भारत के पक्षियों की सुध लेती पहली महत्वपूर्ण रिपोर्ट

भारत के पक्षियों की सुध लेती पहली महत्वपूर्ण रिपोर्ट

भारत में अब पक्षियों की सुध ली जाने लगी है। हालांकि इस देश में वन्य प्राणियों, जिनमें पक्षी भी शामिल हैं, के संरक्षण की सनातन परंपरा रही है। पक्षी न केवल प्रकृति के शक्तिशाली सांस्कृतिक प्रतीक होते हैं बल्कि वे प्रकृति की तंदरुस्ती का बहाली प्रकार पता भी देते हैं। विशेषकर सैकड़ों किलोमीटर दूर से खास मौसम में अल्प प्रवास के लिए उड़ कर आने वाले पक्षियों के अध्ययन का हमारे यहां लंबा इतिहास रहा है। भारत के अपने पक्षियों की स्थिति पर अब पहली बार विस्तृत विवेचना करती रिपोर्ट का आना शुभ संकेत है। भारत में पाए जाने वाली अधिकांश पक्षी प्रजातियों की स्थिति का मूल्यांकन करती ‘स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स’ की दूसरी रिपोर्ट पिछले दिनों जारी हुई है जो अपनी सर्वव्यापकता और पारिस्थितिक महत्व के साथ, एक व्यापक, राष्ट्रीय स्तर के मूल्यांकन के रूप में, देश के पक्षियों की संरक्षण आवश्यकताओं के बारे में जानकारी देती है। जैव विविधता के नुकसान को रोकने और पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करने का संकल्प लेते हुए भारत ने दिसंबर 2022 में ‘द स्टेट ऑफ बर्ड्स द ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क’ (जीबीएफ) को भी अपनाया है। इस फ्रेमवर्क के चार लक्ष्यों में से एक है खतरे में पड़ी पक्षी प्रजातियों की मानव-प्रेरित विलुप्ति को रोकना। इससे पहले वर्ष 2020 में पक्षियों की प्रवासी प्रजातियों पर  गांधीनगर में हुए कन्वेंशन में भारत के पक्षियों की स्थिति पर पहली रिपोर्ट जारी हुई थी, जिसके साथ, हमारा देश उन देशों के समूह में शामिल हो गया जो नियमित रूप से अपने पक्षियों की स्थिति का आकलन करते हैं। अब पक्षियों की स्थिति का आकलन करती यह दूसरी रिपोर्ट आई है। इस नई रिपोर्ट में 2020 के बाद के चार साल के दौरान एकत्र किये गए अतिरिक्त 20 मिलियन आंकड़ों को जोड़कर, पक्षियों की स्थिति का मूल्यांकन किया गया है। वर्ष 2020 की पहली रिपोर्ट में 867 पक्षी प्रजातियों के मुक़ाबले इस रिपोर्ट में 942 प्रजातियों का अध्ययन शामिल हैं। इसके साथ ही पिछली बार की अपेक्षा वैज्ञानिक विश्लेषण पद्धति में भी कई परिशोधन किये गए हैं जिससे हालात को बेहतर तरीके से समझ जा सके।

भारत के पक्षियों की सुध लेती पहली महत्वपूर्ण रिपोर्ट

अपनी जैव विविधता के हालात का आकलन करने की सभी देशों को आवश्यकता है, लेकिन वह किस तरीके से किया जाए यह एक जबरदस्त चुनौती सबके सामने होती है। वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि जैव विविधता का आकलन पक्षियों के हालात पर अध्ययन से किया जा सकता है। पक्षी हर जगह होते हैं। उन्हें अपेक्षाकृत आसानी से पहचाना जा सकता है। इसलिए उन्हें हम समग्र रूप से जैव विविधता के संकेतक के रूप में भी देख सकते हैं। क्योंकि वे गतिशील होते हैं इसलिए उन पर परिवर्तन का असर होता है। उनकी प्रजातियां एक सार्थक पैटर्न दिखा सकती है। उन पर हो रहे प्रभाव आम तौर पर अन्य समूहों को भी प्रतिबिंबित करते हैं। सबसे बढ़ कर तो यह बात कि पक्षियों की निगरानी अपेक्षाकृत आसानी से की जा सकती है। इन्हीं कारणों से दुनिया भर में पक्षियों की स्थिति का आकलन करने के प्रयास किये जाते हैं। आम तौर पर बड़े पैमाने पर और वैज्ञानिक तरीके से नागरिक निगरानी से मिलने वाली जानकारी पर इस तरह के आकलन आधारित होते हैं। भौगोलिक या टैक्सोनोमिक दायरे में अधिक सीमित विशिष्ट वैज्ञानिक निगरानी कार्यक्रम इनके पूरक होते हैं। जैसा कि दुनिया भर में ऐसे अन्य सभी आकलनों के साथ होता है, भारत में भी बड़े पैमाने पर मूल्यांकन के पीछे पक्षी प्रेमियों और प्रकृति से प्यार करने वाले उत्साही और भावुक लोगों का योगदान होता है। वे पक्षियों पर नज़र रखते हैं, अपने अवलोकनों का रिकॉर्ड रखते हैं और उन्हें सार्वजनिक प्लेटफार्मों पर उपलब्ध कराते हैं। इस प्रकार का नागरिक योगदान एकमात्र तरीका है जिससे जैव विविधता आकलन के लिए जानकारी एकत्र की जा सकती है। भले ही वह कम या अधिक समन्वित तरीके से हो सकता है। इस बार की ‘स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स’ रिपोर्ट देश भर के विभिन्न कोनों में फैले 30,000 पक्षी प्रेमियों से प्राप्त 30 मिलियन रिकॉर्ड पर आधारित है। वैज्ञानिक जानकारी जुटाने में जन भागीदारी का यह अनुपम उदाहरण है। इसलिए इन आकलनों का समग्र परिणाम काफी हद तक वैश्विक प्रवृत्ति को भी दर्शाता है।

भारत के पक्षियों की सुध लेती पहली महत्वपूर्ण रिपोर्ट

इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले शोधकर्ताओं ने, 13 संरक्षण और अनुसंधान संगठनों के सहयोग से, 942 प्रजातियों का विश्लेषण किया, जिनके पास उनकी संरक्षण प्राथमिकता को उच्च, मध्यम या निम्न के रूप में निर्धारित करने के लिए पर्याप्त आंकड़े थे। यह डेटा देश भर में फैले बर्ड वाचर्स ने संकलित किये थे। उन्होंने अपने-अपने इलाकों में कम से कम 30 मीटर की दूरी से पक्षियों का अवलोकन किया एर अपने अपने अवलोकनों के परिणाम ऑनलाइन डेटाबेस में दाखिल किये। इस रिपोर्ट ने भारत में लगभग 1,350 पक्षी प्रजातियां दर्ज की हैं और 942 पक्षी प्रजातियों पर भारत के पक्षी प्रेमियों और संरक्षण संगठनों से एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया है। यह रिपोर्ट पक्षियों के हालात का विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए हमें चेताते हुए पक्षियों की 178 प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्राथमिकता से तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता बताती है। इसमें यहां नियमित रूप से पाई जाने वाली लगभग 1,200 प्रजातियों में से में 101 प्रजातियों को उच्च संरक्षण चिंता के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह रिपोर्ट जिन प्रजातियों के लिए उच्च संरक्षण चिंता बताती है उनमें 34 ऐसी प्रजातियां हैं जो प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) की “लाल सूची” में दर्ज नहीं हैं, जिससे वे विश्व स्तर पर खतरे में नहीं है। इसी प्रकार यह रिपोर्ट भारतीय रोलर बर्ड (नीलकंठ)सहित 14 प्रजातियों की स्थिति के तत्काल पुनर्मूल्यांकन की भी सिफारिश करती है जिसे प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ द्वारा “कम से कम चिंता” के रूप में ही सूचीबद्ध किया गया है, जिनमें से कुछ को पहले सामान्य और व्यापक माना जाता था। ‘स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स रिपोर्ट’ में पक्षियों की प्रजातियों में चिंताजनक गिरावट बताई गई है। यह रिपोर्ट लगभग महाद्वीपीय पैमाने पर पक्षियों की कई प्रजातियों की स्थिति को सही परिप्रेक्ष्य में लाती है। रिपोर्ट से जो समझ बनेगी वह पक्षियों की प्रजातियों को बचाने के लिए रणनीति बनाने में संरक्षणवादियों की मदद करेगी। इसमें पाया गया है कि 25 वर्षों की दीर्घकालिक अवधि में अध्ययन की गई 348 प्रजातियों में से लगभग 60 प्रतिशत में गिरावट देखी गई है और अल्पावधि (2015 से) में मूल्यांकन की गई 359 प्रजातियों में 40 प्रतिशत में गिरावट देखी गई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रैप्टर और बत्तख की आबादी में सबसे अधिक गिरावट आई है, जबकि ग्रेट ग्रे श्राइक जैसी कई सामान्य प्रजातियों की संख्या में भी गिरावट आ रही है। ऐसा पाया गया है कि गैर-प्रवासी पक्षियों की तुलना में प्रवासी पक्षियों की संख्या में अधिक तेजी से कमी आ रही है। आहार के आधार पर वर्गीकृत, मांसाहारी, कीटभक्षी और अनाज खाने वाले पक्षियों में फल और मधु खाने वाले प्रकारों की तुलना में अधिक तेजी से गिरावट देखी गई। इसी प्रकार बंजर भूमि के रूप में वर्गीकृत घास के मैदानों और झाड़ियों जैसे विशिष्ट आवासों में पक्षियों की संख्या भी खुले आवासों की तुलना में अधिक तेजी से कम हुई है। हालांकि पक्षियों की प्रजातियों की आबादी में गिरावट के सटीक कारण अभी तक स्पष्ट रूप से समझ में नहीं आए हैं, लेकिन रिपोर्ट में भूमि-उपयोग परिवर्तन, शहरीकरण, पारिस्थितिकी तंत्र में गिरावट, मोनोकल्चर, बुनियादी ढांचे के विकास, प्रदूषण और जलवायु बिगड़ने को खतरे के रूप में चिन्हित किया गया है। रिपोर्ट के प्रकाशकों ने इन कारणों पर और शोध करने का आह्वान किया।

भारत के पक्षियों की सुध लेती पहली महत्वपूर्ण रिपोर्ट

रिपोर्ट के दूसरे संस्करण में भारत के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से प्रत्येक में संरक्षण पर ध्यान देने की आवश्यकता वाली चार प्राथमिकता वाली प्रजातियों पर ध्यान दिलाया गया है। वह कहती है कि मध्यम संरक्षण प्राथमिकता के तहत सूचीबद्ध प्रजातियों के लिए चेतावनी के प्रारंभिक संकेतों की पहचान करने के लिए अधिक काम की आवश्यकता है। इसके साथ ही कम संरक्षण प्राथमिकता वाली प्रजातियों को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इसमें शामिल समूहों में से एक, ‘नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन’ के अनुसार हमें सामान्य प्रजातियों को सामान्य बनाए रखने के लिए काम करने की जरूरत है। रिपोर्ट में पक्षियों की 217 प्रजातियां ऐसी पाई गईं जो स्थिर थीं या उनकी संख्या बढ़ रही थीं। रिपोर्ट के अनुसार जंगली रॉक कबूतर, एशियाई कोयल और भारतीय मोर अच्छा प्रदर्शन करते पाए गए हैं, लेकिन अन्य, अधिक कमजोर प्रजातियों पर उनकी बढ़ती संख्या का प्रभाव की जानकारी नहीं है। बया वीवर और पाइड बुशचैट जैसे सामान्य पक्षी भी अपेक्षाकृत स्थिर पाए गए हैं। रिपोर्ट के प्रकाशकों ने सार्वजनिक भागीदारी को बहुत महत्व दिया, लेकिन उन्होंने यह भी दर्ज किया कि दुर्लभ और निशाचर पक्षियों के लिए अधिक शोध और डेटा एकत्र करने की आवश्यकता है, जो आम तौर पर पक्षी देखने वालों द्वारा दर्ज नहीं किए जाते हैं। हालांकि समूची दुनिया में जैव विविधता बुरी हालात में है। लेकिन भारत की पक्षी आबादी पर आई एक यह नई रिपोर्ट देश की कई पक्षी प्रजातियों के हालात की एक गंभीर तस्वीर तो पेश करती ही है वह जैव विविधता को पहुंच रहे नुकसान का पता भी देती हैं और साथ ही मानव कल्याण के लिए भी खतरे की घंटी बजाती है। रिपोर्ट निष्कर्षों का सारांश यह है कि देश में पक्षी संरक्षण के लिए व्यापक तौर पर काम करने की जरूरत है। आशा की जानी चाहिए कि देश के नीतिकार भी इस रिपोर्ट को पढ़ेंगे और कदम उठायेंगे।

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राजेन्द्र बोड़ा
वरिष्ठ पत्रकार एवं विश्लेषक है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।