सरकार ने अपने खिलाफ हो सकने वाली खबरों की संभावना खत्म कर दी

द टेलीग्राफ में सोमवार, 27 फरवरी को पहले पन्ने पर तीन कॉलम में एक खबर छपी थी जिसका शीर्षक था, पूर्व में संघ की एजेंसी दूरदर्शन को समाचार देगी। यह खबर ‘द वायर’ में रविवार को छपी खबर पर आधारित थी। शाम में इंडियन एक्सप्रेस की खबर दिखी और इस तरह पक्का हो गया कि सरकार खिलाफ खबर करने वालों को ही खत्म नहीं कर रही है समर्थन की पत्रकारिता करने वालों को पूरा संरक्षण भी दे रही है। इसके एक-दो नहीं, कई उदाहरण मिल जाएंगे लेकिन अभी मैं हिन्दुस्तान समाचार पर ही केंद्रित रहूंगा और उसमें भी वही जो अखबारों में छप चुका है। 

इंडियन एक्सप्रेस ने शाम में जो सब बताया उसे बाद में संशोधित करके बताया है कि दूरदर्शन और आकाशवाणी को कंटेंट मुहैया कराने का ठेका पाने वाला हिन्दुस्तान समाचार क्या है। दरअसल यह आरएसएस से जुड़ी एक न्यूजवायर सेवा है जिससे प्रसार भारती 2017 से अपनी सेवाएं ले रही है। अब इसे 12 भाषाओं में 25 महीने तक खबरें देने का ठेका दिया गया जो कुल 7.7 करोड़ रुपये का है। मैं नहीं जानता कि इसमें ठेका देने के नियमों का कितना पालन हुआ और हुआ कि नहीं पर मेरा मानना है कि अगर यह सामान्य होता तो इसकी घोषणा की जानी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।

विपक्षी सांसदों ने हिन्दुस्तान समाचार के साथ हुए इस समझौते की निन्दा की है। द टेलीग्राफ की खबर के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस के सांसद जवाहर सरकार जो 2012 से 2016 तक प्रसार भारती के मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे ने ट्वीट किया, “आखिरकार प्रसार भारती और भाजपा का विलय सर्वश्रेष्ठ है।” सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीट किया, “दूरदर्शन और आकाशवाणी अब विशेष रूप से वही समाचार प्रसारित करेंगे जो आरएसएस देगा! प्रसार भारती ने पीटीआई के साथ अपने अनुबंध को समाप्त कर दिया है और समाचार फ़ीड के लिए विश्व हिन्दू परिषद के संस्थापक गोलवलकर और वीएचपी के द्वारा स्थापित हिंदुस्तान समाचार से अनुबंध किया है।”

ऊपर मैंने बताया कि द वायर ने इतवार को सबसे पहले खबर छापी कि करार 14 फरवरी से लागू है। अगर ऐसा है और सामान्य है तो प्रसार भारती के साथ-साथ हिन्दुस्तान समाचार को भी प्रेस विज्ञप्ति जारी करनी चाहिए थी जैसा कोई भी बड़ा ठेका मिलने और देने पर करता है बशर्ते वह सामान्य तरीके से दिया गया हो। जिनकी घोषणा नहीं हुई उनमें आमतौर पर गड़बड़ रहती है लेकिन वह भी अभी मुद्दा नहीं है। मुद्दा यह है कि सरकार आरएसएस से जुड़ी समाचार एजेंसी की सेवा लेकर क्या उसे उपकृत नहीं कर रही है और बदले में प्रचारात्मक खबरों से उपकृत नहीं होगी। प्रतिकूल खबरें तो खैर क्या होंगी – उसके लिए पीटीआई की उदाहरण याद आता है। उसपर चर्चा से पहले आइए आरएसएस से इसके संबंध देख लें जो इंडियन एक्सप्रेस ने बताए हैं।  

हिन्दुस्तान समाचार की स्थापना 1948 में शिवराम शंकर आप्टे उर्फ दादासाहेब आप्टे ने की थी। गुजरात के बड़ौदा में पैदा हुए पत्रकार, आप्टे का आरएसएस के साथ आजीवन जुड़ाव रहा और 1964 में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के संस्थापक महासचिव बने। हिन्दुस्तान समाचार को 1956 में एक सहकारी समिति के रूप में पंजीकृत कराया गया था। 1975 में, इमरजेंसी की घोषणा के तुरंत बाद, इंदिरा गांधी की सरकार ने उस समय की चार समाचार एजेंसियों – पीटीआई, यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई), हिंदुस्तान समाचार और समाचार भारती – का विलय एक समाचार एजेंसी – समाचार में कर दिया था।

1977 के चुनावों के बाद सत्ता में आई जनता पार्टी सरकार ने इस फैसले को पलट दिया (उस समय लाल कृष्ण आडवाणी सूचना और प्रसारण मंत्री थे) लेकिन इंदिरा गांधी की सरकार ने 1983 में फिर से हिन्दुस्तान समाचार को निशाना बनाया। मध्य प्रदेश के एक वरिष्ठ कांग्रेसी सुभाष यादव, जो बाद में राज्य के उपमुख्यमंत्री बने, को रिसीवर नियुक्त किया गया। हिन्दुस्तान समाचार ने सरकार के फैसले को चुनौती दी और 1999 में दिल्ली उच्च न्यायालय में केस जीत गया। इसके बाद, आरएसएस के वरिष्ठ नेता श्रीकांत जोशी ने एजेंसी को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया और इसे फिर से शुरू किया। इसके बाद की कहानी आगे पढ़िये।

फिलहाल यहां यह बताना जरूरी है कि प्रसार भारती पीटीआई की सेवा लेती थी इस बीच, 5 अगस्त 2019 को कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म किया गया था और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया था। राज्य से खबरें पहले ही कम आती थीं अब लगभग बंद हो गईं। कोई एक साल बाद जून में गलवान हिन्सा हुई थी। तब एक निजी समाचार एजेंसी ने शुरुआती खबरें दी थीं। क्यों और कैसे यह मेरे लिए अभी भी रहस्य है लेकिन अभी वह मुद्दा नहीं है। उन्हीं दिनों पीटीआई ने भारत में चीनी राजदूत और चीन में भारतीय राजदूत का इंटरव्यू किया था। आपको याद होगा चीनी सेना के इसी घुसपैठ पर प्रधानमंत्री का मशहूर कथन सुना गया था, “… न कोई हमारी सीमा में घुसा, न ही पोस्ट किसी के कब्जे में है”। यह 19 जून 2020 की खबर है। उन्हीं दिनों प्रसार भारती के एक अधिकारी ने संवाददाताओं को बताया था, ‘पीटीआई की राष्ट्र-विरोधी रिपोर्टिंग के चलते संबंध जारी रखना संभव नहीं है।’ यह खबर उस समय खूब चर्चित हुई थी। अब उसी चेतावनी को पूरा किया गया है।

द वायर के अनुसार, तब सरकार को लगता था कि चीनी राजदूत का साक्षात्कार नहीं करना चाहिए था जबकि भारतीय राजदूत ने अपने इंटरव्यू में चीनी घुसपैठ पर ऐसी टिप्पणी की थी कि जिससे सरकार को शर्मिंदा होना पड़ा था। यह टिप्पणी प्रधानमंत्री के उस दावे के विपरीत थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि किसी भी भारतीय क्षेत्र के साथ समझौता नहीं किया गया है। पीटीआई को हटाकर हिन्दुस्तान समाचार एजेंसी की सेवाएं लेना सार्वजनिक प्रसारण को सकारात्मक मीडिया कवरेज के रूप में प्रभावित करने की कोशिश तो है ही भगवा समाचार एजेंसी को फिर से खड़ा करने का प्रयास है जो अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है।

दूसरी ओर, प्रसार भारती ने मुनाफा न कमाने वाले भारतीय समाचार पत्रों के सहकारी समाचार संस्थान प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की सेवा लेना 2020 से बंद कर दिया था। इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है, प्रसार भारती के सीईओ गौरव द्विवेदी ने कहा था कि हिन्दुस्तान समाचार के साथ यह कोई नया करार नहीं है और करार पहले से था जिसका इस महीने नवीकरण किया गया है। इसके साथ अखबार ने बताया था कि प्रसार भारती हिन्दुस्तान समाचार से 2017 से ही फीड ले रही थी और करार के लिए वार्ता चल रही थी। प्रसार भारती से करार 2020 में हुआ और इसके तुरंत बाद कोविड महामारी आ गई। लेकिन 2020, 2021 और 2022 में हर साल दो करोड़ रुपए में ठेका दिया गया। कहने की जरूरत नहीं है कि इस तरह उसे पांव जमाने में मदद दी गई। 

सरकार ने अपने खिलाफ हो सकने वाली खबरों की संभावना खत्म कर दी
Image : Newslaundry

हिन्दुस्तान समाचार को पुनर्जीवित करने की कोशिश करने वाले आरएसएस नेता श्रीकांत जोशी का 2013 में निधन हो गया। इसके बाद, आरएसएस के तत्कालीन सरकार्यवाह सुरेश (भैय्याजी) जोशी ने एजेंसी को मजबूत करने के प्रयास किए। मई 2016 में उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर आयोजित एक सम्मेलन में, एक व्यापक पुनरुद्धार योजना तैयार की गई थी। सम्मेलन में आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व ने भाग लिया, जिसका समापन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। पुनरुद्धार योजना के अनुसार, हिन्दुस्तान समाचार को चलाने के लिए साधन संपन्न व्यक्ति की तलाश शुरू की गई थी। खोज रवींद्र किशोर सिन्हा पर केंद्रित थी, जिन्होंने 10 अप्रैल 2014 से 9 अप्रैल, 2020 तक बिहार से भाजपा के राज्यसभा सांसद के रूप में कार्य किया। सिन्हा को हिन्दुस्तान समाचार के बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया और उन्होंने अप्रैल तक इस पद पर कार्य किया। 2022, जब उनकी जगह नागपुर के अरविंद मर्डीकर ने ले ली।

दैनिक जागरण की एक खबर के अनुसार, बिहार के भाजपा सांसद आरके सिन्हा ने 23 साल की उम्र में एक सिक्योरिटी कंपनी शुरू की थी। उनका नाम पैराडाइज पेपर लीक मामले में आया था। इसमें कई राजनेताओं, बॉलीवुड सितारों समेत 714 भारतीयों का नाम थे। मीडिया वाले जब इस बारे में उनसे  प्रतिक्रिया लेने पहुंची, तो उन्होंने कागज पर लिखकर जवाब दिया था कि वह सात दिनों के मौन व्रत पर हैं। उन्होंने लिखा, “7 दिन के भागवत यज्ञ के लिए मौन व्रत है।” न्यूज एजेंसी एएनआई ने इसका एक वीडियो भी शेयर किया था। इसमें सिन्हा पहले इशारे से बता रहे थे कि कुछ नहीं बोलेंगे। इसके बाद वह मीडियाकर्मियों से पेन मांगकर उन्हें लिखकर बता रहे थे कि वह मौन व्रत पर हैं और कुछ भी नहीं बोल सकते। सिन्हा जी की बात चली है तो उनका काम भी जान लीजिए। एसआईएस लिमिटेड नाम की उनकी सुरक्षा एजेंसी कंपनी के वेबसाइट के अनुसार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के कई स्मारकों और कई सरकारी कार्यालयों की सुरक्षा करती है। वेबसाइट का दावा है कि कंपनी ने 2022 में “10,000 करोड़ रुपये वार्षिक राजस्व का स्तर पार कर लिया” था।

नई दिल्ली मुख्यालय वाली समाचार एजेंसी की वेबसाइट के अनुसार, इसके 22 समाचार ब्यूरो और 600 संवाददाता देश भर में फैले हुए हैं। समूह संपादक राम बहादुर राय 77 साल के हैं और 2015 के पद्मश्री विजेता है। जो जनसत्ता और नवभारत टाइम्स में काम कर चुके हैं और केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तहत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के अध्यक्ष हैं। संपादक जितेंद्र तिवारी हैं, जो पहले संघ परिवार द्वारा संचालित साप्ताहिक पाञ्चजन्य के साथ काम कर चुके हैं। सात सदस्यीय निदेशक मंडल के अध्यक्ष अरविंद मर्डीकर हैं। बोर्ड के अन्य सदस्यों में वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानंद मिश्र (86 साल के हैं पहले जनसत्ता में थे और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति रहे हैं),  हिंदी दैनिक देशप्राण के संस्थापक संपादक और रांची एक्सप्रेस के पूर्व संपादक बलबीर दत्त (87 साल के हैं, 2017 में पद्मश्री से सम्मानित); मनमोहन सिंह चावला; बाबा मधोक; और रवींद्र संघवी शामिल हैं। ब्रजेश झा कार्यकारी संपादक हैं।

ऐसी समाचार एजेंसी की सेवा लेने से पहले, 16 अक्तूबर 2020 को यह खबर आई थी कि प्रसार भारती ने पीटीआई और यूएनआई की सेवा लेना बंद करने का निर्णय किया है। प्रसार भारती की ग्राहकी खत्म होने के बाद पीटीआई तो फिर भी आर्थिक तौर पर ठीक है लेकिन यूएनआई और वार्ता का बुरा हाल है। न्यूजलॉन्ड्री की एक खबर के अनुसार, यूएनआई के स्थायी कर्मचारियों को पांच साल से पूरा वेतन नहीं मिला है, कंपनी की संपत्तियां जब्त कर ली गई हैं और एजेंसी के खिलाफ अदालती मामले बढ़ते जा रहे हैं, जिनमें एजेंसी को दिवालिया घोषित करने की याचिका भी शामिल है। यूएनआई के अवसान की यात्रा धीमी रही है। इसके मुख्य कारण हैं 2006 के बाद से सदस्यता में लगातार गिरावट और फायदेमंद संभावित सौदों का सतत आंतरिक प्रतिरोध। लेकिन यूएनआई पर शायद सबसे घातक प्रहार 2020 के अंत में हुआ, जब राष्ट्रीय प्रसारक प्रसार भारती ने एजेंसी छोड़ दी, जिसके कारण इसके मासिक राजस्व में लाखों रुपए की गिरावट आई। फिलहाल यूएनआई के कर्मचारी संघ ने समाचार एजेंसी को दिवालिया घोषित करने की याचिका दायर की है। दूसरी ओर,  हिन्दुस्तान समाचार के अलावा निजी और अपेक्षाकृत छोटी व नई समाचार एजेंसी एएनआई को सरकारी संरक्षण हर जगह दिखता है।

प्रसार भारती का कहना है कि पीटीआई और यूएनआई की सेवा बंद करने का निर्णय वाणिज्यिक कारणों से लिया गया है। अगर इसपर यकीन कर भी लिया जाए तो यह किसी भी तरह से ठीक नहीं है कि पुरानी एजेंसी को मरने दिया जाए, उसके कर्मचारियों को वेतन न मिले पूर्व कर्माचारियों को पेंशन और वाजिब बकाया नहीं मिले और संघ समर्थिच सरकार संघ समर्थित एजेंसी की सेवा ले। इस स्थिति में इस तरक का भी कोई मतलब नहीं है कि 2006 से इन एजेंसियों के साथ कोई “औपचारिक अनुबंध” नहीं था। प्रसार भारती के शीर्ष सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि बोर्ड ने अपनी 163वीं बैठक में इस फैसले को मंजूरी दी। बैठक के तुरंत बाद, प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर वेम्पति ने ट्वीट किया: “नई सामग्री के विकास, लंबे समय से लंबित वाणिज्यिक विवादों को हल करने, समाचार एजेंसियों पर खर्च को तर्क संगत बनाने और उपग्रह क्षमता के बेहतर उपयोग के लिए प्रौद्योगिकी निवेश पर आज के कई प्रमुख फैसलों के लिए प्रसार भारती बोर्ड के सदस्यों का धन्यवाद।”

यहां यह उल्लेखनीय है कि पीटीआई और यूएनआई दोनों के साथ प्रसार भारती के अनुबंध भले ही 2006 में समाप्त हो गए थे और तब से उनका नवीनीकरण नहीं किया गया था लेकिन ग्राहकी तदर्थ तरीके से यथानुपात आधार पर चल रही थी और दिखाया बताया जो जाए, हिन्दुस्तान समाचार को पूरा संरक्षण दिया गया और जब वह इस लायक हो गया तो उसे ठेका दे दिया गया। दूसरे दावेदारों या प्रतिस्पर्धियों की उपेक्षा करके। अधिकारी ने कहा कि प्रसार भारती “नए व्यवहार्य मूल्य निर्धारण” पर चर्चा करने के लिए दोनों एजेंसियों के संपर्क में था, लेकिन कुछ नहीं हुया। अब यह तय किया गया है कि “सभी घरेलू समाचार एजेंसियों से अंग्रेजी पाठ और संबंधित मल्टीमीडिया सेवाओं की डिजिटल ग्राहकी के लिए नए प्रस्ताव मांगे जाएंगे और इसमें पीटीआई और यूएनआई भी भाग ले सकते हैं। मुझे नहीं पता इस संबंध में निर्णय का आधार क्या था और सभी एजेंसियां समान मानी गई या नहीं और समान कैसे थीं। दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो के लिए पीटीआई की सेवा प्रसार भारती ने 2013 से सालाना 9.15 करोड़ रुपये का भुगतान किया है, लेकिन 2017 के बाद से, यह लगभग 25 प्रतिशत वापस ले रहा था क्योंकि यह लागतों पर फिर से बातचीत करना चाहता था। 7 जुलाई को सरकार ने पीटीआई को ऑफिस की भूमि के लिए पट्टे की शर्तों के कथित उल्लंघन के लिए 84 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करने के लिए कहा था।

तब सरकार समर्थक माने जाने वाले ऑपइंडिया डॉट कॉम ने अपनी खबर के शीर्षक में  कहा था, पीटीआई से संबंध तोड़ने के प्रसार भारती के निर्णय और हर साल 10 करोड़ रुपए की बचत के पीछे की पूरी कहानी पढ़िये। इस खबर को एक्सक्लूसिव भी कहा गया था। यह खबर प्रसार भारतीय की उस चिट्ठी के हवाले से थी जो पीटीआई को लिखी गई थी। इसमें लगभग वही सब बातें हैं जो इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से या अनाम अधिकारियों के हवाले से कही थी। इस खबर के अनुसार प्रसार भारती 2014 से समाचार एजेंसियों पर होने वाले अपने खर्चे को तर्कसंगत बनाने की कोशिश कर रहा था।

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संजय कुमार सिंह
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए, सुझाव दें। धन्यवाद।