सी. एम. जैन : फलाना सरकार जाने के बाद यह होगा या ढिकाना सरकार आने के बाद यह होगा वह होगा ऐसे ही ख़याली पुलाव पकाते रहे तो आज पांच किलो अनाज पाने वाली जनता ज्यादा से ज्यादा सवा पांच किलो अनाज तक पहुंच जाएगी और आने वाली पीढ़ी अपने ही माँ बाप से सवाल करती रहेगी कि अपने समय रहते हमारे भविष्य के लिए कुछ क्यों नहीं किया!
भारत को आज़ाद हुए 70 वर्ष हो गए लेकिन जनता आज़ादी के दिन से नेताओं की गुलाम बनकर जीवन बसर कर रही है समाज का हर तबक़ा अपने नेता से उम्मीद करता है कि जब वह सत्ता में आएगा तब फलाना-ढिकाना काम करेगा, नेता भी ऐसे ही वादे करते है। सवाल यह है कि अपने नेता के सत्ता में आने का इंतजार ही क्यों? और सिर्फ अपने समाज से वादा भी क्यों? क्या किसी सरकार की इतनी मजाल है कि वह सवासो करोड़ जनता की बात को नज़र अंदाज़ कर दे? हां आवाज़ अगर धर्म, जाती, समाज मे बटी हो तो सरकार के लिए जनता की बात को नजर अंदाज करना आसान होगा, क्यों कि तब संख्या कम होगी।
कहने का मतलब यह है कि अपनी सरकार से उम्मीद करना और अपनी सरकार बनने का इंतजार करना मूर्खता है, क्यों कि यदि सेवाओ करोड़ एक नही तो कोई न कोई तबका ऐसा रह ही जाएगा जो अपनी सरकार बनने का इंतजार करता रहे और बुढ़ा होकर दुनिया से चला जाए। समझदारी तो किसी भी सरकार से काम करवाने की कुबत रखने में है और यह तभी होगा जब सवासो करोड़ किसी भी सरकार को अपनी सरकार माने तथा एक साथ रहे, न कि धर्म, जाती, समाज मे बंट कर।
जनता 2024 की और क्यों देख रही है यह समझ से परे है। प्रत्येक 5 साल में चुनाव होता है चुनाव होते रहेंगे लेकिन क्या जनता के काम और जनता का विकास चुनाव और चुनाव से जितने वाली सरकारें तय करेगी? इस सवाल पर अब जनता को स्वयं सोचना चाहिए, अपने लिए नही तो अपने बच्चो के भविष्य के लिए, क्यों कि वही है जो उन्हें इस दुनिया मे लाए है तो फिर जवाब सरकार क्यों दे इंतज़ार सरकार का क्यों?
सरकार का काम है 5 साल राज करना लेकिन यह तब मुमकिन है जब जनता सरकार को राज करने की अनुमति दे या आज़ादी दे! जनता को अपनी ताक़त पहचानी चाहिए लेकिन ताकत पहचाने के लिए जनता को जनता बनना होगा और जनता कभी बटी हुई नही हो सकती, जो बटी है तो वो जनता नही। धर्म, जाती, समाज अपनी जगह ठीक है लेकिन जब बात जनता की हो और आने वाली पीढ़ी की हो तो बंटकर या बांटकर किसी को कुछ हांसिल नही हो सकता।
अंगेजो ने बांटकर ही राज किया था और आज सरकारें भी बांटकर राज कर रही है, अंग्रेजों का ज़माना देखने वाले कितने धरती पर है यह तो पता नही, लेकिन सरकारों के राज को देखने वाले हम सब है। सब, सब देख रहे है, सब जानते है की क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है और कौन करवा रहा है लेक़िन देखकर अनदेखा करना भी अब आदत बन गई है। कारण फ़िर वही हम बटे है इस लिए सोचते है कि शुरुआत कोई और करें। यह सोच और परंपरा आने वाली पीढ़ी के लिए लखबे की तरह एक घातक बीमारी साबित होगी और इसका एक ही इलाज़ है कि सरकार से काम करवाना सिख जाए, फिर चाहे किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न हो, कोई फरक नही पड़ता!