उच्च शिक्षा : छोटे कालेज और चुनौतियाँ!

उच्च शिक्षा : छोटे कालेज और चुनौतियाँ!

प्रदेश और देश के हर कॉलेज में प्रवेश के लिए संघर्ष हो रहा है। एक तरफ जहां नामवर कॉलेज विद्यार्थियों की संतोषजनक संख्या पर शायद ही पहुंच पाएँगे, वहीं अनेक कॉलेज ऐसे भी हैं जहां छात्रों का अकाल पड़ गया है। अनेक कॉलेज अपने प्राध्यापकों को कई कई महीनों से वेतन देने में असमर्थ हो चुके हैं। इन स्थितियों के अनेक कारण हो सकते हैं। अनेक छोटे कॉलेजों में निम्न स्तर का लर्निंग इन्फ्रा होना, स्टाफ की कमी और उनको पढऩे के लिए अंडर पेमेंट करना, छात्रों का उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना, कॉलेज में पेशवर प्रशासन और प्रबंध का न होना इत्यादि ऐसी स्थितियां बन सकती हैं जिससे आने वाले समय में छोटे कॉलेज बंद हो सकते हैं।

भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली समय के साथ तेजी से बदल रही है। किसी भी कॉलेज का प्राचार्य और शिक्षक उस संस्था की धुरी होते हैं। आज उच्च शिक्षा में संस्था प्रमुख या प्राचार्य का महत्व बढ़ गया है। शैक्षणिक संस्थान के प्रमुख यानी प्राचार्य के विभिन्न कार्य और जिम्मेदारियां नएपन से परिभाषित हो रही हैं।

जैसे शिक्षा से संबंधित विभिन्न योजनाओं को लागू करना और क्रियान्वित करना। प्रत्येक विभाग और संकायों के बीच संबंध स्थापित करना और संतुलन बनाए रखना। आवश्यकता पडऩे पर आगामी वर्ष के लिए विभाग के लिए व्यय की योजना प्रदान करना। विभाग/संस्था के वार्षिक बजट की जिम्मेदारी लेते हुए यह सुनिश्चित करना कि इसका उपयोग दिशा-निर्देशों के अनुसार किया जाए। संस्थान के सटीक रिकॉर्ड, सुव्यवस्थित फाइलें और बैठकों के सभी संबंधित मिनटों सहित कॉलेज दस्तावेजों के रिकॉर्ड रखना। संस्थान में कर्मचारियों और छात्रों को आवश्यकतानुसार निर्णयों को समझाना। संस्थागत सुविधाओं के बारे में भविष्य में सुधार के लिए योजना विकसित करना। फर्नीचर, फिटिंग और कपड़े को होने वाली किसी भी दिन-प्रतिदिन की क्षति का सर्वेक्षण करना। प्रबंधन अधिकारियों को किसी भी क्षति की चिंता की रिपोर्ट करना। हितधारकों के अच्छे रिटर्न के लिए संस्थान की स्वच्छता के प्रति जागरूक रहना।

कॉलेज स्टाफ विकास कार्यक्रमों के एक भाग के रूप में स्टाफ के सदस्यों के मूल्यांकन में भाग लेना। नियमित शिक्षण में शामिल शिक्षण स्टाफ और हितधारकों के लिए शिक्षाविदों में उनकी अलग-अलग भूमिका के बारे में देखना। नए स्टाफ के लिए स्टाफ इंडक्शन प्रोग्राम और कॉलेज इंडक्शन प्रोग्राम की व्यवस्था करना और तैयार करना। सहायक कर्मचारियों और तकनीशियनों की पूर्ण भागीदारी के लिए उनके कार्य को व्यवस्थित करना। विभाग के सदस्यों का सेवाकालीन प्रशिक्षण आयोजित करना। प्रत्येक छात्र की नैतिक, आध्यात्मिक, सौंदर्य, शारीरिक और बौद्धिक शिक्षा में योगदान देने वाले विषयों का विकास करना। पाठ्यचर्यागत नीतियों और विषयों को लागू करना और उन्हें विकास के कार्य में लाना।

पाठ, दीवार प्रदर्शन और संसाधनों के उपयोग के संदर्भ में पूरे संस्थान में प्रेरक कक्षा वातावरण प्रदान करना। उचित समय और छुट्टियों के दौरान समाजों, यात्राओं, अतिथि वक्ताओं, भ्रमण और क्षेत्र कार्य के रूप में कक्षा से परे अवसर प्रदान करना। छात्रों को उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों पर सलाह प्रदान करना और विश्वविद्यालयों के साथ उचित संबंध बनाए रखना।

इसके साथ ही यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक छात्र के साथ मिशन और विजन स्टेटमेंट के सिद्धांतों और उद्देश्यों के अनुसार व्यवहार किया जाए। अच्छे अभ्यास के उदाहरणों को समन्वित करना और शिक्षकों को अभ्यास, अध्ययन के कार्यक्रम साझा करने में सक्षम बनाना। एनएएसी, शैक्षणिक और प्रशासनिक समितियों, विश्वविद्यालय समितियों सहित बहु-विषयक समितियों को शामिल करने वाली विभिन्न समितियों का संचालन करना। एक संस्थागत पुस्तिका तैयार करना और रखना और सरकारी अधिकारियों, प्रबंधन निकायों की मांग पर समय-समय पर उत्पादन और प्रतिनिधित्व करना। शैक्षणिक उत्कृष्टता के लिए कॉलेज/संस्थान को उसके विकास और प्रगति के लिए समय की गति के साथ परिभाषित करना। टाइम टेबल समिति द्वारा तैयार किए गए टाइम टेबल के घंटों को देखना और सुनिश्चित करना। समाज के कल्याण के लिए छात्रों जैसे कॉलेज हितधारकों के लिए कार्यान्वयन के लिए दुनिया में संभाली गई नई तकनीकों और प्रौद्योगिकियों से अवगत रहना। संबद्ध विश्वविद्यालयों द्वारा तय दिशा-निर्देशों के अनुसार कॉलेज/संस्थान में अनुशासन बनाए रखना। समाज और हितधारकों जैसे माता-पिता, छात्रों के साथ शिक्षण स्टाफ और गैर-शिक्षण स्टाफ के बीच संतुलन बनाए रखना।

उच्च शिक्षा में टीचिंग स्टाफ का महत्व एवं उत्तरदायित्व भी नए आयाम ले रहे हैं। इनकी भी एक चेक लिस्ट सुझाई जा सकती है, जैसे कि संस्थानों की समय-सारिणी में निर्देशानुसार व्याख्यान, प्रैक्टिकल, कार्यशाला, सेमिनार लेना। छात्र/हितधारक के शैक्षणिक स्तर को बढ़ाना। हितधारकों के विकास के लिए बुनियादी आधार के साथ-साथ मूल्य आधारित शिक्षा को जोडऩा। छात्रों को रोजगार की दृष्टि से वाहक बनाना। विश्वविद्यालय अवकाश या स्प्रेडशीट के अनुसार परिणाम बनाना।

प्राध्यापकों के लिए एक चुनौती है। ऊपर बताए गए बिंदुओं का मकसद छोटे कॉलेज में शैक्षणिक और प्रशासनिक गति देना है। इसके लिए प्राचार्य और प्राध्यापकों को और मजबूती देनी होगी, ताकि वे पूर्ण शक्ति और स्व-निर्भरता से उच्च शिक्षा की नई इबारत लिख सकें।  छोटे कॉलेज बंद कर देने की तो सिफ़ारिश नहींकी जाती, परन्तु बगैर डिमांड और सुविधाओं के चल रहे कॉलेज सार्थकता नहीं साबित कर पा रहे हैं। इस पर सोचा जाना गलत नहीं है। कोशिश करनी होगी कि आनन-फानन में पर्याप्त सुविधाओं और जरूरत के बगैर कॉलेज खोलने की कवायद से बचा जाए। पहले से ठीक न चल रहे ऐसे कॉलेजों को बड़े कॉलेजों में मर्ज किया जाए ताकि उच्च शिक्षा का स्टैंडर्ड गिरने न पाए।

We are a non-profit organization, please Support us to keep our journalism pressure free. With your financial support, we can work more effectively and independently.
₹20
₹200
₹2400
राकेश दुबे
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध टिप्पणीकार है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।