गौतम नवलखा को जेल के बजाय घर में नजरबंद किया जायेगा

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि, 70 वर्षीय मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, जो भीमा कोरेगांव मामले के सिलसिले में हिरासत में हैं, को उनकी चिकित्सा स्थिति के कारण 48 घंटे के भीतर उन्हे उनके घर में ही नजरबंद कर दिया जाए। यह आदेश अंतरिम है और एक महीने के बाद इसकी समीक्षा की जाएगी।

शीर्ष अदालत ने कहा,

“वह 2020 से हिरासत में, जेल में बंद हैं। उसे पहले भी एक बार, घर में नजरबंद रखा जा चुका है। प्रथम दृष्टया, उनकी नजरबंदी के बारे में ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है कि, उन्होंने, हाउस अरेस्ट का दुरुपयोग किया है।  उनके खिलाफ, इस मामले के अतिरिक्त,  अन्य कोई क्रिमिनल इतिहास पूर्ववृत्त नहीं है। कम से कम, एक महीने की अवधि के लिए उन्हे हाउस अरेस्ट में रखना चाहिए।”

हालांकि, पुलिस को, उनके आवास की तलाशी लेने, हालात का मूल्यांकन करने और जरूरत पड़ने पर निरीक्षण करने की अनुमति दी गई है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नवलखा नजरबंदी का दुरुपयोग न करें। “हम यह स्पष्ट करते हैं कि इस तरह के प्रविधानों  का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए और याचिकाकर्ता को बिला वजह परेशान करने का कोई बहाना भी नहीं ढूंढना चाहिए।”

गौतम नवलखा ने अपनी बहन के घर, रहने की प्रार्थना की थी। हालाँकि, सुनवाई के दौरान कुछ घटनाक्रमों के बाद, यह भी प्रस्तुत किया गया था कि, वह एक वैकल्पिक आवास की व्यवस्था करे लेंगे, जहाँ वे अपने 71 वर्षीय साथी के साथ रहेंगे। गौतम नवलखा के वकील कपिल सिब्बल ने अदालत को सूचित किया कि, वह एक सार्वजनिक पुस्तकालय के ऊपर पहली मंजिल पर स्थित एक बीएचके फ्लैट में रहेंगे। एनआईए ने कहा कि वह उनके, स्थानांतरण से पहले स्थान का निरीक्षण करेगी।

नवलखा को, दी गई राहत, निम्न शर्तों के आधीन है और इनके उल्लंघन को, गंभीरता से लिया जाएगा और यह आदेश को तत्काल रद्द भी किया जा सकता है:

(1) उनके घर की निगरानी की जाएगी (पुलिस कर्मियों को घर के बाहर तैनात किया जाएगा) और सीसीटीवी कैमरे, कमरों के बाहर और निवास के प्रवेश और निकास बिंदुओं पर लगाए जाएंगे।

(2) घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं होगी। (पुलिस कर्मियों के साथ सैर के अलावा, पर, वह इस तरह की सैर के दौरान किसी भी व्यक्ति के साथ शामिल नहीं होगा);

(3) इंटरनेट, लैपटॉप या किसी संचार उपकरण तक पहुंच नहीं होगी।

(4) पुलिस कर्मियों द्वारा उपलब्ध कराए गए मोबाइल फोन पर पुलिस की मौजूदगी में दिन में एक बार 10 मिनट के लिए फोन कॉल की अनुमति होगी। 

(5) वह अपने साथी के फोन सहित, किसी अन्य फोन का उपयोग नहीं करेगा।  साथी के मोबाइल में इंटरनेट नहीं होना चाहिए, कॉल और एसएमएस करने के लिए एक बुनियादी फोन हो सकता है। 

(6) एनआईए उसके और उसके साथी द्वारा की गई फोन कॉल्स की निगरानी कर सकती है;

(7) वह बंबई नहीं छोड़ सकता है। 

(8) परिवार के अधिकतम दो सदस्य सप्ताह में एक बार तीन घंटे के लिए उनसे मिलने जा सकते हैं (परिवार के सदस्यों की सूची 3 दिनों के भीतर एनआईए को उपलब्ध कराई जाएगी);

(9) ऐसे आगंतुकों की अनुमति होने पर भी, उन्हे किसी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट ले जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। 

(10) उन्हे, केबल टीवी का उपयोग करने और समाचार पत्र पढ़ने की अनुमति होगी;

(11) मामले में किसी गवाह से कोई संपर्क नहीं रखा जाएगा। 

(12) जेल मैनुअल नियमों के अनुसार वकील से मिलने की अनुमति होगी। 3 दिनों में वकीलों के नाम एनआईए को बता देना चाहिए। 

(13) चिकित्सा आपात स्थिति के मामले में, वहां नियुक्त अधिकारी, उन्हें, उपयुक्त अस्पताल ले जाएंगे। 

(14) 2 लाख रुपये की स्थानीय जमानत जमा करनी होगी। 

मुल्जिम की निगरानी का खर्च लगभग ₹2.4 लाख होगा जो, नवलखा को स्वयं वहन करना है।  सीसीटीवी लगाने का खर्च भी वह वहन करेंगे।  बेंच ने कहा कि, अगर उन्हें, बरी कर दिया जाता है, तो इस राशि की प्रतिपूर्ति राज्य द्वारा की जाएगी। यह मामला अब दिसंबर के दूसरे सप्ताह में सूचीबद्ध है।  एनआईए को सुनवाई की अगली तारीख से पहले केईएम अस्पताल से एक नई मेडिकल रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए कहा गया है।

शीर्ष अदालत ने नजरबंदी के अनुरोध की अनुमति देने के लिए अपना इरादा जताया भी था। अदालत ने कहा था,

“इस कोर्ट ने हाउस अरेस्ट को हिरासत का एक रूप माना है। उन पर सभी प्रकार के प्रतिबंध रहेंगे। उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। कम से कम उसे कुछ दिनों के लिए नजरबंद रहने दें।”

कहा जाता है कि नवलखा त्वचा की एलर्जी और दंत समस्याओं सहित गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं, और उन्होंने संदिग्ध कैंसर का परीक्षण करने के लिए कोलोनोस्कोपी कराने की आवश्यकता का हवाला दिया।  बंबई उच्च न्यायालय द्वारा उनकी बहन के घर स्थानांतरित करने की उनकी प्रार्थना को खारिज करने के बाद उन्होंने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए, पीठ ने कहा, “हम इस बात को लेकर थोड़ा हैरान हैं कि उच्च न्यायालय ने क्यों कहा कि याचिकाकर्ता उम्र के मानदंडों को पूरा करता है। उसकी उम्र 70 वर्ष है। स्वास्थ्य की स्थिति भी सही नहीं है, कई स्वास्थ्य मुद्दे हैं।  ..”

29 सितंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के तर्क के बाद कि उन्हें कई स्वास्थ्य जटिलताएँ थीं, उनकी पसंद के अस्पताल में उनकी चिकित्सा जाँच का आदेश दिया गया था।  मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर सिब्बल ने दलील दी कि जेल में उनके इलाज की कोई संभावना नहीं है।  उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि नवलखा एक विचाराधीन कैदी है, दोषी नहीं।  इसके अलावा, उसके खिलाफ चार्जशीट 2020 में दायर की गई है और मुकदमा शुरू होना बाकी है।

हालांकि, एनआईए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने आवेदन का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि कथित अपराध राष्ट्र की सुरक्षा के लिए हैं।  उन्होंने तर्क दिया कि नवलखा के कश्मीरी चरमपंथियों के साथ संबंध हैं और इस प्रकार, नजरबंदी में उनकी निगरानी करना मुश्किल होगा।  एएसजी ने यह भी कहा कि नवलखा की हालत में सुधार हुआ है और उन्हें फिलहाल कोई शिकायत नहीं है।

कि नवलखा के कश्मीरी चरमपंथियों के साथ संबंध हैं और इस प्रकार, नजरबंदी में उनकी निगरानी करना मुश्किल होगा।  एएसजी ने यह भी कहा कि नवलखा की हालत में सुधार हुआ है और उन्हें फिलहाल कोई शिकायत नहीं है।

एएसजी ने, नवलखा की मेडिकल रिपोर्ट की सत्यता पर भी संबंध में संदेह जताया था और यह कहा था, कि 

“नवलखा की जांच करने वाले डॉक्टरों के बोर्ड में उनके बहनोई भी शामिल थे। डॉ कोठारी, नवलखा की बहन के पति हैं। हमारे संज्ञान में यह बात कल ही आई।”

हालांकि, नवलखा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने आरोपों पर कड़ी आपत्ति जताई 

“आप उस आदमी पर हमला करते हैं, आप डॉक्टर पर हमला करते हैं। 12 डॉक्टरों का यह पैनल है। क्या सबने अपनी शपथ छोड़ दी है ?”

पीठ ने कहा कि 

“डॉ कोठारी ने पूरी रिपोर्ट में केवल तीन पंक्तियाँ कही हैं। यह 5-6 विशेष डॉक्टरों की राय है। क्या संबंधित डॉक्टर गलत रिपोर्ट देंगे? ऐसा तर्क नहीं हो सकता। आपको जिम्मेदार होना होगा … एक व्यक्ति दूसरों के दिमाग में जहर नहीं डाल सकता … आप को, मेडिकल बोर्ड के गठन के पहले आपत्ति करनी चाहिए थी। केवल आप को हर तरफ खराब दिखता है।”

हालांकि, एएसजी ने जोर देकर कहा कि, “इस बारे में, एक स्वतंत्र मूल्यांकन की आवश्यकता है। मुझे इस बारे में अपनी आपत्ति है। इसके दागदार होने की संभावना है … अगर उसकी हालत बहुत खराब है, तो उसे दूसरे अस्पताल में जाने में समस्या नहीं होनी चाहिए, जहां उसका रिश्तेदार नहीं है। “

पीठ ने कहा कि, “प्रथम दृष्टया रिपोर्ट को खारिज करने का कोई कारण नहीं है।” फिर भी, आदेश दिया, “डॉ कोठारी की उपस्थिति के कारण एएसजी द्वारा व्यक्त किए गए संदेह के मद्देनजर, याचिकाकर्ता को पहले केईएम अस्पताल में एक चिकित्सा मूल्यांकन के लिए ले जाया जाए … और सुनवाई की अगली तारीख से पहले एक रिपोर्ट सुरक्षित कर ली गई।”

एएसजी ने तब नजरबंदी के लिए शर्तों का प्रस्ताव रखा था। एनआईए ने नवलखा के निवास स्थान, घर में सीसीटीवी कैमरे लगाने और इंटरनेट, लैपटॉप, फोन आदि के उपयोग पर प्रतिबंध के बाद पुलिसकर्मियों के एक समूह की प्रतिनियुक्ति करने की मांग की;  कोई मीडिया साक्षात्कार या किसी गवाह से संपर्क नहीं।  इसने यह भी कहा कि उसे बॉम्बे छोड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। एनआईए ने यह भी कहा कि नवलखा को घर के बाहर टहलने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इस पर बेंच ने इशारा किया कि 45-60 मिनट पैदल चलने का सुझाव दिया गया है।  

एक प्रस्ताव पर कि वह ट्रेडमिल का उपयोग कर सकते हैं, बेंच ने टिप्पणी की, “55 की उम्र के बाद, मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं, ट्रेडमिल घुटने के कारण उचित नहीं होता। प्राकृतिक चलने जैसा कुछ नहीं है। क्या आप खुली जेलों के बारे में जानते हैं?” 

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Vijay Shanker Singh X-IPS
लेखक रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं।