किसानों की वापसी और सरकार पर अविश्वास

किसानों की वापसी और सरकार पर अविश्वास

सुसंस्कृति परिहार : लगता है, किसानों ने जिस तरह मोदीजी के नेतृत्व वाली सरकार को दिन में तारे दिखाएं, जनशक्ति का एहसास कराया, सदन से कृषिबिलों को वापस लेने मज़बूर किया साथ ही साथ अन्य महत्वपूर्ण मांगों की आपूर्ति की वचनबद्धता का भारत सरकार का पत्र लिया वह आश्चर्य जनक है।क्योंकि अब तक जो भी आंदोलन होते रहे हैं वे सरकार के मंत्रियों के मौखिक आश्वासन पर ख़त्म हो जाते रहे हैं किंतु ये पहली दफा हो रहा है जब आंदोलन को केंद्र सरकार से इतना सब हासिल होने के बाद भी समाप्त नहीं स्थगित किया गया है।इसकी क्या वजह है आमतौर पर सभी इसे महसूस कर रहे हैं वह है केंद्र सरकार पर अब भी उन्हें भरोसा नहीं है?

किसानों की घर वापसी हो रही है किंतु प्रारंभिक मुद्दा एम सी पी अभी भी अनिर्णीत है जहां से आंदोलन की बुनियाद रखी गई।संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बार्डर पर अहम बैठक के बाद किसान आंदोलन का स्थगित करने का ऐलान किया। इसके साथ यह भी कहा गया है कि 15 जनवरी को SKM समीक्षा बैठक करेगा, अगर केंद्र सरकार ने बातें नहीं मानीं तो आंदोलन फिर शुरू होगा। ऐसे इशारा भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत की ओर से भी किया गया है। टिकैत कहते हैं वे तब तक अपने इस घर से नहीं हटने वाले हैं जब तक उनकी तमाम मांगों को अमलीजामा नहीं पहनाया जाता है। 

घर वापस जाते किसान यह भी चाहते हैं कि पिछले 75 साल में किसानों को कोई खेती के भाव नहीं मिले, गेहूं का, गन्ने का, आलू का, धान का इसलिए किसान कर रहा है कि कर्जामाफ करने की घोषणा करके किसान आयोग का गठन किया जाए जिससे किसानों को अपनी फसल का मूल्य तय करने का अधिकार मिले। कृषि उपज ही ऐसा उत्पाद है जिसका मूल्य सरकार निर्धारित करती है जबकि अन्य उत्पादों का मूल्य उत्पादनकर्ता  ही करता है ।यह किसानों के साथ अन्याय है।

किसानों के दिलों दिमाग में उन किसान परिवारों का दर्द भी है जो इस संघर्ष में अपनी शहादत दिए हैं उनको पंजाब सरकार की तर्ज पर एक सदस्य को नौकरी और पांच हजार प्रतिमाह देने की व्यवस्था शीध्र हो।जो किसान जिनकी संख्या लगभग चालीस हजार से अधिक है। जिन पर कई राज्यों में विभिन्न धाराओं के तहत मामले दर्ज हैं उनकी अविलंब रिहाई हो। भारत सरकार के जिस केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री के लाड़ले ने किसानों को कुचलकर मारा है उसे मंत्री पद से तुरंत बर्खास्त किया जाए। लगता है किसान अपनी तमाम मांगों के लिखित आश्वासन के बाद भी इस सरकार के मनोभावों को जानते हुए उस पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं।वे इसे नये साल में हो रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर रखते हुए कह रहे हैं  इनका यकीन मुश्किल है।अभी तक इन्होंने सिर्फ ख़्वाब ही दिखाए है। किसान वापसी हो रही है ख़ुशी और ग़म अभी उनके साथ साथ है।

किसानों का आंदोलन स्थगित करना और कई प्रमुख नेताओं का सरकार की गतिविधियों पर नज़र रखना जायज़ है ।क्योंकि आज जो सो गया वह फिर उठ नहीं पाएगा।भारत सरकार को निश्चित मौके की तलाश होगी क्योंकि जो सरकार आज भी कृषि बिलों की तारीफ कर उन्हें किसान हितैषी बताकर ये अफसोस जाहिर कर रही है वे किसानों को समझा नहीं पाए।शायद किसानों को समझाने का नया दौर शुरू हो जाए। इसलिए टिकैत जैसे तमाम नेताओं का टिका रहना जरूरी है। संघ द्वारा पोषित किसान संघ ने कहा है किअनावश्यक विवाद टालने के संदर्भ में तीनों खेती कानूनों को वापस लेने का सरकार का निर्णय ठीक है। किसानों की हठ धर्मिता के कारण किसान का नुकसान ही करने वाला है।

ऐसे मुश्किल दौर में किसान अफवाहों से दूर रहें। संयुक्त किसान मोर्चा पर यकीन रखें वरना किसान बिल ज़िंदाबाद होने में देर नहीं लगेगी। ऐसा किसी देश में संभवतः पहली बार हो रहा है जब लिखित आश्वासन और सदन में बिल वापसी के बावजूद किसान आशंकित है और उसके सजग प्रहरी सरकार के प्रत्येक कदम पर नज़र रखने दिल्ली में तैनात रहेंगे तब तक जब तक सब कुछ हासिल नहीं हो जाता। झूठ बोलकर सत्ता प्राप्त करने वालों पर यकीन आज महत्त्वपूर्ण प्रश्न की तरह है।

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सुसंस्कृति परिहार
लेखिका स्वतंत्र लेखक एवं टिप्पणीकार है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।