बीता 2022 का साल एक असाधारण वर्ष था। लगभग आधी सदी बाद पहली बार चांद पर कोई यान फिर उतारा गया। वैज्ञानिकों ने ‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ के जरिये ब्रह्मांड में पहले से कहीं अधिक दूर गहराई तक झांक कर उसकी रचना और निर्माण की खोज करने का इतिहास रचा। वैज्ञानिकों ने गहरे अंतरिक्ष की खोज करने के लिये करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर तक ही नहीं झांका, बल्कि साथ ही साथ अपनी पृथ्वी की ओर भी दृष्टि डालना जारी रखा। उन्होंने पिछले साल पृथ्वी पर क्या देखा? बहुत कुछ देखा। जो देखा वह डरावना है। मानव पर्यावरण के साथ जैसा खिलवाड़ कर रहा है उसकी जानकारी वैज्ञानिकों के अध्ययनों में सामने आई है। यह जानकारी धरती पर मानव के भविष्य के लिए चेतावनी देती है। दुनिया भर के वैज्ञानिकों के अध्ययन बताते हैं कि बीते साल जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने वाले ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन एक बार फिर नई ऊंचाइयों पर पहुंच गये हैं। पिछले साल जुलाई में ‘एमिट’ नाम का एक नया उपकरण अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को भेजा गया। यह यंत्र विभिन्न स्रोतों से आने वाली एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन, जिसे ‘सुपर एमिटर’ की तरह पहचाना जाता है, के उद्गम स्थानों का पता लगाता है। यह तो अब जग जाहिर है कि मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें जलवायु प्रणाली में अनावश्यक गर्मी बनाये रखती हैं जिससे धरती की सतह का तापमान बढ़ता हैं। पिछला वर्ष, 1880 के बाद पृथ्वी के पांचवें सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज हुआ। साथ ही इस सदी के पिछले नौ लगातार वर्ष सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज हुए हैं। धरती के बढ़ते तापमान ने पिछले साल दुनिया भर में अलग-अलग जगहों पर उत्पात मचाया, कहर ढाया। नेशनल ओशियेनिक एण्ड एटमॉसफियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) और नासा के विश्लेषणों के अनुसार जलवायु प्रणाली में अधिकांश अतिरिक्त गर्मी समुद्र में बनती है। उनके आंकड़े बताते हैं कि 2022 में समुद्र की गर्मी के नये रिकॉर्ड बने। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह बढ़ी हुई समुद्री गर्मी तीव्र उष्णकटिबंधीय तूफानों को बढ़ावा दे सकती है। इसे हमने पिछले सितंबर में तूफान ‘इयान’ के रूप में देखा भी। अमरीका में ‘इयान’ एक उष्णकटिबंधीय तूफान के रूप में आया और 24 घंटे के भीतर तेजी से तूफ़ानों की भीषण तीव्रता की संख्या चार की श्रेणी में तब्दील हो गया। यह तूफान अमेरिका में तबाही के लिहाज से अब तक के सबसे बड़े तूफानों में से एक माना जा रहा है।
जब जलवायु प्रणाली गर्म होती है तब वातावरण में अधिक नमी बनती है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक तीव्रता वाली भारी वर्षा होती है। पिछले साल जून से सितंबर तक हमने पड़ोसी पाकिस्तान में उसका तांडव देखा। लंबे समय तक और भारी मानसूनी बारिश के कारण वहां पिछले एक दशक की सबसे भीषण बाढ़ आई जिससे वहां जबरदस्त तबाही मची। बढ़ती गर्मी से न केवल वातावरण में अधिक पानी बनता है और भारी बारिश होती है, बल्कि उससे मिट्टी की नमी को भी नुकसान पहुंचता है। इससे सूखे के हालात बढ़ जाते हैं। पिछले साल अमेरिका के पश्चिम में सूखा पड़ा जिसके कारण उसके लेक मीड और लेक पॉवेल जैसे महत्वपूर्ण जलाशयों की क्षमता गिर कर केवल 27 प्रतिशत तक रह गई। शुष्क और गर्म परिस्थितियों का परिणाम जंगल में लगने वाली आग के खतरों के बढ़ जाने में भी होता है। जनवरी में लंबे समय से चली आ रही गर्मी और सूखे के दौरान, अर्जेन्टीना के कोरिएंटेस प्रांत में आग लगने की एक हजार से अधिक घटनाएं हुई। इसने अमरीका के इबेरा राष्ट्रीय उद्यान और आसपास के खेतों की महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि को नष्ट कर दिया। ऐसे हालात अमरीका के हैं जहां उन्नत प्रोद्योगिकी है और प्रकृति की प्रत्येक हलचल पर वैज्ञानिक पल-पल नज़र रखते हैं। जलवायु परिवर्तन का असर कुछ देशों को नहीं, वरन् समूची दुनिया पर पड़ता है। कोई देश यह सोचे कि वह प्रकृति की मार से बच जाएगा तो यह उसकी खाम-खयाली होगी। अमेरिकी भूभौतिकीय संघ की 2022 की वार्षिक बैठक में प्रस्तुत जीआईएसएस शोध के साथ-साथ एक अलग अध्ययन और आया है जिसके अनुसार, आर्कटिक क्षेत्र में वार्मिंग प्रवृत्तियों सबसे अधिक प्रभाव नजर आ रहा है। यह वैश्विक औसत के चार गुना के करीब है। दुनिया भर के समुदाय उन सभी प्रभावों को महसूस कर रहे हैं जिन्हें वैज्ञानिक गर्म होते वातावरण और समुद्र से जुड़े हुए मान रहे हैं।
नासा के वैज्ञानिक वैश्विक तापमान का विश्लेषण मौसम स्टेशनों और अंटार्कटिक अनुसंधान स्टेशनों के साथ-साथ जहाजों और समुद्र के जहाजों पर लगे उपकरणों द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों से तैयार करते हैं। वैज्ञानिक डेटा में अनिश्चितताओं को ध्यान में रखते हुए इन मापों का विश्लेषण करते हैं और हर साल वैश्विक सतह के औसत तापमान के अंतर की गणना के लिए सुसंगत तरीके काम में लेते हैं। सतह के तापमान के ये भू-आधारित माप नासा के एक्वा उपग्रह पर वायुमंडलीय इन्फ्रारेड साउंडर द्वारा 2002 से एकत्र किए जा रहे उपग्रह डेटा और अन्य अनुमानों के अनुरूप ही हैं। इसलिए उनकी विश्वसनीयता पर कोई विवाद नहीं है। समय के साथ वैश्विक तापमान कैसे बदलते हैं, यह समझने के लिए नासा 1951 से 1980 की अवधि को आधार रेखा के रूप में उपयोग करता है। उस आधार रेखा में ‘ला नीना’ और ‘एल नीनो’ जैसे जलवायु पैटर्न भी शामिल हैं। इनके साथ ही अन्य कारकों में असामान्य रूप से गर्म या ठंडे वर्ष भी शामिल किये जाते हैं। इसमें पृथ्वी के तापमान में प्राकृतिक भिन्नताओं को भी शामिल किया जाता हैं। वैज्ञानिक बताते हैं कि किसी भी वर्ष में औसत तापमान को कई कारक प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में ‘ला नीना’ की स्थिति के लगातार तीसरे वर्ष बनाने के बावजूद वर्ष 2022 रिकॉर्ड पर सबसे गर्म वर्षों में से एक था। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ‘ला नीना’ के शीतलन प्रभाव ने वैश्विक तापमान को थोड़ा कम (लगभग 0.11 डिग्री फ़ारेनहाइट या 0.06 डिग्री सेल्सियस) किया हो सकता है, जो औसत से अधिक सामान्य समुद्री परिस्थितियों में होता। एक अलग, स्वतंत्र विश्लेषण करके निष्कर्ष निकालाने वाले अमरीका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) जिसने 2022 के लिए वैश्विक सतह का तापमान 1880 के बाद से पांचवां उच्चतम बताया के वैज्ञानिक अपने विश्लेषण में समान रूप से तापमान के कच्चे डेटा का अधिक उपयोग करते हैं। वे एक अलग आधारभूत अवधि (1901-2000) और पद्धति अपनाते हैं। हालांकि कुछ खास वर्षों के लिए रैंकिंग के रिकॉर्ड के बीच थोडी भिन्नता हो सकती है मगर वे व्यापक तौर पर दीर्घकालिक ग्लोबल वार्मिंग को दर्शाते हैं। नासा के 2022 तक वैश्विक सतह के तापमान के पूर्ण डेटासेट का वैज्ञानिकों ने कैसे विश्लेषित किया वह उसका कोड सहित पूर्ण विवरण सार्वजनिक रूप से जियोग्रैफिक इनफार्मेशन सिस्टम पर उपलब्ध हैं। यह नासा की एक प्रयोगशाला है जिसका प्रबंधन मैरीलैंड के ग्रीनबेल्ट में एजेंसी के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के पृथ्वी विज्ञान प्रभाग द्वारा किया जाता है। यह प्रयोगशाला न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय के अर्थ इंस्टीट्यूट और स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड एप्लाइड साइंस से संबद्ध है।
जलवायु का आसन्न संकट धरती के किसी एक भूभाग के लिए नहीं है। वह सभी को प्रभावित करने वाला है। यह सम्पूर्ण मानव जाति का सामूहिक संकट है जिसे सामूहिक तरीके से ही निबटा जा सकता है। यही कारण है कि अंतरिक्ष से पृथ्वी पर नज़र रखने वाला अंतरिक्ष विज्ञान का संस्थान अपनी जानकारियों का सबसे साझा करता है। समाधानों को बढ़ावा देने के लिये वह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की जानकारी का ओपन डेटा उपलब्ध कराता है। जैसा कि हमने देखा है कि जलवायु का गरम होना हम सभी को प्रभावित करता है और इसका मुकाबला करने के लिए हम सभी को आगे बढ़ना है। जैसा कि 2022 और उसके पिछले वर्षों में वैज्ञानिकों ने जो आंकड़े दिये उनसे अब विश्व के सभी देश जलवायु की चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने लगे हैं और समझने लगे हैं कि उनका सामना करना कितना महत्वपूर्ण है। अब यह सबको भली भांति समझ में आ गया है कि ग्रीन हाउस प्रभाव की वजह से पैदा होने वाली ग्लोबल वॉर्मिंग आने वाले समय में मानवजाति की सबसे बड़ी चुनौती है। धीरे-धीरे यह भी सबको साफ होता जा रहा है कि जल्द ही कुछ करने की जरूरत है ताकि धरती को गरम होने से रोका जा सके। ऐसी प्राकृतिक आपदा जो मानव के हस्तक्षेप से आती है। यह वक़्त उसे रोकने के उपाय करने का है। वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग में कमी के लिये मुख्य रूप से सी.एफ.सी. गैसों का उत्सर्जन रोकना होगा और इसके लिये फ्रिज़, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा जिससे ऐसी गैसें कम निकलती हों। औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से निकलने वाला धुआं भी हानिकारक होता है। साथ ही वाहनों में से निकलने वाला धुआं भी पर्यावरण को बिगाड़ता है। रासायनिक इकाइयों से निकलने वाला कचरा और जंगलों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई भी धरती के तापमान को बढ़ाने में योगदान दे रही है। ऐसे में पर्यावरण मानकों का सख्ती से पालन करने, अक्षय ऊर्जा, जैसे पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पनबिजली के उपायों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। तभी ग्लोबल वार्मिंग पैदा करने वाली गैसों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इसके लिए मजबूती से लगातार प्रयत्न करते रहने की जरूरत है।