह है कि चुनाव आयोग जो कि एक संवैधानिक संस्था है और जिस पर निष्पक्ष, स्वतंत्र एवं पारदर्शी तरीके से चुनाव कराने की जिम्मेदारी होती है, अपने दायित्वों से विमुख हो गयी है। उसमें संकल्प शक्ति का अभाव है कि वह आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं के चरित्र को आम जनता के समक्ष इस तरह उजागर करे कि जनता स्वतः ऐसे उम्मीदवारों से दूरी बना ले। इसके लिये चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करवाना चाहिये।
राजनीति के अपराधीकरण और अपराधियों के राजनीतिकरण का तीसरा बड़ा कारण यह है कि हमारे देश में जनप्रतिनिधित्व कानून में ही कमी और खोट है। होना यह चाहिये कि जिन फौजदारी मामलों में तीन या तीन से अधिक साल की सजा का प्रावधान हो उसके आरोपित या अभियुक्त को तब तक पंचायत से लेकर लोकसभा तक का कोई भी चुनाव लड़ने से वंचित किया जाना चाहिये जब तक वह ट्रायल कोर्ट और अपीलेट कोर्ट से पूर्णतः आरोप मुक्त न हो जाये।
विधायकों और सांसदों के लिये वर्तमान में जिस ट्रायल कोर्ट की व्यवस्था का प्रावधान है उससे राजनीति का अपराधीकरण समाप्त होना सम्भव नहीं है। क्योंकि विधायक और सांसद इतने सक्षम होते हैं कि उनके विरुद्ध गवाह मिलना ही मुश्किल है। गवाह मिल भी जाएंगे तो उन्हें दबाव डाल कर या धन का लालच देकर होस्टाइल कर दिया जाएगा। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को भी पुलिस और फोरेंसिक अधिकारियों के साथ मिल कर मिटा दिया जाता है। इसलिये किसी भी अपराधी विधायक या सांसद को अपवादस्वरूप ही कभी सजा हो पाती है। अन्यथा सभी बेदाग छूट जाते हैं। इसलिये जब तक जनप्रतिनिधित्व कानून में बुनियादी बदलाव नहीं होंगे तब तक राजनीति का अपराधीकरण और अपराधियों का राजनीतिकरण कभी बन्द नहीं होगा।
लेकिन जो विधायिका ऐसे कठोर कानून बनाने के लिये सक्षम है उसमें ही इस संकल्प का सिरे से अभाव है। इसलिये देश की जनता कानून निर्माताओं के रूप में कथित अपराधियों को ही ‘माननीय’ मानने के लिये बाध्य है। अभी हाल में ही केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किये गए एक राज्य मंत्री पर उन्हीं के हलफनामे के अनुसार 11 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिसमें हत्या, हत्या का प्रयास, लूट तथा डकैती के मामले शामिल हैं। जब मंत्री ही दागी होंगे तो राजनीति से अपराध कैसे मिटेगा?