चौंकिए नहीं यह अमानवीय हृदय विदारक दृश्य मध्यप्रदेश के मुरैना शहर की एक सड़क पर देखकर लोग सिहर गए। एक आठ वर्षीय बालक अपने दो साल के भाई की लाश गोद में लिए लगभग दो घंटे इधर उधर मदद की उम्मीद में ताकता रहा। उसके पिता के पास एंबुलेंस से अंबाह के गांव बड़ाफर तक ले जाने के लिए 1500₹ नहीं थे। वह शव ले जाने किसी वाहन की तलाश में गया था। मासूम बच्चा भाई के शव को लिए जो सफेद कपड़े से ढका था लिए बैठा था उस पर मक्खियां भिनभिना रही थींवह उन्हें भगा रहा था।ये तो अच्छा हुआ कुछ संवेदनशील लोगों की नज़रें इस दृश्य पर पड़ीं उन्होंने पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने शव ले जाकर सरकारी अस्पताल पहुंचाया जहां से शव को ले जाने की व्यवस्था की गई। बताते हैं पूजाराम यादव अपने बड़े बेटे गुलशन के साथ छोटे बेटे राजा का इलाज कराने अंबाह से एंबुलेंस में मुरैना आया था। जहां चिकित्सा के दौरान उसकी मृत्यु हो गई । डाक्टर के मुताबिक उसे एनीमिया और पेट में पानी बनने की शिकायत थी। उसकी मृत्यु के बाद से वह रो रोकर शव हेतु एंबुलेंस की गुहार लगाता रहा उसे जो जवाब मिला उससे वह निराश हो गया। उससे कहा गया कि प्राइवेट वाहन कर लो।जब इसका पता लगाया तो उसके होश उड़ गए उसके पास इतने रुपए नहीं थे। इसलिए वह गुलशन की गोद में राजा का शव रखकर सस्ते वाहन की खोज में निकला था।
इस दौरान उसने बताया कि उसकी पत्नी लड़ कर तीन माह पहले मायके चली गई है वहीं बच्चों का पालन-पोषण मज़दूरी करके कर रहा है।उसकी एक बेटी और एक बेटा बड़ाफर घर में हैं।
लाश ले जाने वाहन की कमी की यह पहली घटना नहीं है। आमतौर पर यह देखा जाता है कि सरकारी एंबुलेंस बीमार लाने को तो तत्पर नज़र आती हैं किन्तु शव ले जाने में आनाकानी करती हैं। इसकी वजह यह है कि मरीज लाते समय एंबुलेंस के ड्राइवर द्वारा जो रुपए मांगे जाते हैं वे सहजता से मिल जाते हैं किंतु शव ले जाते वक्त लुटेपिटे व्यक्तियों के पास पैसा नहीं मिल पाता इसलिए प्राईवेट वाहन की सलाह दी जाती है। जबकि सरकारी एंबुलेंस की सेवाए नि:शुल्क हैं।
जो लोग साईकिल,रिक्शे, हाथठेला या अपने कांधे पर शव ले जाते हैं उसके पीछे यही सच्चाई है।किसी शव को इस तरह ले जाते हम जब तब देखते रहते हैं। लेकिन आज तक इस समस्या के समाधान के बारे में नहीं सोचा गया।एक तो मौत से दुखी परिवार और उसके बाद शव को घर तक पहुंचने की जद्दोजहद ।गरीब पर क्या गुजरती होगी इस पर हम सबको सोचना चाहिए।कम से कम सामाजिक संस्थाओं का दायित्व है कि वे एक वाहन चिकित्सालय को ऐसा उपलब्ध कराए जो ऐसे दीन हीन लोगों के काम आए। सरकार को चाहिए कि वह निशुल्क सेवा हेतु प्रयुक्त एंबुलेंस के चालकों पर कार्रवाई करें जो पैसे वसूलने के काम में लगे हैं और शव ले जाने में ऐतराज करते हैं।
इस हृदयविदीर्ण करने वाली घटना से सबक सीखने की जरूरत है ताकि फिर कोई मासूम बच्चा इस कठिन और भयंकर क्षणों से ना गुजरे।