जयपुर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों के रहन सहन को सुगम सरस बनाने के स्वप्न को साकार करने की मंशा से राजस्थान के अजमेर की धरती पर स्मार्ट सिटी की अवधारणा का बीज रोपा था। गहन मंथन के बाद इसके मापदण्ड और कायदे कानूनों के नियम निर्धारित किये। बिना धन के तो बाल भी बांका नहीं होता। इसी नियत से पर्याप्त और आवश्यकतानुसार धन का प्रावधान भी किया। लेकिन हुआ क्या, और हो क्या रहा है। इसकी बानगी राजस्थान में उदाहरण के लिए देखने को मिली है। जब प्रदेश की राजधानी जयपुर में ही स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत किये जाने वाले कई महत्वपूर्ण काम राजनीति की भेंट चढ़ गए।
इस मामले की बानगी ये है कि अब से पूर्व की भाजपा राज में जयपुर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में नौ प्रोजेक्ट ऐसे है जिनकी स्मार्ट सिटी कंपनी के बोर्ड ने मानी और उसी आधार पर स्वीकृति भी दी।
लेकिन सरकार बदले ही ऐसे प्रोजेक्ट को उसी बोर्ड ने डिलीट कर दिया। अब लाजमी है यह सवाल उठना कि बोर्ड ने कौनसे निर्णय में गलती की। इस मामले में हकीकत यह है कि 448 करोड़ रुपये प्रस्तावित लागत के पाँच प्रोजेक्ट पिछली भाजपा सरकार के मुख्य सूची में शामिल थे जिनमें 42 प्रोजेक्ट अब निष्क्रिय सूची में शामिल किये हैं।
गौरतलब है इसमें 23 करोड़ की प्रस्तावित च्लोबल आर्ट स्कवायर दूसरी 41 करोड़ लागत की कृष्णा सर्किट, तीसरी 2.80 करोड़ लागत की इंटेलीजेंट ट्रेफिक मैनेजमेंट सिस्टम और 2 करोड़ की लागत वाली नाइट मार्केट की परिकल्पना संजोई गई थी। जो पिछली भाजपा सरकार ने कई काम ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल किये थे, लेकिन मौजूदा कांग्रेस सरकार को यह रास नहीं आये। इनमें जलेबी चौक को च्लोबल आर्ट स्कवायर सेंटर के रूप में विकसित करना, धार्मिक स्थलों को जोड़ते हुए कृष्णा सर्किट निर्माण, इको फ्रेण्डली पूल कारिडोर, इंटेलीजेंट ट्रेफिक मैनेजमेंट सिस्टम चारदिवारी में पेयजल व सीवर सिस्टम का इंटीग्रेटेड डवलपमेंट, डेडिकेटेड वैंडिंग जोन, पेयजल के ऑटोमेटिक स्मार्ट मीटर सहित अन्य भी है। इन प्रोजेक्ट पर तत्कालीन नगरीय विकास मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक ने कई बार मंथन किया था। लेकिन अब सरकार बदलते ही अफसरों ने दो टूक कह दिया है कि इन प्रोजेक्टों के लिए न तो पैसा है और ना ही समय। आलम यह है कि आवास और शहरी मामलात मंत्रालय ने भी लगातार बदलाव पर आपत्ति तक जताई है।
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