किसी घिसे-पिटे मुहावरे का इस्तेमाल किया जाए तो गाँधी जी के बारे में कुछ लिखना या बोलना सचमुच सूरज को दिया दिखाने जैसा है| उनकी सबसे ख़ास बात थी कि जीवन के हरेक पहलू को लेकर उन्होंने अनूठे प्रयोग किए, और फिर भी अपने प्रयोगों को लेकर कोई कठोर सैद्धांतिक ढांचा नहीं गढ़ा| इस तरह बापू ने जीवन के प्रति एक वैज्ञानिक, प्रयोगात्मक रुख अपनाया था; जब उन्हें कोई प्रयोग गलत लगता तो वे तुरंत उसे त्याग कर दूसरे प्रयोग में लग जाते| जीने की कला और विज्ञान दोनों इसी ढब में है| कोई वैज्ञानिक अपने सत्य को अनंतिम ही समझता है और दूसरे किसी भी वैज्ञानिक की अंतर्दृष्टि को अपनाने में न ही उसकी भावुकता आड़े आती है और न ही अपने सिद्धांत के प्रति कोई अतार्किक लगाव| बापू जीवन के वैज्ञानिक भी थे और कलाकार भी|
मरणोपरांत गांधी जी की प्रबल उपस्थिति बड़ी अद्भुत और अविश्वसनीय है| दुनिया के कई हिस्सों में समाज सुधार के काम में लगे हजारों गुमनाम लोगों के लिए अभी भी गांधी जी प्रेरणा का शाश्वत स्त्रोत हैं| उनके सम्मान में सौ से अधिक देशों ने डाक टिकट जारी किए हैं| करीब पचास देशों में सड़कों का नाम गाँधी जी के नाम पर रखा गया| बीती सदी में करीब पंद्रह देशों में महात्मा की विचारधारा के प्रभाव में आकर नागरिक अधिकारों के लिए आन्दोलन शुरू किये गए| दुनिया के जितने विश्वविद्यालयों ने गांधी जी पर शैक्षणिक कोर्स चालू किये, उतने बीसवीं सदी के किसी भी व्यक्ति पर नहीं किये गए| सैकड़ों जीवनियाँ गाँधी जी पर लिखी गईं और उनमें से सबसे पहली जीवनी सौ साल पहले ही एक ईसाई मिशनरी जोसफ डोके ने लिख डाली थी| ऐसी शख्सियत के बारे में अब लिखने के लिए बचा क्या होगा, यह भी एक बड़ा सवाल है|
गांधी जी ने स्वयं जितना लिखा वह 100 खंडों में उपलब्ध है| करीब 50 हज़ार पन्नों में उनके लिखे हुए पत्र, किताबें, संपादकीय, लेख वगैरह एकत्रित हैं| गांधी जी के निजी दैनिक जीवन में झाँक कर देखें तो एक अद्भुत और विलक्षण और थोड़े अजीबो-गरीब इंसान की झलक मिलती है| बस तीन मिनट के अन्दर नींद में चले जाना, सुबह 3.30 बजे उठ जाना, गर्म पानी से नहाना और फिर बकरी के दूध और उबली हुई सब्जियों का नाश्ता करना, अपनी बकरी निर्मला को लन्दन में हुए लोग मेज सम्मलेन के समय भी साथ ले जाना, उनका आहार और वस्त्र दर्शन—बापू का समूचा जीवन ही असाधारण था| जीवन के विराट कैनवस पर उन्होंने बौद्धिक और भावनात्मक सभी रंग बिखेरे थे| उनमे सबसे अधिक गहरे रंग थे आत्मसंयम और संकल्प के| 35 वर्ष की उम्र से एक ब्रह्मचारी का जीवन बिताने का प्रण कर लेना, चाय का शौक़ीन होने के बावजूद एक मित्र के कहने पर एक पल में चाय छोड़ देना, वगैरह| उन्होंने कहा था कि मैं आर्थिक समानता तो नहीं ला सकता, लेकिन यह जरूर कर सकता हूँ कि दरिद्रतम व्यक्ति जैसा ही मेरा रहन-सहन हो जाए| और इसलिए वे हमेशा अपनी लंगोट और साधारण सी चादर में ही रहे| उनकी पूरे सामान की कीमत एक हज़ार रूपये भी नहीं होगी| 1931 में लन्दन में जब संवाददाताओं ने उनसे पूछा कि क्या अँगरेज़ सम्राट ने उनके कम कपड़ों पर कोई टिप्पणी नहीं की, गांधी जी ने जवाब दिया कि वह क्या कहेंगे, दो लोगों के हिस्से के कपड़े तो उन्होंने अकेले ही पहने हुए थे! ऐसी थी उनकी निर्भीकता और ऐसा था उनका हास्य बोध| उनका जीवन एक खुली किताब की तरह था, और हालाँकि वे शीशे के महल में तो नहीं रहते थे, पर उन्होंने अपने जीवन के हर पहलू के बारे में इतनी खुल कर बातें कीं कि लोगों के लिए उनपर फेंकने के लिए एक भी पत्थर बचा ही नहीं| जिन्होंने खुद ही खुले आम, बार-बार यह ऐलान किया हो कि ‘मोसो कौन कुटिल, खल, कामी’ उसकी निंदा के लिए भी अब क्या बचता है|
दुनिया भर के राजनीतिक नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए गांधी जी का उपयोग और दुरुपयोग किया है, लेखकों और इतिहासकारों ने भी लगातार उनको समझने और उनके जीवन की व्याख्या के लिए तरह तरह की नजरिये अपनाए हैं, पर बापू को उनकी समग्रता में अपनी गिरफ्त में लेना आसान कभी नहीं रहा है| यह दिलचस्प होगा कि उन व्यक्तियों और पुस्तकों पर एक नज़र डाली जाए जिन्होंने गांधी जी के व्यक्तित्व को गढ़ा, उने दर्शन और सोच को आधार और आकार दिया|
गांधी जी ने खुद स्वीकार किया था कि तीन आधुनिक लोगों ने उनके जीवन को बहुत प्रभावित किया है और वे थे रायचंदभाई, टॉलस्टॉय और जॉन रस्किन| रस्किन की किताब ‘अन्टू दिस लास्ट’, और टॉलस्टॉय की किताब ‘द किंगडम ऑफ़ गॉड इज़ विदिन यू’ ने बापू पर गहरा असर डाला| इसके अलावा गीता और बाइबिल का गांधी जी ने गंभीर अध्ययन किया और गीता को तो वह अपनी ‘माता’ ही मानते थे| रायचंद भाई से गांधी जी भारत लौटने के तुरंत बाद मुंबई में मिले थे| रायचंद भाई में गांधी जी का पूरा भरोसा था और अपनी हर बात वह उनके साथ साझा करते थे, इसके अलावा आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक संकट के क्षणों में गांधीजी उनके पास ही शरण के लिए जाया करते थे| उनके अलावा गोपाल कृष्ण गोखले गांधी जी को पवित्र गंगा की तरह दिखते थे जिनके सानिध्य में उनका मन शुद्ध हो जाया करता था| राजनीति को किसी आध्यात्मिक कार्य की तरह देखने की सीख उन्होंने गोखले से ही ग्रहण की और जीवन भर इस पर काम करते रहे| अपनी जीवनी में गांधी जी ने सात अध्याय गोपाल कृष्ण गोखले को समर्पित किये हैं और इससे उनकी मित्रता की गहराई का अंदाजा लगाया जा सकता है|
महान रूसी लेखक लियो टॉलस्टॉय को गाँधी अपना गुरु मानते थे| उनके बीच काफी समय तक पत्र व्यवहार चला था| दोनों के ही प्रेरणा स्रोत एक समान थे—बुद्ध, सुकरात, उपनिषद और गीता| दोनों ही सिर्फ दार्शनिक ही नहीं थे, बल्कि मानवता के शिक्षक थे; जो कहते थे उसे जीने का ईमानदार प्रयास भी करते थे| रस्किन की किताब ‘अन्टू दिस लास्ट’ ने तो गांधी जी पर इतना प्रभाव डाला कि उन्होंने इसे तुरंत गुजराती में ‘सर्वोदय’ के नाम से लिख डाला| इस किताब से गांधी जी ने अपने दार्शनिक और व्यावहारिक जीवन की सबसे कीमती बातें सीखीं और वे थीं: सबके कल्याण में ही व्यक्ति का कल्याण है, सभी को अपने काम से जीविका कमाने का सामान अधिकार है, और श्रम का जीवन ही जीने योग्य जीवन है|
आपको यह जानकार शायद ताज्जुब हो कि गांधी जी ने गीता को पहली बार संस्कृत में नहीं बल्कि सर एडविन आर्नल्ड की ‘द सॉंग सेलेसटिअल’ नाम के अनुवाद के रूप में पढ़ा था| अवसाद के क्षणों में महात्मा इस पुस्तक को अपनी माँ की गोद सरीखा मानते थे और जीवन भर यह उनकी साथी और मार्गदर्शक रही, खास कर दूसरे अध्याय के अंतिम अठारह श्लोक| गांधी जी ने बाइबिल का भी गंभीरता से अध्ययन किया था| ‘न्यू टेस्टमेंट’ और ‘सरमन ऑन द माउंट’ ने उनको भीतर तक बदल डाला था| ईसा मसीह की करुणा और त्याग की कथाओं को गांधी जी ने अपने जीवन में उतारने की कोशिश की थी|
गांधी जी सही अर्थ में एक विश्वगुरु थे पर जीवन पाठशाला में वह एक नन्हे, कौतूहल से भरे शिशु भी थे| उन्होंने इन विभूतियों और महान ग्रन्थों के अलावा कभी भी सीखने का कोई मौका गंवाया नहीं| दक्षिण अफ्रीका में टॉलस्टॉय फार्म के स्कूल में एक उद्दंड, अनुशासनहीन बच्चे को एक दिन उन्होंने गुस्से से पीटा और उसी क्षण सीख लिया कि बच्चे को शारीरिक दंड उसे ठीक करने के लिए नहीं, बल्कि अपने गुस्सा निकालने के लिए दिया जाता है| उन्होंने लिखा भी कि उसी क्षण वह बच्चा मेरा शिक्षक हो गया| बापू ने मानव जीवन को देखा, हिंसा के कारण उसमें फैलते ज़हर को देखा, अहिंसा के असाधारण मूल्य को समझा, उन्होंने मानवीय कुकृत्यों के कारण नष्ट होते पर्यावरण को देखा, शांत, स्थिर और दृढ़ होने का महत्व समझा| गांधी जी ने जीवन को देखा, उसे महसूस किया, उसके बारे में सोचा और अपनी अंतर्दृष्टियां लोगों के सामने रखीं, इस जिद के बगैर कि वे उन्हें स्वीकार करें| उन्होंने अपने विचारों को लेकर कोई जटिल दर्शन नहीं गढ़ा, बल्कि जिन लोगों ने उनसे उनके दर्शन के बारे में बौद्धिक प्रश्न पूछे उनसे बड़े ही सरल और सीधे शब्दों में कहा:“मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है”|
कथनी और करनी के बीच की खाई जब जीवन के हर क्षेत्र में इतनी सामान्य बात हो चुकी हो, पाखंडपूर्ण आचरण सार्वजनिक जीवन के नए धर्म की तरह जब इतनी गहराई तक स्थापित हो चुका हो, ऐसे में अपने जीवन और दर्शन, कथनी और करनी के बीच के फासले को ख़त्म करने के ईमानदार प्रयास करने वाला ही सच्चा महात्मा कहलाने का हकदार है| आज की युवा पीढ़ी को सकारात्मकता, दृढ़ता, सही नैतिकता, संकल्प और शुद्ध जीवन का सन्देश यदि किसी से ग्रहण करना हो तो गांधी जी से बेहतर कोई आधुनिक स्रोत उन्हें नहीं मिलेगा, यह किसी संकोच के बगैर कहा जा सकता है| आइन्स्टाइन की बात बिलकुल सही लगती है जिन्होंने गांधी जी के बारे में कहा था कि आने वाली पीढियां शायद यह यकीन भी नहीं कर पाएंगी कि गांधी जैसा कोई हाड़ मांस का इंसान इस धरती पर कभी चला भी था|