प्रशासन में कॅरियर बनाने आ रहे युवा अवाम को कितना जानते हैं?

प्रशासन में कॅरियर बनाने आ रहे युवा अवाम को कितना जानते हैं?

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सर्विसेज परीक्षा मे सफल होना प्रतिभावान और मेहनती युवाओं का सपना होता है। इस परीक्षा को देश की सबसे मुश्किल प्रतिस्पर्धा माना जाता है जिसकी तैयारी में अभ्यर्थी कम से कम दो तीन वर्ष तो रात-दिन एक किये ही रहते हैं। उन्हें अपनी पढ़ाई करते हुए दीन-दुनिया की कोई खबर नहीं रहती और वे रोजाना लंबे समय तक किताबों, और नोट्स में सिर खपाये रहते हैं। अनेक तो अपने ग्रेजुएशन काल से ही इस परीक्षा की तैयारी में जुट जाते हैं। कुछ प्रतिभावानों को पहली बार में ही सफलता मिल जाती है। पहले प्रयास में असफल रह जाने वाले बहुत से अभ्यर्थी भी निराश नहीं होते। वे उसे अपनी तैयारी का हिस्सा मानते हुए फिर प्रयास करते हुए दूसरे या तीसरे अटेम्पट में सफल भी हो जाते हैं। इसलिए जब सफलता मिलती है तब उनकी और उनके परिजनों की खुशी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। ये खुशी क्यों न हो! वे प्रशासन के प्रमुख हिस्से बनने वाले हैं जिनके अधीन शासन तंत्र चलने वाला है। इस बार के यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा के परिणामों में बदलाव के ऐसे रुझानों भी हैं जिन पर हम सहज ही गर्व कर सकते हैं। लगातार दूसरे साल इस परीक्षा में लड़कियों ने बाजी मारी है। पिछले साल भी टॉप थ्री में लड़कियां थीं। इस बार टॉप फोर में लड़कियां हैं। टॉप 25 में भी 14 लड़कियां हैं। यह परीक्षा ही क्यों सीबीएसई की परीक्षा हो या दूसरी कोई कंपिटीटिव परीक्षाएं हों के परिणाम दर्शाते हैं कि लड़कियां अब आगे आ रही हैं, टॉपर बन रही हैं। यह नया ट्रेंड स्कूली एग्जाम से लेकर यूपीएससी तक साफ नज़र आ रहा है जो आने वाले समय में थमने वाला नहीं है। कठिन प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए बहुत ही ध्यान लगाकर तथा एकाग्रचित्त होकर मेहनत करके अध्ययन करना पड़ता है। लड़कियों की ऊंची सफलता का यह नया ट्रेंड दर्शाता है कि वे ज्यादा फोकस्ड होकर अध्ययन कर रही हैं, और अब आने वाले समय में लड़कों को उनसे अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना होगा।

सिविल सर्विसेज़ की प्रतिस्पर्धी ‘प्रीलिम्स’ परीक्षा के लिए हर साल लगभग चार लाख से अधिक उम्मीदवार आवेदन करते हैं। इस पहली बाधा को पार कर केवल दस हजार ही इसके अगले चरण यानी मुख्य परीक्षा में शामिल हो पाने में सफल हो पाते हैं और अंतिम चरण तक पहुंचते हैं जो कि साक्षात्कार का दौर है, जबकि करीब एक हजार रिक्तियों के लिए पदों को भरा जाना होता है। इन परीक्षाओं के आंकड़ों का खूब अध्ययन होते हैं जो बताते हैं कि आवेदन करने वालों में से 50 प्रतिशत उम्मीदवार ही प्रीलिम्स परीक्षा के लिए उपस्थित होते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि उन्हें नहीं लगता कि उनकी तैयारी पूरी हो पाई है। वे अपना एक अटेम्पट खराब नहीं करना चाहते। मुख्य परीक्षा में बैठने वालों में से लगभग 20 प्रतिशत अंतिम चरण (व्यक्तित्व परीक्षण/साक्षात्कार दौर) में जाते हैं, जबकि उन 20 प्रतिशत में से भी केवल 40 प्रतिशत सेवा में आने की अपनी योग्यता साबित कर पाते हैं। आंकड़ों ने नये अध्ययन यह भी बता रहे हैं कि इस परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों की अब स्ट्रीम बदल रही हैं। पिछले कई सालों तक आईआईटी के छात्र इसमें छाए रहते थे। लेकिन इस बार ‘टॉप फोर’ में पहले, दूसरे और चौथे नंबर पर तीन लड़कियां दिल्ली यूनिवर्सिटी से हैं। अभी तक छात्रों को भी ये लगता था कि आईआईटी से बीटेक या बीई या आईआईएम से एमबीए करने वाले उन पर भारी पड़ते हैं। लेकिन अब ग्रैजुएशन वाले छात्र भी आ रहे हैं तो मेडिकल स्टूडेंट्स भी आ ऱहे हैं। पहले तो 60-70 प्रतिशत से अधिक आईआईटी के छात्र यूपीएससी में दिखते थे लेकिन अब सिंपल ग्रैजुएशन करने वाले भी फोकस्ड पढ़ाई करते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। नई शिक्षा नीति के बाद ग्रैजुएशन की पढ़ाई में बदलाव भी आया है। इससे अब ग्रैजुएशन में छात्रों के पास पहले से ज्यादा मौके हैं। कुछ वर्ष पहले तक जो विद्यार्थी इंजीनियरिंग बैकग्राउंड के होते थे वे केवल इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, मिकेनिकल इंजीनियरिंग, सिविल इंजीनियरिंग जैसे विषय ही लेते थे। यदि वे साइंस बैकग्राउंड से होते तो जूलॉजी, फिजिक्स, कैमिस्ट्री, मैथ्य के ही सब्जेक्ट्स लेते थे। लेकिन अब ग्रैजुएशन के दौरान ही स्टूडेंट्स को लगने लग जाता है कि वे ह्युमैनिटीज या कॉमर्स सब्जेक्ट्स में ज्यादा कर पाएंगे। कॉमर्स से ज्यादा ह्युमैनिटीज ली जाती है, जैसे पॉलिटिकल साइंस, हिस्ट्री, साइकॉलजी, फिलॉसफी। इनमें एक जनरल स्टडी भी होती है जिसमें देश-विदेश के बारे में उनको ज्यादा जानकारी होती है। वास्तव में सिविल सर्विसेज की परीक्षा कोई एक सब्जेक्ट स्पेसिफिक एग्जाम नहीं होता है। ऐसा नहीं है कि किसी विशेष विषय की जानकारी नहीं है, तो कोई यह परीक्षा नहीं दे सकता। अभ्यर्थी जो वैकल्पिक विषय चुनते हैं, उसमें जनरल स्टडी का भी महत्व होता है। ह्युमैनिटीज के जो विषय होते हैं, वे सामान्य जानकारी वाले ज्यादा होते हैं बनिस्बत किसी विशिष्ठ विषय के। अब काफी बड़ा ट्रेंड यह भी देखने में आ रहा है कि ह्युमैनिटीज के विषय वैकल्पिक विषयों के तौर पर अभ्यर्थियों की पसंद बन रहे हैं। पिछले दो-तीन वर्षों से तो ऐसा ही हो रहा लगता है। पिछले साल भी यही देखा गया। काउंसिलर्स का कहना है कि जो टॉपर्स हैं उनमें इंजीनियरिंग बैकग्राउंड वालों ने भी काफी ह्युमैनिटीज के सब्जेक्ट्स लिए हैं। उन्होंने पॉलिटिकल साइंस, कानून तथा इस तरह के सब्जेक्ट्स ज्यादा लिए हैं। इससे कोई इन्कार नहीं करेगा कि संघ सेवा आयोग की परीक्षा में सफल होना प्रत्येक होनहार युवा का सपना होती है।

देखने की बात यह है कि छात्र-छात्राएं बहुत पहले से इस परीक्षा की तैयारी शुरू कर देते हैं। इसमें जाने-माने कैंपस और अच्छे कॉलेजों में दाखिले की उनकी जद्दोजहद शामिल है। साथ-साथ ही स्कूलों की परीक्षाओं से ही ऊंचे नंबर लाने वाली मेहनत की पढ़ाई भी उनके प्रयासों में शामिल होती है। कॉलेजों में ऑनलाइन, ऑफलाइन ट्रेनिंग, टीचर के साथ इंटरेक्शन, बाहर के लोगों के साथ इंटरेक्शन सब शामिल होते है। इसमें कोचिंग संस्थान भी कूद पड़े हैं, जो प्रतिभावान और मेहनती छात्रों में ऐसा आत्मविश्वास भरने का काम करते हैं कि वे परीक्षा क्रेक कर सकते हैं। मगर अभ्यर्थी को असली जरूरत होती है परीक्षा की अच्छी समझ,  तैयारी के लिए प्रभावी अध्ययन योजना, सही मार्गदर्शन, सुव्यवस्थित और सावधानीपूर्वक दृष्टिकोण, अत्यधिक उत्साह और जुनून, दृढ़ता, और कभी हार न मानने वाला जज़्बा जिससे वे प्रारंभिक चरण से अंतिम चरण तक पहुंचते हैं। इंटरव्यू में उनका तेज तर्रार होना काम आता है। वे कितने हाजिर जवाब हैं वह भी उनके चयन में बड़ा मायने रखता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि सिविल सर्विसेज की तैयारी करते हुए युवा कम से कम दो तीन वर्षों के लिए तो दीन-दुनिया, यहां तक कि घर में रहते हुए भी अपने परिवार से दूर हुए रहते हैं और बस तैयारी में लगे रहते हैं। यह उनकी उसी प्रकार की तपस्या होती है जैसी हम पुराणों में ऋषियों के बारे में पढ़ते आए हैं जो संसार से दूर वन में जा कर एकाग्र होकर ध्यान लगाते थे। आज के युवा भी अपने आस-पास के संसार से इसी प्रकार विरक्त रहते हैं और सिर्फ अपनी पढ़ाई पर केंद्रित रहते हैं। उन्हें बाहर की दुनिया की उतनी ही खबर रहती है जितनी उन्हें अपनी इस कठिन परीक्षा में ऊंची सफलता के लिए जरूरी लगती है। ग्रैजुएशन के बाद उनका यही लक्ष्य रहता है कि उन्हें यूपीएससी परीक्षा क्रेक करनी है। ग्रैजुएशन में दाखिला लेते ही अनेक विद्यार्थियों का कोई न कोई लक्ष्य होता है कि उसे क्या करना है। और अपने उस टारगेट को लेकर वो पहले दिन से ही लग जाते हैं। ग्रैजुएशन की पढ़ाई को वो अपने भावी लक्ष्य की राह के रूप में देखते हैं। सारी मशक्कत के बाद वे लोग उस प्रशासनिक सेवा में प्रवेश करते हैं जिनसे इस देश की 140 करोड़ जनता को अच्छा प्रशासन मिलने की अपेक्षा होती है। ऐसे सवाल पूछने वाले लोग भी कम नहीं हैं कि सिविल सर्विसेज में चयनित युवाओं में किताबी बौद्धिक योग्यता तो खूब होती है किन्तु क्या वे हिंदुस्तान के उस अवाम को जानते हैं जिनके बीच उन्हें प्रशासनिक अधिकारी के रूप में जाना है और अपनी सेवा देनी है? सच तो यह है कि इन काबिल युवाओं का वास्तविक जीवन का कोई एक्सपोज़र नहीं होता। उनकी सफलता का वैभव उन्हें कुलीन बनाता है और आमजन से दूर रखता है। असल जीवन के बारे में वे अपने सेवाकाल में ही सीखते हैं। उनमें इतनी प्रतिभा और क्षमता तो होती है कि वे तुरंत सीख लें। इसीलिए प्रशासनिक अधिकारी को किसी भी विभाग का दायित्व दे दिया जाता है तो वे उसे निभा जाते हैं। उस ज़माने में जब प्रशासनिक सेवा पर कम उंगलियां उठती थीं एक प्रमुख अधिकारी की कही बात याद आती है कि प्रशासनिक अधिकारी की असली ताकत यह नहीं होती कि वह किसी का जायज काम कर सकता है, बल्कि यह होती है कि वह किसी का जायज काम नहीं होने भी दे सकता है। यही हमारे लोकतान्त्रिक व्यवस्था की विडंबना रही है। प्रशासनिक सेवा का काबिल अधिकारी अनुभव से अवाम की सेवा करना नहीं सीखता बल्कि अफ़सरी सीखता है। वह अपनी तरक्की तथा अन्य लाभ पाने के जतन करना सीखता है जिसमें अब तो उसकी राजनैतिक आकांक्षाएं भी दिखाई देने लगी हैं।

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राजेन्द्र बोड़ा
वरिष्ठ पत्रकार एवं विश्लेषक है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।