
हम दक्षिण भारत में भी राहुल गांधी की यात्रा में गए और अब मध्य प्रदेश में भी हैं। क्या फर्क है दोनों जगह? दक्षिण में लोग जोश और उत्सुकता में राहुल को देखने आ रहे थे। यात्रा का नया प्रयोग उनमें जिज्ञासा पैदा कर रहा था। भा रहा था। लेकिन मध्य प्रदेश में उनकी यात्रा में लोग उम्मीद ढुंढ रहे हैं। वे इसे पर्यवेक्षक की तरह नहीं देख रहे। इसे महसूस कर रहे हैं। इसे राजनीतिक परिवर्तन की शुरूआत मान रहे हैं।
यह अंतर है दक्षिण और उत्तर भारत का। वहां हर जगह क्षेत्रीय दल हैं। केरल में लेफ्ट है। मगर उसकी पहचान वहां राष्ट्रीय दल से ज्यादा क्षेत्रीय दल की बन गई है। कांग्रेस वहां हर जगह अखिल भारतीय पार्टी है। लोग राष्ट्रीय पार्टी और क्षेत्रीय पार्टी के बीच तुलना करते हैं। वहां पिछले कुछ समय से क्षेत्रीय अस्मिताओं के हावी होने से कांग्रेस कमजोर हुई है। इस यात्रा ने उसमें लोगों की रूचि फिर से बढ़ा दी। लेकिन उत्तर में जहां की शुरूआत अभी मध्य प्रदेश से ही हुई है लोगों के लिए तुलना भाजपा और कांग्रेस में है।
महू जो संविधान के निर्माता बाबा साहब आंबेडकर की जन्मभूमि है वहां राहुल गांधी के प्रवेश के समय बिजली गुल हो गई। लोग चिल्लाने लगे। रामप्रसाद धोती कुर्ता पहने एक किसान थे। कहने लगे कि सिंचाई के टाइम और किसी कांग्रेस के नेता के आने पर यह बिजली जरूर काटते हैं। कांग्रेस ऐसा नहीं करती थी। भाजपा को पता नहीं क्यों दूसरों को सताने में मजा आता है।
केरल में यात्रा पहुंचने पर लेफ्ट के कुछ लोगों ने एक जगह यात्रा रुकने पर एतराज किया। कांग्रेस दूसरी जगह चली गई। मगर जनता की तरफ से उस पर कुछ प्रतिक्रिया नहीं आई। मगर यहां बिजली चले जाने पर कांग्रेस के नेता भी मंच से दहाड़े और आम जनता ने भी आक्रोश दिखाया। यह अंतर है। यहां मध्य प्रदेश में लोग यात्रा के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ रहे हैं। और जब लोगों का जुड़ाव होता है तो नेता पर भी इसका असर होता है। ढाई महीने की यात्रा में राहुल ने कई भाषण दिए। बहुत अच्छा बोले। मगर शनिवार का महू का भाषण सबसे उपर था। यहां राहुल पूरे फार्म में थे।
गांधी, आंबेडकर का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे उनको सामने से प्रणाम और पीछे से वार करते हैं वैसा ही आज भी कर रहे हैं। वे सामने से कुछ नहीं कर सकते। अगर कभी कोशिश भी की तो जनता की आवाज उन्हें एक मिनट में रोक देगी। और जनता एवं नेता में कैसे आपसी तंतु जुड़े होते हैं, रिश्ता बन जाता है यह वहां दिख गया। राहुल के मंच पर के आने से पहले ही दो बार बिजली कटी। और जनता ने इसके खिलाफ इतनी जोरदार आवाज उठाई कि राहुल के आने से पहले बिजली आ गई। राहुल को शायद बिजली जाने का पता भी नहीं होगा क्योंकि वे उस समय आंबेडकर मेमोरियल में थे। जो आर्मी इलाके में है। और वहां बिजली नहीं जाती है। लेकिन राहुल ने अनायास ही सभा में आकर कहा कि सामने से वार करोगे जनता मुकाबले में आ जाएगी। और बिजली कटने के बाद वह उस तेवर में आ चुकी थी।
ढाई महीने से ज्यादा की यात्रा ने राहुल को जनता से ऐसा जोड़ दिया है कि यात्रा में भी और मंच से भी उसके हिसाब से एक्ट करने लगे हैं। शनिवार को महू में उन्होंने कांग्रेस के कार्यक्रमों में कई सालों से बड़ा सा तिरंगा लहराने वाले दिनेश को अचानक नाम से पुकार कर मंच पर बुला लिया। और जब वह मंच पर आकर झंडा लहराकर जाने लगा तो उसे रोक लिया। कहा दिनेश यहीं रुको। जनता को यह बहुत पसंद आया। युवा मोहन सिंह का कहना था कि लोग बस इतनी सी पहचान और सम्मान चाहते हैं।
रविवार को इन्दौर पहुंचने से पहले उन्होंने बुलट चलाई। यात्रा के साथ चल रहे लोगों को बड़ा मजा आया। वे बुलट के साथ साथ दौड़े। जनता से जुड़ने के यह तरीके राहुल यात्रा में सीख गए हैं। ऐसा नहीं है कि राहुल पहले लोगों से नहीं मिलते थे। हम 2004 से पहली बार जब अमेठी में प्रियंका उनका लोगों से परिचय कराते हुए कह रही थीं कि यह मेरे बड़े भाई हैं, अब आप लोगों के बीच ही रहेंगे तब से कवर कर रहे हैं। अमेठी के गांव गांव से लेकर छत्तीसगढ़, उत्तराचंल, बुंदेलखंड, दक्षिण में चंदन तस्कर वीरप्पन के ठिकाने वाले घने जंगलों के इलाके से लेकर रातों को दलितों की बस्ती तक हर जगह उन्हें देखा। राहुल आत्मियता से मिलते थे। लोगों की बात सुनते थे। मगर लोगों के साथ वह उस तरह घुलमिल नहीं पाते थे जैसा इन्दिरा गांधी करती थीं। वे गांव वालों में गांव की महिला की तरह हो जाती थीं।
जिस बेलछी ने दो साल के अंदर 1980 में जनता दल की सरकार पलट दी थी वहां जब इन्दिरा गांधी हाथी पर बैठकर चढ़ी नदी पार करके रात में भीगती हुई पहुंची थी तो पीड़ित परिवार की महिलाएं उन्हें भीगा देखकर फौरन अपने घर (झौंपड़ी) के अंदर ले गईं। और सुखे कपड़े पहनाकर उन्हें वापस बाहर लाईं। इन्दिरा गांधी इस तरह लोगों के साथ कनेक्ट हो गईं थीं कि बेलछी में उन दलित परिवार की महिलाओं को भी इन्दिरा का अपने कपड़े देने में कुछ नहीं लगा और इन्दिरा जी को पहनने में।
यही अब राहुल करने लगे हैं। यात्रा के अनुभव ने उन्हें लोगों से ऐसा जोड़ दिया है कि जनता क्या चाहती है यह वह अब करने लगे हैं। मंच पर थोड़ा सा अभिनय करके भी। महू में उन्होंने दिखाया। डा. आंबेडकर के चित्र के सामने कि भाजपा के लोग सामने से ऐसे हाथ जोड़ते हैं। और फिर इशारा करके बताया कि पीछे से ऐसे छूरा घोंपते हैं। जनता को यह अंदाज बहुत पसंद आया। और पसंद आने से बड़ी बात यह है कि समझ में आया। सभा के बाद आदमी औरतें जो काफी बड़ी तादाद में थीं यह बातें करते रहे कि गांधी को भी धोखे से मारा था और राहुल के बारे में भी पीठ पीछे बातें करते रहते हैं।
मध्य प्रदेश से राहुल की यात्रा नए मोड़ पर है। यहां राजनीतिक चुनौतियां बहुत हैं। भाजपा का दो दशक का जमा हुआ शासन है। राहुल इसकी गहरी जम चुकी जड़ों को समझ रहे हैं। इसीलिए वे भाजपा और आरएसएस पर कड़े प्रहार कर रहे हैं। यहां उन्होंने पहली बार बोला कि सेना में जहां मेरिट से हमेशा भर्ती होती थी वहां भी संघ और भाजपा अपने लोगों की ही भर्ती कर रही है। युवाओं पर इस बात का बड़ा असर हुआ। क्योंकि राहुल ने इसे एक पूरे सिक्वेंस में पेश किया। उन्होंने कहा कि पकोड़े भी बेचने की स्थिति में नहीं छोड़ा। जो प्रधानमंत्री ने कहा था कि पकोड़े बेचो। वह भी जुमला निकला। स्थिति यह बना दी कि बेरोजगारी के कारण कोई खरीदने, खाने वाला भी नहीं। राहुल ने कहा कि रोज यात्रा में युवा मिल रहे हैं। एक ही दुःख के साथ कि मां बाप ने लाखों रुपया पढ़ाई में लगा दिया। डाक्टर, इंजीनियर, वकील बना दिया। मगर नौकरी नहीं है। प्रोफेशनल मजदूरी कर रहे हैं। सेना में भी चार साल की भर्ती कर रहे हैं। वहां से आकर भी मजदूरी करना होगी।
युवा जो राहुल की सभा में बड़ी तादाद में आए थे। सभा के बाद कहने लगे कि राहुल बिल्कुल सही कह रहे हैं। वे डिग्रियां लेकर बेरोजगार घूम रहे हैं। मजदूरी भी नहीं मिल रही। पढ़े लिखे लड़के लड़कियों को कोई मजदूरी के लिए भी नहीं रखता। राहुल का मैसेज अब लोग पकड़ने लगे हैं। यह यात्रा की बड़ी सफलता है।
