डॉ. अम्बेडकर का भारत के आधुनिकीकरण एवं औद्योगीकरण में ऐतिहासिक योगदान

डॉ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर एक अछूत परिवार में पैदा हुए थे जो सभी प्रकार के सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक व राजनीतिक अधिकारों से वंचित वर्ग था. इसके बावजूद भी उनकी गिनती दुनिया के सबसे अधिक शिक्षित लोगों में की जाती है. उनके पास अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा जर्मनी की उच्च डिग्रियां थीं. इतना शिक्षित होते हुए भी उन्हें समाज में घोर अपमान का सामना करना पड़ा. जब वे महाराजा बड़ोदा के दरबार में सैनिक सलाहकार के उच्च पद पर नियुक्त हुए तो उन्हें इतना अपमानित होना पड़ा कि उन्हें यह नौकरी छोड़नी पड़ी. जाति अपमान से तंग आ कर उन्होंने कभी भी नौकरी न करने का निर्णय लिया तथा इंग्लैण्ड से वकालत पास कर स्वतंत्र रूप से बंबई में वकालत शुरू कर दी.

डॉ. अम्बेडकर इस्राईल के लोगों के मुक्तिदाता मोजिज़ की तरह अपने लोगों को जगाने, संगठित करने, अपनी शक्ति से परिचित कराने तथा सम्मानसहित अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित कर रहे थे. उन्होंने दलितों को “शिक्षित हो, संघर्ष करो और संगठित हो” का नारा देकर मुक्ति का रास्ता दिखाया. 

उन्होंने चालू शिक्षा पद्धति के बारे में महात्मा गांधीजी, सी. राजगोपालचारी, रविन्द्रनाथ टैगोर, डॉ. जाकिर हुसैन तथा अन्य की तरह मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा की आलोचना नहीं की और न ही वे नए सिदधान्त गढ़ने में लगे रहे. इस के विपरीत डॉ. आंबेडकर ने अपने बच्चों को स्कूल तथा कालेज भेज कर पढ़ाने की प्रेरणा दी. उनका शिक्षा प्रचार का कार्यक्रम केवल दलितों तक ही सीमित नहीं था बल्कि उन्होंने सभी वर्गों के लिए उच्च शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास किया. डॉ. आंबेडकर ने इस हेतु “पीपल्ज़ एजुकेशन सोसायटी” के माध्यम से बबई में कालेज स्थापित किये जिनमें बिना किसी भेदभाव के सभी को शिक्षा उपलब्ध करायी और जनसाधारण की समस्यायों को सामने रख कर उनमें प्रातः तथा सायंकाल पढ़ाई की व्यवस्था की. इससे हजारों नवयुवकों और महिलाओं ने लाभ उठाया. बाबासाहेब ने दलित वर्ग के पढ़े लिखे युवकों के लिए सरकारी नौकरियों में मुसलामानों तथा अन्य अल्पसंख्यक वर्गों की तरह आरक्षण की मांग उठाई. 

बाबासाहेब ने केवल अछूतों की मुक्ति के लिए ही संघर्ष नहीं किया बल्कि उन्होंने राष्ट्र के निर्माण एवं भारतीय समाज के पुनर्निर्माण में कई तरीकों से महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे अपने देश के लोगों को बहुत प्यार करते थे तथा उन्होंने उनकी मुक्ति और खुशहाली के लिए बहुत काम किया. 

भारत के भावी संविधान के निर्माण के सम्बन्ध में 1930 तथा 1932 में इंग्लैण्ड में गोलमेज़ कांफ्रेंस बुलाई गयी जिसमें उन्हें डिप्रेस्ड क्लासेज़ के प्रतिनिधि के रूप में आमंत्रित किया गया तो इसका गांधी जी ने बहुत विरोध किया. डॉ. आंबेडकर ने अपने भाषण में अँग्रेज़ सरकार की तीखी आलोचना करते हुए कहा, “अँग्रेज़ सरकार ने हमारे उद्धार के लिए कुछ भी नहीं किया है. हम इस से पहले भी अछूत थे और अब भी अछूत हैं. यह सरकार दलित हितों की विरोधी है तथा उनकी मुक्ति और अपेक्षाओं के प्रति उदासीन है. यह सरकार  ऐसा जानबूझकर कर रही है. केवल लोगों की सरकार, लोगों के लिए सरकार और लोगों द्वारा सरकार स्थापित होने पर ही उनका भला हो सकता है. अतः हमारी पहली मांग है – स्वराज.” इस संक्षिप्त उद्धरण से बाबासाहेब की देश प्रेम और स्वंत्रता की चाह का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. 

बाबासाहेब को केवल दलित हितों को बढ़ाने तथा शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए ही याद नहीं किया जाता है बल्कि उन्हें राष्ट्र निर्माण एवं उसके आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए भी याद किया जाता है. इसके कुछ प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं:-

1. भारत सरकार अधिनियम 1935 लागू होने पर प्रान्तों में विधान सभाएं स्थापित करने एवं स्वराज की पद्धति लागू करने का निर्णय लिया गया तो बाबासाहेब ने राजनीतिक क्षेत्र में दलितों की हिस्सेदारी करने के ध्येय से स्वतंत्र मजदूर पार्टी (Independent Labour Party) की स्थापना की तथा उसके झंडे तले 1937 का पहला चुनाव लड़ा. इसमें उन्हें बहुत अच्छी सफलता मिली. इस पार्टी में दलितों के हितों के साथ साथ मजदूर हितों की वकालत भी की गयी थी तथा कई प्रस्ताव रखे गए थे. बाबा साहेब चाहते थे कि मजदूरों को केवल बेहतर कार्य स्थिति से ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए बल्कि उन्हें राजनीति में भाग लेकर राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी प्राप्त करनी चाहिए. 

2. बाबासाहेब जानते थे कि भारत की निरंतर बढ़ती आबादी भी उस के पिछड़ेपन का कारण है. इसलिए उन्होंने 1940 में बम्बई एसेम्बली में परिवार नियोजन योजना लागू करने का बिल प्रस्तुत किया था परंतु वह पास नहीं हो सका था. इससे भी उनके देश प्रेम की झलक मिलती है. 

3. उन्होंने 1942 में स्वतंत्र मजदूर पार्टी भंग करके “शैड्युल्ड कास्ट्स फेडरेशन” नाम की पार्टी की स्थापना की तथा दलित वर्ग की अखिल भारतीय स्तर की कांफ्रेंस की. उन्होंने दलित महिलाओं का भी सम्मेलन किया. वे चाहते थे कि महिलायों को अपनी मुक्ति और अधिकारों के लिए स्वयं लड़ना चाहिए. उन्होंने महिलाओं को शराबबंदी लागू करने के लिए संघर्ष करने के लिए भी प्रेरित किया. उन्होंने महिलाओं को सलाह दी कि यदि उनका पति शराब पीकर घर आये तो वे उसे खाना न दें. इस से बाबा साहेब की महिलाओं की मुक्ति संबंधी चिंता का आभास मिलता है. 

4. सन 1932 में साम्प्रदायिक पंचाट के अनुसार दलितों को सरकारी नौकरियों में एवं विधानसभाओं  में आरक्षण की सुविधा मिली थी जिस का महात्मा गाँधी द्वारा मरण व्रत रख कर विरोध किया गया.  अंत में बाबासाहेब को गाँधी जी की जान बचाने के लिए पूना पैकट करके अलग मताधिकार के राजनीतिक अधिकार की बलि देनी पड़ी तथा अपने प्रतिनिधि स्वयं चुनने के अधिकार को छोड़ना पड़ा जिस का खमियाज़ा दलित वर्ग आज तक भुगत रहा है. 

5. यह देखा गया था कि कांग्रेस के लोग दलित वर्ग की मीटिंगों में गड़बड़ी फैलाकर अशांति फैला देते थे. अतः इसे रोकने के लिए बाबा साहेब ने स्वयं सेवक संघ की तर्ज पर दलित नवयुवकों का “समता सैनिक दल’ बनाया. सन 1942 में उन्होंने नागपुर में इस का बड़ा सम्मलेन भी किया. बाबासाहेब इस के माध्यम से दलित नवयुवकों में अनुशासन, आत्म रक्षा एवं अपने नेताओं की रक्षा करने तथा अत्याचार का विरोध करने की भावना पैदा करना चाहते थे. 

6. यह सर्वविदित है कि स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण में बाबा साहेब का महत्वपूर्ण योगदान है. परन्तु फिर भी कुछ लोग इस को बहुत कम करके दिखाने की कोशिश करते रहते हैं. इस से कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि आज भारत में यदि लोकतंत्र जीवित है तो वह इस संविधान के कारण ही है. भारत में संसदीय लोकतंत्र और सरकारी समाजवाद की स्थापना में बाबासाहेब का अद्वितीय योगदान है.

7. बाबासाहेब अछूतों के साथ-साथ महिलाओं के भी शूद्र होने की स्थिति के कारण व्याप्त दुर्दशा एवं अधोगति से बहुत दुखी थे. अतः वे महिलाओं को भी कानूनी अधिकार दिलाना चाहते थे. 1952 में जब वे भारत के कानून मंत्री थे तो उन्होंने अथक परिश्रम करके हिन्दू कोड बिल तैयार किया और उसे पास करने हेतु संसद में पेश किया. परन्तु जब कट्टरपंथी हिंदुओं द्वारा उस बिल का विरोध किया गया और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी कमजोरी दिखाने लगे तो डॉ. आंबेडकर ने खिन्न हो कर विरोध स्वरूप अपने पद से इस्तीफा दे दिया. बाद में वह बिल हिन्दू विवाह एक्ट, हिन्दू उत्तराधिकार एक्ट, हिन्दू स्पेशल मैरिज एक्ट आदि के रूप में 1956 में पास हुआ. इससे स्पष्ट है कि भारतीय, खास करके हिन्दू नारी के उत्थान में डॉ. आंबेडकर का महान योगदान है. इतना ही नहीं डॉ. आंबेडकर समान नागरिक संहिता ( Common Civil Code) के भी पक्षधर थे. 

8. बाबासाहेब ने रोजगार उपलब्ध कराने के लिए जिला रोजगार कार्यालयों की स्थापना की थी।

9.  बाबासाहेब की प्रेरणा से ही 1934 में भारतीय रिजर्व बैंक आफ इंडिया की स्थापना की गई थी।

10. बाबासाहेब के सुझाव पर ही भारत में रुपए का आधार चांदी की जगह सोना बनाया गया था और रुपए का पाउंड के बदले मूल्य निर्धारित किया गया था।  

उपरोक्त के अतिरिकित डॉ. आंबेडकर का बहुत बड़ा योगदान भारत के औद्योगीकरण और आधुनिकीकरण की नींव डालने का रहा है. दुर्भाग्य से उनके इस क्षेत्र में दिए गए योगदान को लोगों के सामने प्रकट नहीं किया गया. इस क्षेत्र में उन का प्रमुख योगदान मजदूर वर्ग का कल्याण, बाढ़ नियंत्रण, बिजली उत्पादन, कृषि सिंचाई एवं जल यातायात सम्बंधी योजनाएं तैयार करना था. इसके फलस्वरूप ही बाद में भारत में औद्योगीकरण एवं बहुउद्देशीय नदी जल योजना बन सकीं.

सन 1942 में जब बाबासाहेब वायसराय की कार्यकारिणी समिति के सदस्य बने थे तो उन के पास श्रम विभाग था जिस में श्रम, श्रम कानून, कोयले की खदानें, प्रकाशन एवं लोक निर्माण विभाग थे. 

बाबासाहेब लम्बे अरसे तक मजदूरों की बस्ती में रहे थे. अतः वे मजदूरों की समस्याओं से पूरी तरह परिचित थे. अतः श्रम मंत्री के रूप में उन्होंने मजदूरों के कल्याण के लिए बहुत से कानून बनाये जिन में प्रमुख इंडियन ट्रेड यूनियन एक्ट, औद्योगिक विवाद अधिनियम, मुयावज़ा, काम के घंटे तथा प्रसूतिलाभ आदि प्रमुख हैं. अंग्रेजों के विरोध के बावजूद भी उन्होंने महिलाओं के गहरी खदानों में काम करने पर प्रतिबंध लगाया. उन्होंने मजदूरों को राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी प्राप्त करने हेतु भी प्रेरित किया. वास्तव में वर्तमान में जितने भी श्रम कानून हैं उनमें से अधिकतर बाबासाहेब के ही बनाए हुए हैं जिस के लिए भारत का मजदूर वर्ग उनका सदैव ऋणी रहेगा. 

बाबासाहेब सफाई मजदूरों का कल्याण और उन्हें संगठित करने के लिए भी बहुत प्रयासरत थे जबकि गाँधी जी उन्हें भंगी बने रहने की शिक्षा देते थे तथा उन की हड़ताल को अनैतिक कार्य मानते थे. बाबासाहेब ने सर्वप्रथम बम्बई नगर महापालिका के सफाई मजदूरों को संगठित करके उनकी ट्रेड यूनियन बनवाई. वे इसी प्रकार के संगठन की स्थापना देश के अन्य भागों में भी करना चाहते थे और उसे अखिल भारतीय स्वरूप देना चाहते थे. उन्होंने इसी उद्देश्य से दो सदस्यी समिति भी बनायी तथा उसे विभिन्न प्रान्तों में जाकर सफाई मजदूरों की स्थिति एवं लागू कानूनों का अध्ययन कर रिपोर्ट देने को कहा. इस से स्पष्ट है कि बाबासाहेब सफाई मजदूरों को न्याय दिलाने तथा उन्हें अन्य ट्रेड यूनियनों की तर्ज़ पर संगठित करने में कितने प्रयासरत थे. 

बाबासाहेब भारत की बढ़ती आबादी के कारण उपजी गरीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी आदि समस्यायों के बारे में बहुत चिंतित थे. अतः वे खेती को अधिक उन्नत करना चाहते थे. वास्तव में वे इसे उद्योग का दर्जा देना चाहते थे. अतः उन्होंने सम्पूर्ण कृषि भूमि का राष्ट्रीयकरण करके रूस की भांति सामूहिक खेती का प्रस्ताव रखा ताकि कृषि का मशीनीकरण हो सके. इस के लिए वे नदी सिंचाई की  योजनाओं को लागू करना चाहते थे. उन्होंने नदियों पर बाँध बना कर उनसे नहरें निकालने तथा बिजली पैदा करने की योजनायें बनायीं थीं. इस प्रकार वे नदियों की बाढ़ से होने वाली तबाही को खुशहाली के साधन बनाना चाहते थे. इसी उद्देश्य से उन्होंने भारत में सर्वप्रथम “दामोदर नदी घाटी” की योजना बनायी जो अमेरिका की “टेनिस वेली अथारिटी” की तरह की थी. इसी प्रकार उन्होंने भारत की अन्य नदियों के जल का उपयोग करने की योजनायें भी बनायीं थीं. बाबासाहेब कृषि की छोटी जोतों को ख़त्म करके उसे लाभकारी बनाना चाहते थे. वे खेती से बेशी मजदूरों को अधिक औद्योगीकरण करके उत्पादक श्रम में बदलना चाहते थे.  

बाबासाहेब नदी यातायात को भी बहुत बढ़ावा देना चाहते थे क्योंकि यह काफी सस्ता है. इसी उद्देश्य से उन्होंने सेंट्रल वाटरवेज़, इर्रीगेशन एंड नेवीगेशन कमीशन (CWINC)की स्थापना भी की थी. वर्तमान मोदी सरकार इसी का अनुसरण कर रही है. बाबासाहेब नदियों में मिटटी भराव के कारण आने वाली बाढ़ को रोकने हेतु अधिक गहरा करने के लिए छोटी एटमी शक्ति का प्रयोग करने के भी पक्षधर थे. इससे हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि कृषि, सिंचाई तथा नदी जल के सदुपयोग के बारे में बाबासाहेब की सोच कितनी आधुनिक एवं प्रगतिशील थी. 

बाबासाहेब का यह निश्चित मत था कि औद्योगीकरण के बिना भारत की बेरोज़गारी, गरीबी एवं उपभोक्ता वस्तुओं की कमी दूर नहीं की जा सकती. इसके विपरीत गांधी जी मशीनों के प्रयोग और औद्योगीकरण के कट्टर विरोधी थे. बाबासाहेब यह भी जानते थे कि बिजली के बिना औद्योगीकरण संभव नहीं है. अतः उनका विचार था कि हमें सस्ती बिजली बनानी चाहिए. बाबासाहेब नदियों पर बांध बांधकर बिजली पैदा करना चाहते थे. इसी उद्देश्य से उन्होंने दामोदर घाटी योजना बनायी तथा सेंट्रल वाटरवेज़, इर्रीगेशन एंड नेवीगेशन कमीशन की स्थापना की. इसका तथा कमीशन का मुख्य काम प्रान्तों को कृषि, सिंचाई एवं बिजली उत्पादन सम्बन्धी परामर्श देना था. इनके सहयोग से बाद में कई बड़ी बहुउद्देशीय नदी योजनायें बनायीं गयीं जिनसे बिजली के उत्पादन के साथ साथ कृषि सिंचाई एवं बाढ़ नियंतरण में सहायता मिली. बाबासाहेब ने ही बिजली के उत्पादन एवं सुचारू वितरण के लिए पावर ग्रिड, केन्द्रीय तथा राज्य बिजली बोर्डों की स्थापना भी की थी. वास्तव में बाबासाहेब ने बिजली उत्पादन, बाढ़ नियंतरण, कृषि सिंचाई एवं बहुद्देशीय नदी योजनाएं बनाकर भारत के औद्योगीकरण की नींव रखी थी.

उपरोक्त संक्षिप्त विवरण से स्पष्ट है कि बाबासाहेब भारत के नव निर्माण, औद्योगीकरण, कृषि विकास एवं सिंचाई, बाढ़ नियंतरण, नदी यातायात तथा बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए विशेष तौर पर प्रयासरत थे जिससे उन्होंने भारत के आधुनिकीकरण की नींव रखी. उन्होंने वायसराय की कार्यकारिणी के श्रम सदस्य के रूप में भारत के औद्योगीकरण और आधुनिकीकरण में जो महान योगदान दिया है, उस के लिए भारत उनका सदैव ऋणी रहेगा.

-एस.आर. दारापुरी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट

We are a non-profit organization, please Support us to keep our journalism pressure free. With your financial support, we can work more effectively and independently.
₹20
₹200
₹2400
Staff Avatar
नमस्कार, हम एक गैर-लाभकारी संस्था है। और इस संस्था को चलाने के लिए आपकी शुभकामना और सहयोग की अपेक्षा रखते है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।