न्यू इंडिया – मांस विवाद पर चुप, बूस्टर डोज का प्रचार करते प्रधानसेवक

न्यू इंडिया - मांस विवाद पर चुप, बूस्टर डोज का प्रचार करते प्रधानसेवक

कश्मीर के पत्रकार आसिफ सुलतान को चार साल बाद कल जमानत मिली पर उन्हें फिर से पबलिक सेफ्टी ऐक्ट (पीएसए) के तहत अवैध रूप से थाने में रोक लिया गया। उनके वकील आदिल अब्दुल्ला पंडित ने द टेलीग्राफ से कहा है कि, अब यह स्पष्ट है कि सरकार उन्हें जेल में रखना चाहती है और आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप सिर्फ बहाना था। पीएसए में छह महीने तक बिना ट्रायल जेल में रखा जा सकता है। 

निजी खर्च से बूस्टर डोज लगवाने की सलाह और खबरों के बीच आज एक खबर है, “कोविड-19 गया नहीं है, रूप बदल रहा है – प्रधानमंत्री”। प्रधान सेवक और चौकीदार के ऐसा कहने का क्या मतलब है आप तय कीजिए लेकिन प्रधानमंत्री के कहने का मतलब यही है कि बूस्टर डोज लगवा लीजिए। वह ऐसे ही नहीं लगाया जा रहा है। अगर कोविड गया नहीं है यह डोज मुफ्त क्यों नहीं लग रहा है और पीएम केयर्स किस लिए है? यह ना कोई पूछेगा ना बताया जाएगा। यही है अच्छे दिन। 

महिला कांग्रेस की कार्यवाहक प्रेसिडेंट नेट्टा डीसूजा ने केंद्रीय मंत्री और सहयात्री स्मृति ईरानी से पेट्रोल और एलपीजी की बढ़ती कीमत पर सवाल पूछा तो ईरानी कोई जवाब नहीं दे पाईं और ईधर-उधर की बातें करती रहीं। 1.11 मिनट का एक वीडियो सुश्री डीसूजा ने ट्वीट किया है जिसे कल रात नौ बजे तक 22,800 लोगों ने लाइक किया था। द टेलीग्राफ में यह खबर पहले पन्ने पर आठ कॉलम में एंकर है। आपको यह खबर कहीं और दिखी क्या?  

जेएनयू के मेस में मांस खाने और नहीं खाने पर विवाद, मारपीट। किसी विश्वविद्यालय के हॉस्टल का एक मेस बहुत ही छोटी जगह है। वहां कोई क्या करता है क्या खाता है इससे संबंधित विवाद भी नहीं निपट पाए तो आप समझ सकते हैं कि प्रशासन कैसा है या प्रशासन का हाल क्या है। अव्वल तो दूसरा क्या खाता है उससे किसी को मतलब नहीं होना चाहिए और अगर विवाद है तो निपटाने की व्यवस्था होनी चाहिए और नहीं हो तो प्रशासन को स्पष्ट कर देना चाहिए – पर कुछ नहीं हुआ। तभी मारपीट हुई होगी। बोलने वाले प्रधान कुछ बोल नहीं रहे हैं। ना यह कि विवाद बेकार है ना यह कि मुद्दा सही है।  

भाजपा सत्ता में होती है तो दंगे नहीं होते हैं। वैसे तो इस दावे का कोई मतलब नहीं है क्योंकि टकराव दो बराबर शक्ति वाले पक्षों में ही हो सकता है। एक पक्ष सत्ता में हो तो दूसरा क्या खाकर टकराव मोल लेगा। फिर भी यह दावा किया जाता रहा है। लेकिन इस बार रामनवमी पर स्थिति बदलने की कोशिश लग रही है। अखबारों में हिंसा की खबरें कुछ ज्यादा ही हैं। मैं इसे दंगा नहीं कह रहा पर हिंसा अगर वाकई हुई है तो दावे का क्या हुआ और नहीं हुई है तो खबरें कैसी हैं। इस बीच गुजरात में दंगा और एक व्यक्ति के मरने की खबर है। 

इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, 2019-20 के दौरान निगमित पांच नई विनिर्माण कंपनियों में से दो ने सितंबर 2019 में सरकार द्वारा घोषित 15 प्रतिशत की छूट वाले कॉरपोरेट टैक्स का चुनाव किया था और ऐसी कंपनियों की संख्या 2019-20 में 1244 थी। इन कंपनियों ने कुल मिलाकर 35.13 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार कॉरपोरेट टैक्स रिटर्न फाइल करने वाली नई कंपनियों की संख्या 3219 रही। खबर के अनुसार योजना साल के बीच में शुरू की गई थी और पूरे साल का आंकड़ा नहीं दिया गया है। इसलिए कुल आय का आंकड़ा छह महीने के लिए ही है। हालांकि तब भी बहुत कम है।     

We are a non-profit organization, please Support us to keep our journalism pressure free. With your financial support, we can work more effectively and independently.
₹20
₹200
₹2400
Sanjaya Kumar Singh
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।