अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवसः नारी के तीन स्वरूप

या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस और रविवार 7 मार्च को एक प्रतिष्ठित अखबार ने महिलाओ के प्रति लोगों की सोच बदल कर उनके शक्ति स्वरूप को पहचानने और नव समाज निर्माण में उनकी सशक्त भूमिका पुन: स्थापित करने में उनका योगदान किसी से कम नहीं रहा है। वही एक सशक्त समाज की निर्मात्री हो सकती है। हमारी पौराणिक संस्कृति भी महिलाओं का सम्मान करने के संस्कार सृजित करने का संदेश देती आई है। सृष्टि रचयिता विधाता अपने बाद सिर्फ इसी को सृजन का एकाधिकार देकर ईश्वर ने सम्पूर्ण मानवता को अनुपम सौगात दी है।

हमारे शास्त्र कहते है कि प्रकृति और पुरुष मिलकर सृष्टि को संचालित करते हैं। घर में कन्या या पुत्री का होना भी, विचार और भावनाओं को प्रभावित करता है। नारी के तीन स्वरूप है-माँ शक्ति स्वरूपा माया। माँ सात्विक भाव है और शक्ति रजस है तथा माया भाव तमस है। लेकिन आज मातृत्व के प्रति क्षीण सा होता समाज में दिखता है। अगर मैं यह कहूं कि हम अपनी पौराणिक संस्कृति और संस्कारों को बिसरा कर होड़ की दौड़ में आ खड़े हुए है। स्त्रियों को समानता के अधिकार को अपने-अपने ढंग से परिभाषित कर जीने की राह पकड़ ली है। जबकि स्त्री स्वरूप में नारी रूप और मां रूप में नारी ही है जिसके व्यक्तित्व अलग-अलग है। भारत में कहते है- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता। लेकिन आज पाश्चात्य, शिक्षा-साहित्य, संस्कृति और संस्कारों से सराबोर नारी को एक भोग की वस्तु बना दिया है। व्यक्ति परिवेश से बनता बिगड़ता है। वरना स्त्री की कोख में ही नौ माह रहकर जन्म के साथ ही संसार में आंखे खोल कर उसकी आंचल की छाव में प्रथम शिक्षा संस्कृति और संस्कार ग्रहण कर भी किसी स्त्री से अभद्र व्यवहार कर सकता है। यह तो हमारी संस्कृति ऐसे संस्कार नहीं देती।

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वाई.के. शर्मा
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