नागदा। जब सैंयां कोतवाल तो फिर काहे का डर। मतलब जब बडे़ -बडे़ राजनेतां एवं अफसरों की मेहरबानी हो तो किसी प्रकार से डरने की आवश्यकतां नहीं है। नगरपालिका नागदा जिला उज्जैन में लाखों का ब्याज माफ करने का एक खेल सामने आया है। यह रियायत देश के जाने माने बिड़ला घराना के ग्रेसिम उद्योग प्रबंधन को दी गई।
जनता समय पर टैक्स या अपनी सरकारी सुविधाओं के बदले राशि को निर्धारित समय पर जमा नहीं करें तो, उन से पैनल्टी वसूली जाती है साथ ही उपलब्ध सुविधाओं से भी जनता को मोहताज कर दिया जाता । लेकिन बिड़ला घराना के ग्रेसिम उद्योग नागदा पर प्रशासन के अफसर इतने मेहरबान हुए कि 44 माह बाद में विलंब से भरी गई टैक्स राशि पर कोई ब्याज नहीं लिया। वह भी पाचं आसान किश्तों में लगभग सवा वर्ष की लंबी समय अवधि में जमा करने की अनुमति दी गई। बकाया राशि का आंकड़ा सुनकर जनता चौक जाएगी। ग्रेसिम उद्योग और उसके सहयोगी संस्थान पर परिषद नागदा का बतौर टैक्स 3 करोड़ 5 लाख 94 हजार 260 रूपए बकाया था। जिसको महज दो अफसरों ने मिलकर अनुबंध के तहत इस राशि का ब्याज माफ कर दिया। यह पूरा मामला 2020 का है। हाल में यह पूरा मामला सामने आया है। अनुबंध दस्तावेजों पर बतौर तत्कालीन प्रशासक आशुतोष गोस्वामी और तत्कालीन प्रभारी सीएमओं अशफाक मोहम्मदखान के हस्ताक्षर है। श्री गोस्वामी इन दिनों नागदा के एसडीओ( राजस्व) है। अब उनका कहना हैकि कोरोना काल के कारण ऐसा किया गया। यदि कोई ़त्रुटि हुई है तो ब्याज वसूला भी जा सकता है।
उद्योग पक्ष की और से अनुंबंध पर ग्रेसिम के वरिष्ठ उपाध्यक्ष( फायनेंस) महावीर जैन ने हस्ताक्षर किए है। इस अनुबंध की प्रति सुरक्षित है। अन्य संस्थानों लैंक्सेस, ग्रेसिम केमिकल डिवीजन, गुलब्रांड कैटिलिस्ट, डायमंड क्लोरिन, एवं क्लीरेंट केमिकल आफ इंडिया को बतौर पार्टी शामिल किया गया। इन सबकी और से महावीर जैन को अधिकृत किया गया।
यह है मामला : ग्रेसिम उद्योग प्रबंधन एवं नपा के बीच टैक्स को लेकर प्रत्येक 5 वर्ष के अंतराल से एक अनुबंध होता है। जिसके तहत प्रत्येक तिमाही में ग्रेसिम पं्रबंधन टैक्स राशि जमा करते हैं। अभी तक के अनुबंधों के मुताबिक प्रत्येक वर्ष 10 प्रतिशत राशि का इजाफा होता है। इस प्रकार का पहला अनुबंध ग्रेसिम व नपा नागदा के बीच 1975 में हुआ था। उसके बाद लगतार राशि को बढाने के लिए अनुबंध समय -समय पर होते रहें। लेकिन पांचवे क्रम का अनुबंध 31 मार्च 2017 को समाप्त हुआ । जोेकि 1अप्रैल 2017 से 31 मार्च 2022 तक के लिए निर्धारित था। उक्त तिथि मतलब 1 अप्रैल 2017 के बाद लगातार 44 महिनों तक उद्योग प्रबंधन ने कोई राशि जमा नही की। ना अनुबंध को कराने के लिए रूचि दिखाई। बाद में किसी मामले में उद्योग प्रबंधन उलझा तो यह अनुबंध 26 नवंबर 2020 को संपादित किया। इस अनुबंध में यह भी लिखा गया कि 1 अप्रैल 2017 से 31 दिसंबर 2020 तक आउट स्टेडिंग की राशि 3 करोड, 5 लाख 94 हजार 260 रूपए है। इस राशि को बिना ब्याज के वसूलने के लिए 5 आसान किश्तों में सहमति दोनों पक्षों में बनी। एक पक्ष ग्रेसिम पं्रबंधन तथा सहयोगी संस्थान तथा अन्य उद्योग बने। दूसरा पक्ष प्रशासक एवं सीएमओं थे। इस अनुबंध के बाद सातवा अनुबंध 16 मार्च 2022 में फिर किया है इस अनुबंध को प्रशासन ने 8 माह बाद के बाद भी सार्वजनिक नहीं किया है। कई प्रकार की खामियां इस में भी सामने आ रही हैं।
पर्दे की पीछे की यह कहानी : ग्रेसिम के खिलाफ बिड़ला ग्राम में बिना अनुमति के निर्माण को लेकर एक मामला सुर्खियों में आया था।इसके खिलाफ नपा ने आवाज उठाई। पहले तो नपा ने नोटिस दिया। फिर नपा ने ग्रेसिम का निर्माण तोड़ने की चेतावनी प्रबंधन को लिखित में दे डाली । ताबड़तोंब में ग्रेसिम प्रबंधन कोर्ट में स्टे के लिए पहंुच गया। स्टे मिल भी गया, लेकिन प्रकरण जारी रहा। इधर , ग्रेसिम ने तर्क दिया हम तो एक अनंुबंध के तहत नपा को टैक्स देते हैं। इसलिए निर्माण के हकदार है। इन सभी बातो ंके प्रमाण इस लेखक के पास सुरक्षित है। मजेदार बात यह हैकि जब यह वाक्या हुआ तब दोनों पक्षों के बीच टैक्स का अनुबंध लगभग 42 माह से डैड पड़ा था।महिनों से ग्रेसिम ने टैक्स नही भरा था। तब अनुबंध का नवीनीकरण करने की बात आई। प्रशासन के तत्कालीन स्थानीय जिम्मेदार अधिकारी ने अनुबंध पर हस्ताक्षर करने से हाथ खिंच लिए। कारण कि वे एक परिपक्कव एवं सीनियर अधिकारी थे। वे जानते थे इस अनुबंध का दूरगामी परिणाम उनके लिए घातक बन सकता है। बताया जा रहा हैकि इस प्रकरण में यहां के एक बडे़ राजनेता ने मोर्चा संभाला और जिम्मेदार ओहदेदार अधिकारियों को इस मामले में आगे आने के लिए हस्तक्षेप किया।
इधर, परिपक्व स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी ने पल्ला झाड़ लिया वे हस्ताक्षर हरगिज नहीं करना चाहते थे। कारण कि ब्याज नहीं लिया जा रहा था। ऐसी स्थिति में वे यहां से अपने बिस्तर लेकर अन्य जगह पर स्थानांतरण के लिए भी राजी हो गए।
अनुबंध पर गवाह में भी किसी जनप्रतिनिधि को बनाने की बजाय नपा के मुख्य लेखापाल मनोजसिंह पंवार एवं तत्कालीन उपयंत्री अजित तिवारी को ही बना लिया।
इस प्रकार बनाई किश्त : वर्ष 2020 में अनुबंध होते ही 1 करोड 10 लाख 7 हजार छियासी रूपए ग्रेसिम प्रबंधन जमा करेगा। यह अनुबंध 500 रूपए के स्टांम्प पर 26 नवंबर 2020 को संपादित हुआ। जोकि 31 मार्च 2022 तक मान्य रहंने के लिए दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी। इस समझौते के मुताबिक यह अनुबंध हुआ हैकि जो आउट स्टेडिंग की राशि 3 करोड 5 लाख है इसको नपा परिषद में प्रत्येक तिमाही समय के अंतराल में पांच किश्तों में जमा किया जाएगा। मतलब इस राशि को प्राप्त करने के लिए बिना ब्याज के सवा वर्ष का समय फिर दिया गया। जैसे ही अनुबंध हुआ उस दौरान तत्काल चेक से एक करोड 10 लाख 7 हजार छियासी रूपए जमा करने पर सहमति बनी। इस बकाया राशि का कोई ब्याज नहीं लिया गया। दूसरी किस्त जमा करने के लिए 31 मार्च 2021 तय की गई। इस तिथि को राशि 60 लाख 53 हजार 875 रूपए जमा करने की सहमति बनी। इस बकाया राशि का भी कोई ब्याज तय नहीं किया गया। तीसरी किश्त 30 जून 2021 को देना तय हुआ। यह राशि 64 लाख 44 हजार 447 बनी।
इसी प्रकार से अंतिम किश्त 30 सितंबर 2021 को देेने की सहमति बनी। यह राशि 70 लाख 88 हजार 892 थी। इस राशि पर भी कोई ब्याज नहीं लेने की बात सामने आई है।
पूर्व के समझौतों में ब्याज की बात : पूर्व के चौथे क्रम के अनुबंघं में यह स्पष्ट हैकि निर्धारित समय के एक माह के बाद राशि जमा नहीं करने पर साढे सात प्रतिशत राशि ब्याज ग्रेसिम को देना होगा। इस प्रकार के अनुबंध पर ग्रेसिम की और से तत्कालीन वाइस प्रेसीडंेट कामर्शियल राजेद्र जैन के हस्ताक्षर है। दूसरे पक्ष नपा की और से बतौर तत्कालीन चेयरमैन गोपाल यादव, तत्कालीन नपा उपाध्यक्ष राजेश धाकड़ तत्कालीन मुख्य नपा अधिकारी सुरेश रावल, तत्कालीन राजस्व चेयरमैन धर्मेश जायसवाल, तत्कालीन लीडर आफ काउनसंलर सज्जनंिसह शेखावत, तत्कालीन जिला प्लांनिंग कमेटी सदस्य राजेंद अवाना ने साईन किए है। बतौर गवाह पंकज जैन एवं महेश अ्रग्रवाल के नामों का उल्लेख है। लेकिन पांचवे क्रम के अनुबंध में जोकि 30 मई 2012 को किेया गया इस अनुबंध में बड़ी चतुराई से टैक्स विलंब से भरने की स्थिति में साढे सात प्रतिशत ब्याज की बात को विलोपित किया गया। लेकिन इस अनुबंध में यह भी लिखा हैकि नवीन शर्त के अलावा पूर्ववत समझोते की शर्त मान्य होगी। पांचवे क्रम के इस अनुबंध पर ग्रेसिम की और से तत्कालीन प्रेसीडेंट एसएन माहेश्वरी के तथा नपा की और से तत्कालीन अध्यक्ष शोभा यादव के हस्ताक्षर है। उद्योग की और से तत्कालीन ग्रेसिम जनसपंर्क अधिकारी राजेश शर्मा और असिस्टंेड जनरल मैनेजर (लीगल) सावरमल जालवाल साक्षी बने। दूसरे पक्ष की और से गवाह में सज्जनसिंह शेखावत, दिनेश गुर्जर के हस्ताक्षर है। इसी प्रकार से तीसरा क्रम का जो अनुबंध हुआ उसमें भी टैक्स विलंब होने पर साढे सात प्रतिशत ब्याज अदा करनंे का प्रावधान है।
तत्कालीन राष्ट्रीय नेता गेहलोत गवाह : तीसरा क्रम का जो अनुबंध हुआ था इसमें भी समय पर टैक्स राशि जमा नहीं होने पर साढे सात प्रतिशत ब्याज देने का प्रावधान तय हुआ था। यह अनुबंध 4 जून 2002 को हुआ। इस अनुबंध में बतौर गवाह भाजपा के तत्कालीन भाजपा राष्ट्रीय नेता श्री थावरचंद गेहलोत, श्रीलालसिंह राणावत, और श्रीरामसिंह शेखावत के हस्ताक्षर है। उद्योग की और से तत्कालीन एक्सूक्यूटिंव प्रेसीडेंट पी़ पी अग्रंवाल तथा नपा की और से तत्कालीन नपा अध्यक्ष विमला चौहान के हस्ताक्षर है।
पांचवे एवं छठे क्रम में कुछ नवीन शर्तो को जोड़ा गया और यह लिखा गया कि इन शर्तो के अलावा पूर्ववत अनुबंध की शर्त मंजूर होगी। जाहिर हैकि पूर्व अनुबंध में ब्याज वसूलने की शर्त है। पांचवे क्रम के अनुबंध के बिंदु क्रमांक 9 के अंतिम पैरा में यह स्पष्ट लिखा हैकि पूर्व के अनुबंध की शर्त इस समझौते पर लागू होगी। मतलब जोकि 26 नवंबर 2020 को जो समझौता हुआ, उसमें 3 करोड़ आउट स्टेडिंग की राशि पर ब्याज वसूलने की संभावना को अनदेखा किया गया। यह भी मान लिया जाए कि इस प्रकार का अनुबंध नहीं है तो इतनी बडी कंपनी को इतने विलंब से राशि भरने के लिए ब्याज माफ नहीं किया जा सकता। यह जनता का पैसा है।
सुप्रीम कोर्ट विवाद : इस समझौते में मप्र शासन और ग्रेसिम उद्योग के बीच अरबों की एक भूमि विवाद का उल्लेख भी बड़ी चतुराई के साथ किया गया। शासन एवं उद्योग के बीच बंद भारत कॉमर्स उद्योग की भूमि का एक विवाद सुप्रीम कोर्ट में प्रकरण क्रमांक एसएलपी (सी) 15837/ 2019 विचाराधीन है। जिसका का भी संदर्भ इस अनुबंध में दिया गया।यह विवाद लगभग 195 हैक्टर भूमि के स्वामित्व को लेकर है।इस पिटीशन में मप्र शासन की औेर से अन्य उच्च अधिकारियों के अलावा पदेन एसडीओं( राजस्व) स्वयं पिटीशनर है। विधि के सलाहकार इस अनुबंध इस प्रकार के संदर्भ से एतराज रखते हैं।
विशेषज्ञों का कहना हैकि 44 माह का ब्याज माफ करना सरकार के कोष में लगभग 37 लाख का नुकसान हुआ है। जिम्मेदार अधिकारी का तर्क हैकि कोरोना के कारण ऐसा किया है। लेकिन ऐसा कोई कानून नही ंहैकि कोरोना काल में टैक्स राशि का ब्याज माफ कर दिया जाए। इधर, ग्रेसिम कंपनी को कोराना काल में भी वर्ष 2020-21 में 2,253़ 71 करोड़ का नेट प्राफिट होेने के प्रमाण सामने आए हैं। ऐसी स्थिति में कंपनी घाटे में भी नहीं कि ब्याज को माफ किया जाए। इस आलेख के सभी बातों एव ंसंदर्भ के सारे प्रमाण सुरक्षित है।