
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में समझी जाने वाली सबसे आसान बात हो गई है कि, उनकी राजनीति एकदम अलग होती है और इस नई राजनीति के लिए पहले नरेंद्र मोदी स्थापित राजनीति को पूरी तरह से ध्वस्त कर देते हैं। यह इस तरह से होता है कि, कई बार तो नरेंद्र मोदी के घनघोर समर्थक भी आश्चर्यचकित रह जाते हैं और आज के नये मीडिया के युग में ऐसा लगने लगता है कि, नरेंद्र मोदी ने अपने समर्थकों की संख्या तेजी से घटा ली है। ऐसा ही कुछ हाल ही में घोषित पद्म पुरस्कारों के एलान के साथ हुआ है। पद्म पुरस्कारों में अब राजनीतिक जुगाड़ न के बराबर लगता है। यूँ भी कह सकते हैं कि, नरेंद्र मोदी ने पद्म पुरस्कारों की राजनीति ही पूरी तरह से ख़त्म कर दी, लेकिन यह भी सच है कि, नरेंद्र मोदी ने पद्म सम्मानों की नई राजनीति स्थापित की है। वर्ष 2023 के लिए राष्ट्रपति ने 106 पुरस्कारों का एलान किया। इसमें 6 पद्म विभूषण, 9 पद्म भूषण, 91 पद्म श्री सम्मान शामिल हैं। पद्म सम्मान प्राप्त करने वालों में 19 महिलाएँ हैं, 2 व्यक्ति विदेश में रहते हैं और, 7 व्यक्तियों को मरणोपरांत यह सम्मान मिला है। मरणोपरांत सम्मान पाने वालों में ही छठवाँ नाम है, देश के पूर्व रक्षा मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का। मुलायम सिंह यादव समाजवादी राजनीतिक धड़े से निकले नेता थे। उत्तर प्रदेश में मंडल बनाम कमंडल की राजनीतिक को उन्होंने अपने पक्ष में सलीके से उपयोग किया और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी बना ली। स्वयं तीन बार मुख्यमंत्री रहे और बेटे अखिलेश यादव को भी एक बार मुख्यमंत्री बना दिया।
यह अलग बात है कि, समाजवादी बुनियाद पर खड़ी समाजवादी पार्टी ने समाजवाद की सारी अवधारणाओं को ध्वस्त कर दिया। समाजवादी से विशुद्ध रूप से पिछड़ी जातियों की राजनीति से सिमटते यादव और मुसलमान की राजनीति और मुलायम सिंह यादव के रहते ही यादवों में भी पूरी तरह से उनके परिवार में ही समाजवादी पार्टी पूरी तरह से सिमट गई। इसका परिणाम यह भी हुआ कि, भारतीय जनता पार्टी को यादवों के अलावा अन्य पिछड़ी जातियों में प्रतिनिधित्व को लेकर उभर रहे असंतोष को अपने पक्ष में उपयोग करने का अवसर मिल गया। रामजन्मभूमि आंदोलन ने भारतीय जनता पार्टी में पिछड़ी जातियों के कई प्रभावी नेताओं को तैयार किया। पिछड़ी जाति से आने वाले नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद पिछड़ी जातियों में यह संदेश स्पष्ट हुआ कि, भारतीय जनता पार्टी भी पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व वाली दूसरी पार्टियों की ही तरह उन्हें अपने साथ लेकर चल सकती है। पद्म पुरस्कारों की राजनीति पर बात करते समाजवादी पार्टी और उसके संस्थापक नेता मुलायम सिंह यादव पर बात करते आपको लग रहा होगा कि, भटकाव हो रहा है, लेकिन यह भटकाव नहीं है। सन्दर्भों को ठीक से समझने के लिए आवश्यक है।
उत्तर प्रदेश में लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी के सामने मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी के तौर पर समाजवादी पार्टी और उसके बाद बहुजन समाज पार्टी का नाम आता है। इसके बावजूद मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक पार्टी के संस्थापक को मरणोपरांत देश सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित करने पर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता, समर्थक शायद इस तरह से गुस्से में न दिखते और नये मीडिया पर नरेंद्र मोदी सरकार के इस निर्णय की आलोचना भी न करते, लेकिन मुलायम सिंह यादव के साथ दो ऐसी कड़वी यादें जुड़ी हैं जो भाजपा और संघ परिवार से जुड़े लोगों को व्यथित करती हैं।
उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के अलग होने की माँग करने वाले उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों पर गोली चलवाने और उस दौरान हुआ अकल्पनीय दुर्व्यवहार लोगों को भूला नहीं है। इसके साथ ही मुलायम सिंह यादव के साथ सबको छोड़कर मुसलमानों के जुड़ जाने की सबसे बड़ी वजह यही रही कि, मुलायम सिंह यादव के राज में ही रामभक्त कारसेवकों पर गोलियाँ चलाई गईं। भारतीय जनता पार्टी के नेता बेहद आक्रामक तरीके से हमलावर रहते हुए मुलायम सिंह यादव को मुल्ला मुलायम कहा करते थे। मुलायम सिंह यादव एकमुश्त यादव-मुसलमान और बहुतायत पिछड़ों के मत मिलने से प्रसन्न रहते हुए रणनीतिक तौर पर चाहते थे कि, मुल्ला मुलायम वाली छवि पुख्ता ही रहे। इसका लाभ भी मुलायम सिंह यादव और उनकी समाजवादी पार्टी को मिलता रहा।
2012 में जब मुलायम सिंह यादव ने बेटे अखिलेश यादव को सत्ता सौंपी तो लगा था कि, अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव से आगे की राजनीति करेंगे, लेकिन हुआ उल्टा ही। समाजवादी पार्टी पर मुलायम सिंह यादव जैसा प्रभाव अखिलेश यादव नहीं छोड़ पाए। चाचा शिवपाल यादव से हुए झगड़े में पार्टी दो फाड़ हो गई। भले पार्टी की शक्ति अखिलेश यादव के साथ ही रही। मुलायम सिंह यादव बीमारी से अशक्त हो चले थे, लेकिन यादव मतदाताओं के लिए पूज्य बने रहे। अब ऐसे लोगों के सामने अगर कोई नरेंद्र मोदी की बेवजह आलोचना करेगा तो उसे तल्ख़ प्रतिक्रिया मिल सकती है। मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत सम्मानित करने से बहुत पहले मुलायम सिंह यादव से नरेंद्र मोदी ने जाने कब निजी रिश्ते बना लिए। हालाँकि, निजी रिश्ते बनाने की नरेंद्र मोदी की कला कई बार पहले भी दिख चुकी है। नरेंद्र मोदी यादव परिवार के समारोह में शामिल होने गए। मोदी के कान में फुसफुसाते मुलायम सिंह यादव का चित्र खूब चर्चित हुआ। संसद में मुलायम सिंह यादव ने नरेंद्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी भी कर दी थी। इस सबका परिणाम यादव मतदाताओं पर पड़ा।
2014 के लोकसभा चुनावों में यादव मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में भाजपा लगभग असफल रही थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी के नाम पर भाजपा को थोड़ी बहुत सफलता मिल गई। हालाँकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में यादव फिर से अपने अखिलेश भइया के साथ ही पूरी तरह से चला गया। उत्तर प्रदेश विधानसभा 2022 के चुनाव के समय प्रयागराज के फूलपुर की बाजार में कई मुसलमान और यादव एक साथ बैठे थे। एक मुसलमान बोल पड़ा, इनसे पूछा। ए सब जने मोदी क वोट देहे रहेन। मौलाना 2019 के लोकसभा चुनाव की बात कर रहे थे। नरेंद्र मोदी ने मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत तब पद्म विभूषण दिया है, जब रामंदिर की सारी बाधाएँ दूर हो चुकी हैं। भव्य राम मंदिर 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले बनकर तैयार हो जाएगा। सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास और सबका विश्वास सिर्फ नरेंद्र मोदी का नारा भर नहीं है।
दरअसल, यही वो मंत्र है, जिसके जरिये 2024 में भारतीय जनता पार्टी 350 के पार जाने की बात कर रही है। उत्तर प्रदेश के पड़ोसी और भारतीय जनता पार्टी के लिहाज से बेहद कठिन यादव मतदाता बहुल राज्य बिहार में भी मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत पद्म विभूषण देने की जमकर चर्चा हो रही है। उग्र भाजपा समर्थक पूछ रहे हैं कि, अब अगला पद्म विभूषण लालू प्रसाद यादव को मिलेगा। मुलायम सिंह यादव ने रामभक्त कार सेवकों पर गोलियाँ चलवाईं थीं तो, लालू प्रयास यादव ने सोमनाथ से अयोध्या की लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा रोककर गिरफ्तारी करा दी थी, लेकिन यहाँ यह भी ध्यान में रखना आवश्यक है कि, इतने सबके बाद भी यादव मतदाता लालू और मुलायम के साथ मजबूती से खड़ा रहा। जातीय आधार छोड़ भी दें तो भी एक बड़ा वर्ग है जो, लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव को सामाजिक न्याय का बड़ा मसीहा मानता रहा है।
अब लालू प्रसाद यादव को अगली बार पद्म सम्मान मिलेगा या नहीं, लेकिन इससे पहले शरद पवार को मोदी सरकार में ही पद्म विभूषण मिल चुका है। प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। गुलाम नबी आजाद, तरुण गोगोई, मुजफ्फर हुसैन बेग, एससी जमीर, पीए संगमा और तोखेहो सेमा भी घोर भाजपा विरोधी नेता रहे हैं, लेकिन देश के एक वर्ग में इन नेताओं की बड़ी पहचान है। नरेंद्र मोदी इस बात को बखूबी समझते हैं। हालाँकि, नरेंद्र मोदी जिस रास्ते चल रहे हैं, बेहद कठिन है, लेकिन यह भी सच है कि, कठिन रास्तों पर चलकर ही नरेंद्र मोदी ने असंभव से लगने वाले लक्ष्य अब तक प्राप्त किए हैं। यह लक्ष्य प्राप्त कर लिया तो विपक्षी राजनीति के लिए 2024 के बाद बहुत कठिन समय होने वाला है।
Disclaimer: यह लेख मूल रूप से हर्ष वर्धन त्रिपाठी के ब्लॉग पर प्रकाशित हुआ है। इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं।
