शराब कांड : भाजपा को बोलने का हक नहीं, भाजपा शासित मध्यप्रदेश व गुजरात में ऐसी मौतों का आंकड़ा सबसे अधिक

पटना : सारण में जहरीली शराब पीने से अब तक सत्तर से अधिक लोगों की हुई दर्दनाक मौतों को लेकर भाकपा-माले विधायकों का एक दल 16 दिसंबर को सारण पहुंचा. इस टीम में विधायक वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, मनोज मंजिल, पूर्व  विधायक अमरनाथ यादव, सारन जिला सचिव सभा राय सहित स्थानीय पार्टी नेता-कार्यकर्ता शामिल थे. मौतों की संख्या व दायरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. इसका विस्तार अब सिवान तक हो गया है. घर के घर तबाह हो गए हैं. टोलों में सन्नाटा पसरा हुआ है. बेहद दर्दनाक स्थिति है. मरने वाले अधिकांश लोग बेहद गरीब व मजदूर पृष्ठभूमि से आते हैं.  वे विभिन्न जाति समूहों के हैं. इसे सारण में मिड डे मिल कांड के बाद दूसरा जनसंहार बताया जा रहा है. 

माले जांच टीम ने मशरख सहित कई गांवों का दौरा किया और इस कांड की चपेट में आए चंद्रमा राम, ब्रजेश यादव, नूर अंसारी, खुशी साह आदि मृतक परिजनों से मुलाकात की. पूरे मामले को समझने का प्रयास किया.  इसके पीछे शराबमाफियाओं का एक पूरा तंत्र लगा हुआ है, जिसे प्रशासन का भी समर्थन हासिल है. स्थानीय थाना शक के घेरे में है. लेकिन केवल यह मशरख थाने की बात नहीं है बल्कि आज पूरे राज्य में प्रशासन व शराब माफिया गठजोड़ ही जहरीली शराब के जरिए मौत का यह कारोबार कर रहा है. उजियापुर थाने में प्रशासन ने शराब माफियाओं को बलात्कार के खिलाफ हो रहे हमारे प्रदर्शन को कुचलने के लिए बुलाकर रखा था. आज तक उसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई्. 

भाकपा-माले शुरू से ही शराबबंदी कानून के समर्थन में हैं. हमने बारंबार कहा है कि जहरीली शराब से मौतों का सिलसिला तभी रूकेगा जब शराब माफियाओं पर कार्रवाई होगी और उसके राजनीतिक संरक्षकों को निशाना बनाया जाएगा. यदि ऐसा हुआ होता तो आज ऐसा दर्दनाक हादसा देखने को नहीं मिलता. शराबबंदी कानून का मतलब यह तो नहीं था कि गांव-गांव में सन्नाटा पसार दिया जाए और टोले-टोले के उजाड़ दिए जाएं. 

भाजपा इस मसले पर राजनीति कर रही है, जबकि सबसे ज्यादा जहरीली शराब से मौतों का आंकड़ा भाजपा शासित प्रदेशों मध्यप्रदेश व गुजरात के ही हैं. बिहार में भी भाजपा के कई बड़े नेताओं के नाम सामने आते रहे हैं. पूर्व मंत्री रामसूरत राय द्वारा चलाए जा रहे स्कूल से शराब का कारोबार होता रहा है. विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजय सिन्हा के एक रिश्तेदार के यहां से भी बड़े पैमाने पर शराब की बोतलें पाई गई हैं. सारण कांड में भी यूपी से जहरीली शराब आने की चर्चा है. इसलिए भाजपाइयों को इस मसले पर बोलने का क्या अधिकार है? 

विगत 17 सालों से राज्य में भाजपा सत्ता पर काबिजल रही है. अतः शराबबंदी के मामले में जो प्रशासनिक विफलता है उस जिम्मेवारी से भाजपा मुक्त नहीं हो सकती. जब वह सत्ता में थी ऐसे दर्जनों कांड हुए. सारण कांड की भी जांच हो तो कई भाजपा के नेता शराबमाफियाओं को संरक्षण देते पाये जाएंगे. 

एक तरफ जहरीली शराब से मौतों का तांडव है, तो दूसरी ओर पुलिस-प्रशासन ने इसे दलितों-गरीबों के उत्पीड़न का हथियार बना रखा है. मसौढ़ी के हांसाडीह गांव में मुसहर, नट, डोम व अन्य पिछड़ी जातियों के टोले पर विगत 9 दिसंबर को पुलिस ने बर्बर दमन ढाया. महिलाओं को नंगा करके पीटा गया. इसके कारण 55 वर्षीय सोनवां देवी की मौत हो गई. शराबबंदी कानून का तो यह कहीं से उद्देश्य नहीं था. शराब की लत के शिकार लोग कोई अपराधी नहीं है, अतः उनके लिए नशा मुक्ति केंद्र, पुनर्वास और एक सामाजिक अभियान चलाने की जरूरत है. महागठबंधन सरकार सबक ले और सुधार अभियानों को बढ़ावा दे. 

अतः हम बिहार सरकार से मांग करते हैं कि सारण, सिवान व आदि तमाम जगहांे पर जहरीली शराब से हुई मौतों पर संवेदनशील रूख अपनाए, मृतक परिजनों के पुनर्वास व मुआवजे का प्रावधान करे और बीमार लोगों के समुचित इलाज का प्रबंध करे. उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और भविष्य की जिम्मेवारी ले. और सबसे बढ़कर उच्चस्तरीय जांच टीम का गठन कर शराब माफियाओं-राजनेता-प्रशासन के उस गठजोड़ को निशाना बनाए जो इन मौतों की जिम्मेवार है. भाकपा-माले इस मांग पर आगामी 19 दिसंबर को पूरे राज्य में एकदिवसीय विरोध दिवस का आयोजन करेगी. भाकपा-माले का एक प्रतिनिधिमंडल इस मसले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी से भी मुलाकात करेगा. 

प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।

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द हरिश्चंद्र स्टाफ
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