सुसंस्कृति परिहार : ये कैसा निज़ाम है कि संसद के उच्च सदन में पहली बार मार्शलों से महिला सांसदों के उत्पीड़न की ख़बर मिली जिसने सबको हक्का-बक्का कर दिया। अभी तक निम्न सदन में इस तरह की ओछी हरकतों के नज़ारे देखने मिलते थे लेकिन तब भी महिलाओं पर इस तरह का अशोभनीय कृत्य कभी नहीं किया गया। यह बेहद शर्मनाक मामला है क्योंकि एक तो महिलाएं राजनीति में वैसे भी कम संख्या में भागीदारी करती हैं उन्हें अधिक संख्या में लाने 33% आरक्षण बिल कब से लंबित है ये कहना उचित होगा कि उपेक्षित है ऐसी स्थिति में सदन में महिलाओं की बात सुनने से इंकार के दरपेश इस तरह का आचरण लोकतंत्र की आत्मा के ख़िलाफ़ तो है ही साथ ही साथ उन क्षेत्र के सम्मानित मतदाताओं का भी अपमान है जिन्होंने उन्हें वहां पहुंचाया है।
राज्यसभा सदन लगता है जैसे लड़ाई का स्थल बन गया है । जिसकी पहिले से तैयारी थी। जिस तरह अचानक बड़ी तादाद में मार्शलों ने मोर्चा संभाला उसे लेकर तो पहला संदेह तो यही होता है कि कहीं उनमें बहुसंख्यक वे गुंडे तो नहीं थे जो दिल्ली में पिछले कई आंदोलनों में पुलिस का चोला पहनकर बदले की भावना से काम करते हैं। वरना इतने मार्शलों की ज़रूरत की थी। उनका आचरण साफ बता रहा था कि ये डंडे छाप ही थे। जिन्हें एक विशेष संगठन प्रशिक्षण देता है क्योंकि इन्होंने जिस तरह धक्का मुक्की का खेल खेला उसमें घायल हुईं कांग्रेस से राज्यसभा सांसद फूलो देवी नेताम ने कहा, जितने सांसद नहीं थे, उतने मार्शल थे। एक भी महिला मार्शल में दम नहीं था कि महिला सांसदों को धक्का दे. हम छाया वर्मा जी के साथ थे। पुरुष सांसद लोग धक्का दिए, जिससे हम गिर गए. हमें कमर में, हाथ में, पसली में चोट आई है. पुरुष मार्शलों ने धक्का दिया है। अब मार्शलिए के भेष में इनकी सदन में पहुंच चिंताजनक है। ये कुछ भी कर सकते हैं जिसकी आशंका सांसदों ने व्यक्त की है। सदन के कैमरा में भी सच छुपाया जाता है।
#WATCH CCTV footage shows Opposition MPs jostling with marshals in Parliament yesterday pic.twitter.com/y7ufJOQGvT
— ANI (@ANI) August 12, 2021
इस घटना के पीछे सिर्फ इतनी सी बात थी कि मनमाने तरीके से सदन में कानून पास करने का रिकॉर्ड बनाने वाली केन्द्रीय सरकार ने विगत दिनों विपक्ष द्वारा बीमा बिल को स्थायी समिति में भेजने की मांग की थी जिसे ठुकराने पर विपक्ष गोल घेरे में आकर नारेबाजी कर रहा था। इस आवाज़ को कुचलने बाहर से लाए गए मार्शलों का इस्तेमाल कर शोर शराबे के बीच बीमा बिल पास कर लिया। अब बीमा निजी हाथों में होगा। निजीकरण का दंश वैसे भी हम सब झेल ही रहे हैं । निजी संस्थानों ने आमजन का कचूमर निकाल दिया है। बीमा कंपनियां जब मुनाफे में थीं तो उनका निजीकरण क्यों किया गया? इसके विरोध में विपक्षी सांसदों के साथ ये सलूक बर्दाश्त से बाहर है। वैसे भी कृषि बिलों और अन्य बिलों को जिस तरह आनन फानन में बिना बहस मुबाहिसे के साथ लाया गया विपक्ष को सुनना भी गैर ज़रूरी समझा जाता रहा उसके बाद सदन में विरोध लाज़मी था। अलोकतांत्रिक सरकार ने इस बार मार्शलों से वार कराकर यह बता दिया है कि वह अब सम्पूर्ण रुप से तानाशाही रंग ले चुकी है।
तभी तो,शिवसेना के संजय राउत ने कहा, ‘‘यह सत्र हुआ ही नहीं है. विपक्ष को अपनी बात रखने का मौका नहीं मिला. हमारी आवाज को लोगों तक पहुंचने नहीं दिया गया. यह संसद सत्र नहीं था. कल राज्यसभा में लोकतंत्र की हत्या की गई.’’ उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘बाहर से मार्शल लाकर महिला सांसद और दूसरे सांसदों पर हमले की कोशिश की गई ऐसा लगता है कि मार्शल लॉ लगा है. ऐसा लगा कि हम पाकिस्तान की सीमा पर खड़े हैं और हमें रोका जा रहा है। ’’राजद के मनोज झा ने भी इस पर टिप्पणी में कहा, ‘‘कल बीमा विधयेक संसद ने नहीं, मार्शल लॉ ने पारित किया है. इस अहंकार का प्रतिकार जनता करेगी”
आज राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के संसद भवन स्थित कक्ष में बैठक करने के बाद विपक्षी नेताओं ने संसद भवन से विजय चौक तक पैदल मार्च किया. इस दौरान कई नेताओं ने बैनर और तख्तियां ले रखी थीं. बैनर पर ‘हम किसान विरोधी काले कानूनों को निरस्त करने की मांग करते हैं’ लिखा हुआ था. विपक्षी नेताओं ने ‘जासूसी बंद करो’, ‘काले कानून वापस लो’ और ‘लोकतंत्र की हत्या बंद करो’ के नारे भी लगाए।
कुल मिलाकर जिस सदन की अपनी एक गरिमा थी उसे पूर्ण रूप से नष्ट विनष्ट करने का दुस्साहस करने वाली सरकार का सड़कों पर विरोध ही एकमात्र रास्ता है।महिला सांसदों की इस तरह बेइज्जती से भी देश आहत हुआ है।इस घटना को चुनौती के रूप में लिया जाना चाहिए।