समवेत शिखरजी, जैन दर्शन बनाम जिन दर्शन

समवेत शिखरजी, जैन दर्शन बनाम जिन दर्शन

जैन दर्शन एक अत्यंत प्राचीन एवं मूल दर्शन है जिसके स्पष्ट प्रमाण वेदों में भी (वैदिक धर्म के प्राचीनतम ग्रन्थ) स्पष्ट रूप से प्राप्त होते हैं । भगवान ऋषभदेव ने सर्वप्रथम इस संसार को सभ्यता का पाठ पढाया । संसार को असि, मसि एवं कृषि का ज्ञान प्रदान कर जीवन जीने की कला सिखाई । यही कारण है कि जिन दर्शन के अनुयायियों को कभी  किसी धर्म/दर्शन की नक़ल करने की आवश्यकता नहीं पड़ी । परन्तु मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि हम वर्तमान में दुसरों की नक़ल करने के सिवाय कुछ भी नहीं कर रहे हैं ।  हमारे सामाजिक रीति-रिवाज, जन्म, मरण, परण व गृहप्रवेश जैसे प्रमुख आयोजन भी वैदिक रीति से संपन्न करवाये जा रहे हैं । मुझे दुःख के साथ लिखना पड़ता है कि हमारे पूजनीय साधु समाज की दैनिकचर्या भी दुसरे सम्प्रदायों के साधुओं के समान होती जा रही है । इनका ज्यादातर समय श्रावकों से बतियाने में व्यतीत होंता है । यह अपने स्वाध्याय, स्वचिंतन एवं ध्यान आदि के लिए नाममात्र का समय निकाल पाते हैं।

समवेत शिखरजी का मुद्दा कुछ दिनों से बहुत ही गंभीर होता जा रहा है लेकिन आप देखेंगे तो राजपत्र फरवरी 2019 में जारी हुआ एवं इस पर पत्रावली वर्ष 2015 में प्रारम्भ हो गई थी । अपने आपको जागरूक, विवेकशील, बुद्धीशील एवं समृद्ध मानने वाले जैन समाज को कुछ दिनों पहले ही इस बात का पता चल पाया । जैसे ही इस तथ्य से अवगत हुए संघर्ष प्रारम्भ कर दिया । आखिर क्यों? क्या हमने इसके तथ्यों को जानकर सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करने का प्रयास किया ? क्या केंद्र, राज्य, स्थानीय सरकार जैसे नगरपालिका , पंचायत आदि को ज्ञापन देकर अपना विरोध प्रकट किया ? उचित तो यही होता कि हम पहले यह कार्य करते एवं अगर इनपर कोई कार्यवाही नहीं होती या हमें सरकार की तरफ से कोई आश्वासन नहीं मिलता तो हम फिर सड़कों पर आते।

समवेत शिखरजी, जैन दर्शन बनाम जिन दर्शन

यह मुद्दा प्रेमपूर्वक व सरलता से हल किया जा सकता था परन्तु सोशल मीडिया को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि समाज के कुछ व्यक्तियों ने इसे अपनी स्वार्थपूर्ति का माध्यम बना लिया । जैन समाज के कुछ लोग सोशल मीडिया आदि माध्यमों पर मोदी जी, आरएसएस एवं स्थानीय लोगों हेतु अभद्र भाषा का प्रयोग कर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं । कुछ साधु-संत परिणाम को जाने बगैर साधु नियमों की भाषा को ताक पर रखकर बोल रहे है । कुछ लोग कहते है कि “स्थानीय लोगों से खरीददारी मत करो, तब उन्हें सबक मिलेगा । इस तरह की बातें करने वाले इस प्राचीन कहावत को भूल जाते हैं कि “जिसने चोंच दी है वह चुगा भी अवश्य देगा।” चूँकि भारत सरकार एवं झारखण्ड सरकार ने अब जैन समाज की बातें मानकर जल्द से जल्द उचित आदेश पारित करने का वादा कर दिया है तो हमारा भी नैतिक दायित्व बनता है कि अब हम भी कुछ समय के लिए इन्तजार करें।

आगे हम सब मिल बैठकर चिंतन-मनन करें कि जिन दर्शन ,जिसे ज़्यादातर लोग बनिया दर्शन मानते हैं , उसको जन दर्शन बनाने के लिए हमें क्या करना चाहिए ॥ जब जिन दर्शन जन दर्शन बन जायेगा तो हमारे तीर्थों, मंदिरों एवं समाज की रक्षा स्वतः ही हो जायेगी । इसके लिए हमें किसी प्रकार के आन्दोलन नहीं करने पड़ेंगे । इसके लिए हमें अपने आपको  निजता से ऊपर उठाना पड़ेगा एवं यह मानसिकता बनानी होगी कि हम भी तिरें, हमारे साथ वाले भी तिरें, हम भी मोक्षगामी व पुण्यशाली बने व हमारे साथ वाले भी बने। क्रपया चिंतन करे। जय जिनेन्द।

लेखक : एन. सुगालचन्द जैन ( जाने-माने चिंतक, दार्शनिक, लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता जो महावीर फाउंडेशन के संस्थापक एवं उद्योग जगत के जाने-माने प्रतिनिधि है।)

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द हरिश्चंद्र स्टाफ
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