कमल शुक्ला। गांव में अचानक बिना ग्राम सभा की सहमति से गांव की खेती की जमीन पर लगाए गए कैंप के विरोध व गांव के मूलभूत समस्याओं की मांग को लेकर 12 मई को चालू हुए सिलगेर आंदोलन को आज 100 दिन पूरे हो चुके हैं, इस बीच में 17 मई को हुए जनसंहार में मारे गए 4 युवाओं और एक अजन्मे बच्चे की मौत ने इस आंदोलन को और सुलगा दिया । आंदोलन की आवाज देशभर में गुंजाने की कोशिश हुई, राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने सिलगेर आंदोलन को ज्यादा जगह नहीं दी, फिर भी इस आंदोलन से केंद्र और राज्य सरकार इतना डर चुकी है कि कोरोना, धारा 144 व धारा 188 तथा अन्य कई बहाने बनाकर सिलगेर जाने के सभी रास्ते पत्रकारों व जन संगठन से जुड़े लोगों के लिए बंद कर दिया गया है ।
बस्तर की बहुचर्चित समाजसेवी #सोनी_सोरी को ही सिलगेर जाने की अनुमति दी जा रही है, उनके नेतृत्व में स्थानीय प्रशासन और मुख्यमंत्री तक के बीच में कई चरण की वार्ता अब तक हो चुकी है मगर अब तक हासिल कुछ भी नहीं आया है आदिवासियों को लगातार अब तक सरकार की तरफ से केवल दंडाधिकारी जांच का झुनझुना पकड़ाया गया है । 17 मई के जनसंहार के तुरंत बाद स्थानीय प्रशासन ने दंडाधिकारी जांच की घोषणा कर दी थी और एक महीने के अंदर उसका रिपोर्ट सौंपने का वादा भी किया था । यही वादा तब फिर दोहराया गया जब सोनी सोरी के नेतृत्व में मूलनिवासी बचाओ मंच के 10 लोगों की कमेटी के सामने आंदोलन स्थल तक पहुंचे 8 विधायकों और एक सांसद की टीम ने भी दोहराया था।
इस बीच 10 जून को यह अफवाह उड़ा दिया गया कि सिलेगर के आदिवासियों ने आंदोलन वापस लेने अथवा सिलेगर के जगह #सुकमा जिला मुख्यालय में आंदोलन करने का निर्णय लिया गया है । जिसका बाद में मूल निवासी बचाओ मंच ने खंडन कर जानकारी दी कि आंदोलन सिलगेर में ही जारी रहेगा जो अब तक जारी है । इस बीच लगातार कई नाटकीय घटनाक्रम घटे जिसमें एक घटनाक्रम मुख्यमंत्री से सोनी सोरी के नेतृत्व में मूल निवासी बचाओ मंच के कई कार्यकर्ता व आदिवासी समाज के नेता मुख्यमंत्री से मिलने रायपुर भी पहुंचे । इससे पहले #बीजापुर बीजापुर जिला मुख्यालय से उनकी बात वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से भी मुख्यमंत्री से हुई थी। वहां उल्टे मुख्यमंत्री महोदय ने जो जांच एक माह में होने की घोषणा पहले की गई थी उसे 6 माह के लिए बढ़ा दिया, और आंसू गैस लाठी और गोली खा चुके सिलेगर के आंदोलनकारियों को खाली हाथ भेज दिया।
आज आंदोलन के सौवे दिन होने के उपलक्ष्य में भारी भीड़ के साथ फिर से कैंप के सामने प्रदर्शन किया गया जिसमें हजारों की संख्या में आसपास के ग्रामीण शामिल हुए, समाजसेवी सोनी सोरी ने भी इसमें अपनी भूमिका निभाई । मगर दूसरी ओर सरकार ने आज सिलगेर के आंदोलन को लेकर अपने पहले से तयशुदा षड्यंत्र उजागर कर दिया । ज्ञात होगा कि छत्तीसगढ़ सरकार के एक कैबिनेट मंत्री रवीन्द्र चौबे व प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मोहन मरकाम पहले ही सार्वजनिक रूप से घोषणा कर चुके हैं कि सिलेगर का आंदोलन माओवादियों से प्रभावित है । इस तथ्य को साबित करने के लिए जनसंहार के लिए गठित दंडाधिकारी जांच की कमेटी पूरी तरह से प्रशासन और पुलिस के दबाव में आकर एक पक्षीय बयान उन लोगों से करवा रही है जिन्हें पुलिस ने पहले ही आंदोलन के दौरान पकड़ कर प्रताड़ित करके अपने पक्ष में बयान करवा दिया था।
भूमकाल समाचार को दंडाधिकारी जांच में प्रस्तुत दो लोगों के बयान आज जो प्राप्त हुए हैं उनमे एक रामा पुनेम पिता बक्का पुनेम , निवासी टेकलगुड़ा ( हाल निवास थाना हीरापुर ) यह वही ग्रामीण है जिसे आंदोलन में शामिल होते आते समय दर्जनों लोगों के साथ पुलिस ने दौड़ा कर पकड़ा था, जिसकी खबर भूमकाल पहले ही प्रकाशित कर चुका है । दूसरा बयान ग्राम सिलेगर के कोरसा नर्सिंग पिता कोरसा बुधरा का है, यह भी वर्तमान में अघोषित रूप से तर्रेम थाने में पड़ा हुआ है । दोनों के बयान हुबहू है और दोनों के बयान घटनास्थल से कहीं और लिया गया है जबकि सिलगेर आंदोलनकारियों ने सरकार के पास मांग रखा था कि दंडाधिकारी जांच घटनास्थल पर आकर ही किया जाए जिसे तब सरकार ने माना भी था।
सुनीता पोटटामी, रघु मिडियामि, भीमा सोढ़ी, दुल्ला राम कवासी, सुरेश अवलम जिन्होंने अब तक इस आंदोलन का नेतृत्व करने में बड़ी भूमिका निभाई है । साथ ही यह वही लोग हैं जिन्होंने जो कलेक्टर से मिलने के टीम में शामिल रहे, विधायकों व सांसदों से मिलने की टीम में शामिल रहे । यहां तक कि मुख्यमंत्री से भी मिलने पहुंचे मगर अब इन्हें ही, दंडाधिकारी जांच को हथियार बनाकर नक्सली साबित करने के लिए तुली हुई है सरकार । सुनीता पोटामी तो प्रसिद्ध मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल द्वारा गठित फैक्ट फाइंडिंग टीम की सदस्य भी रही है । कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ सरकार की मंशा सिलगेर जनसंहार मामले में आदिवासियों को न्याय देने के बजाय आंदोलनकारियों को ही जेल में ठुसने की लग रही है।