हर बार हमे उन बातो में उलझा दिया जाता है जो समाज मे ध्रुवीकरण पैदा करे और वोट बैंक को पक्का करे…

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गिरीश मालवीय : किसी भी प्रदेश की जनसंख्या वृद्धि का सीधा संबंध साक्षरता दर से है धर्म-सम्प्रदाय से नही !……..यदि ऐसा नही होता तो बताइये कि बिहार के हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि दर तमिलनाडु के हिन्दुओं के मुक़ाबले दुगुनी क्यों है ? और केरल के मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के मुक़ाबले आधी क्यों है ?

जरूरत है स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग का बजट बढ़ाने की, शिक्षा पर अधिक पैसे खर्च करने की …..लेकिन हर बार हमे उन बातो में उलझा दिया जाता है जो समाज मे ध्रुवीकरण पैदा करे और वोट बैंक को पक्का करे

जिस तरह के दंडात्मक उपायो का प्रावधान इन जनसंख्या कानूनों में किया जा रहा है वह मानवाधिकारों के परिप्रेक्ष्य से मूर्खतापूर्ण हैं।

हर बार हमे उन बातो में उलझा दिया जाता है जो समाज मे ध्रुवीकरण पैदा करे और वोट बैंक को पक्का करे…

प्रसिद्ध पत्रिका डाउन द अर्थ के अनुसार “मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच द्वारा आंध्र प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में दो से अधिक बच्चों वाले लोगों की योग्यता को प्रतिबंधित करने वाले कानूनों पर किए गए एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला कि दो बच्चों का मानक लोगों के लोकतांत्रिक और प्रजनन अधिकारों का उल्लंघन करता है। बुच कहती हैं, “हमारे उत्तरदाताओं में से महिलाओं की एक बड़ी संख्या (41 प्रतिशत) ने बताया कि दो बच्चों के मानक का उल्लंघन करने की वजह से उन्हें अयोग्य घोषित किया गया। दलित उत्तरदाताओं के बीच यह अनुपात और भी अधिक (50 प्रतिशत) थी।”

ओर यह बात सही भी है समाज मे आप देखेंगे तो OBC वर्ग और SC के अंदर आने वाली परिवारों में दो से अधिक बच्चे मुस्लिम समुदाय की तुलना में कही ज्यादा है

वैश्विक स्तर पर भी जनसंख्या घट रही है, संगठित कृषि शुरू होने के 12,000 साल बाद शायद अब होमो सेपियन्स की आबादी ह्रास के कगार पर है और भारत के लिए शायद जनसंख्या वृद्धि पहले से ही स्थिर हो गई है, प्रजनन क्षमता में अभूतपूर्व वैश्विक गिरावट की भविष्यवाणी करने वाली किताब “एम्प्टी प्लेनेट” के लेखक डारेल ब्रिकर का यह कहना है, “भारत की कुल प्रजनन दर पहले ही प्रतिस्थापन दर तक पहुंच गई है।”

एक बात और हैं……

यदि आप जनसंख्या नियंत्रण के कानून लागू कर रहे हैं तो, वृद्धाश्रम बनवाने भी आज से ही शुरू कर दीजिए देखा जा रहा है कि जन्म दर में गिरावट के साथ नए विद्यालय जाने वाले बच्चों की तादाद पहले ही 2.5 करोड़ सालाना से कम हो रही है। दूसरी ओर वरिष्ठ नागरिकों की तादाद में इजाफा होने जा रहा है, हमें विद्यालयों से अधिक नर्सिंग होम, अस्पतालों और वृद्धाश्रमों की आवश्यकता होगी। जैसा चीन में हो रहा है…….

यह जनसंख्या नियंत्रण कानून सिर्फ चुनावी साल मे ध्रुवीकरण पैदा करने के लिए लाया गया है हकीकत यह है कि भारत मे हिन्दू मुसलमान की आबादी मौजूदा दर से बढ़ती रही (जिसकी संभावना न के बराबर है) तो भी दोनों को बराबर होने में 270 साल लग जायेंगे. यह मूल रूप से गिरीश मालवीय के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है।

 

रवीश कुमार :आबादी के नियंत्रण का क़ानून ग़रीब तबकों पर कोड़े की मार का काम करेगा। सभी को पता है कि ग़रीबी और अशिक्षा के कारण ही आबादी बढ़ती है। ऐसे परिवारों के लोगों के बच्चों के लिए ख़ुद को सँभालने में काफ़ी वक़्त लग जाता है। इसलिए भर्ती परीक्षाओं में उम्र सीमा में छूट दी जाती है। अब अगर आबादी नियंत्रण के नाम पर बंदिश लगेगी तो बहुत सारे नौजवान नौकरी से वंचित हो जाएँगे। एक समस्या और है। अभी तक इस क़ानून को पुरुषों को सामने रख देखा जा रहा है लेकिन महिलाओं की नज़र से देखेंगे तो पता चलेगा कि यह क़ानून उनके सपनों को कमज़ोर करता है। ज़रूरी है कि सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश करे और रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर पैदा करे। आबादी अवसरों में रुकावट पैदा नहीं करती है। आप प्रधानमंत्री का ही बीसियों भाषण सुन सकते हैं जिसमें वे भारत की सवा सौ करोड़ की आबादी को संभावना बताते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार बताते हैं। यह मूल रूप से रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है।

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द हरिश्चंद्र स्टाफ
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