वैसे तो भाजपा के राज वाले मध्यप्रदेश का नारा है कि एमपी गजब है, लेकिन यह नारा भाजपा के एक दूसरे राज्य उत्तरप्रदेश पर भी माकूल बैठता है जहां पर एक लोक गायिका नेहा सिंह राठौर को पुलिस ने एक नोटिस दिया है कि उनके पोस्ट किए गए एक गाने को लेकर समाज में दुश्मनी और तनाव की हालत उत्पन्न हुई है इसलिए उस बारे में वे तीन दिन के भीतर स्पष्टीकरण पेश करे। ‘यूपी में का बा’ शब्दों से बने हुए इस गाने में इस लोक गायिका ने उत्तरप्रदेश में आज फैली हुई बदअमनी पर लोकगीतों के तल्ख अंदाज में सीधे सपाट सवाल किए हैं जिनमें सीएम से लेकर डीएम तक से पूछा गया है कि अभी-अभी कानपुर में एक झोपड़ी में जलकर मरी मां-बेटी, और उस पर चलाए गए बुलडोजर पर उनका क्या कहना है। लोगों को यह घटना याद ही होगी कि अभी पिछले ही हफ्ते अतिक्रमण हटाने वाले दस्ते ने जब एक झोपड़ी को हटाने की कोशिश की, तो दहशत में भरी हुई मां-बेटी ने आग लगाकर जान दे दी, या किसी ने उन्हें जलाकर मार डाला, अफसरों ने आग लगने या लगाने के बाद झोपड़ी पर बुलडोजर भी चला दिया।
उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश में बुलडोजर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पोस्टर लगाकर चलते हैं, और योगी की साख वहां पर बुलडोजर बाबा के रूप में खुद सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी ही फैला रही है। ऐसे में एक लोक गायिका को उसके सवाल भरे गाने पर इस तरह का पुलिस नोटिस देना और लोगों को हैरान कर सकता है, लेकिन जिन लोगों ने उत्तरप्रदेश पुलिस के काम करने के तरीके देखे हैं, उन्हें यह आम बात लग सकती है, फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार मरने, मारने, या गाने में सवाल करने वाले कोई भी गैरहिन्दू नहीं हैं। सत्ता से तीखे लेकिन सौ फीसदी जायज सवाल करने वाली लोक गायिका अपनी सादगी से और अपने सरल तरीकों से पहले भी लोगों को मोह चुकी है, और जाहिर है कि उसकी लोकप्रियता से परेशान योगी सरकार ने पुलिस के हाथों यह कार्रवाई चालू करवाई है। जिस अंदाज में पुलिस की टीम यह नोटिस देने पहुंची थी, और जिस तरह से कई फोन वीडियो बना रहे थे, उससे समझ पड़ रहा था कि सरकार दहशत में है। इस गायिका ने यह सवाल किया है कि राज्य के हालात पर वह सरकार से सवाल नहीं करेगी, तो क्या विपक्षी समाजवादी पार्टी से सवाल करेगी?
पुलिस के किसी थाने की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर जैसी समझ हो सकती है, और योगीराज में पुलिस का जिस तरह से आम इस्तेमाल हो रहा है, उसके मुताबिक ही नेहा सिंह राठौर से पूछा गया है कि उनके गाने से समाज पर पडऩे वाले प्रभाव से वे वाकिफ हैं या नहीं? पुलिस ने इससे समाज में दुश्मनी और तनाव पैदा होने का अपना निष्कर्ष जांच के पहले ही सामने रख दिया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर यह एक बहुत ही घटिया और ओछा हमला है। अभी कुछ दिन पहले ही हमने देश के कुछ दूसरे राज्यों और दूसरे नेताओं के आलोचना के खिलाफ अभियान के बारे में लिखा था, और उन राज्यों की पुलिस की हरकतों को भी धिक्कारा था।
लोगों को याद होगा कि भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा द्वारा फिल्म पठान के खिलाफ छेड़े गए अभियान के संदर्भ में बड़ी कड़ी बात कही थी, और उसके बाद से ही नरोत्तम मिश्रा भी शांत हैं, मीडिया से दूर हैं, फिल्मी विवादों से दूर हैं। लेकिन एक लोक गायिका के सवालों से डरकर योगी सरकार जिस तरह की हरकत कर रही है, वह उसकी मजबूती को खोखला साबित कर रही है। यह लोक गायिका सोशल मीडिया के कई किस्म के प्लेटफॉर्मों पर भारी लोकप्रिय है, और उसकी शोहरत में जो कमी रह गई होगी, वह अब योगी पुलिस ने पूरी कर दी है। हमें इस बात में जरा भी शक नहीं है कि इस लोक गायिका का यह गाना देश की किसी भी अदालत में जुर्म साबित नहीं किया जा सकेगा, लेकिन आज सरकारों की दिलचस्पी किसी जुर्म को साबित करने में नहीं रहती है, बल्कि मुकदमेबाजी में फंसाकर जिंदगी मुश्किल करने में जरूर रहती है।
आज देश में बहुत से पत्रकार, बहुत से दूसरे लोग, कलाकार, फिल्मकार इसी तरह मामलों में फंसाए जा रहे हैं, और फिर सरकार अदालतों में उन मामलों को किसी किनारे ही नहीं पहुंचने देती। पूरी तरह बदनीयत से किए जा रहे ऐसे हमले देश के बाकी हास्य कलाकारों को, या बाकी कार्टूनिस्टों को डराने में कामयाब जरूर होते हैं, और सत्ता की नीयत यही रहती है कि असहमति को दहशत से, और पुलिसिया ताकत से कुचल दिया जाए। सत्ता की ऐसी गुंडागर्दी का मुकाबला देश की जनता बेहतर तरीके से कर सकती है, और उसे ऐसे गाने, ऐसे कार्टून, ऐसी खबरें, ऐसे वीडियो या डॉक्यूमेंट्री अधिक से अधिक फैलाने का काम करना चाहिए, ताकि उनका मकसद पूरा किया जा सके। उत्तरप्रदेश सरकार अपनी जितने किस्म की फजीहत करवा सकती थी, उससे कुछ अधिक हद तक फजीहत अब इस एक मामले से होगी। आने वाले दिनों में हो सकता है कि ये आंकड़े सामने आए कि इस एक पुलिस नोटिस से इस लोक गायिका के चाहने वाले सोशल मीडिया पर और कितने बढ़े हैं, और यह बढऩा ही लोकतंत्र की कामयाबी होगी।